scriptराम लला हम आएंगे, मंदिर वहीं बनाएंगे | Uttar Pradesh political party leaders under Ram Lala Hum Aayenge Mandir Wahin Banayenge slogan | Patrika News

राम लला हम आएंगे, मंदिर वहीं बनाएंगे

locationलखनऊPublished: Oct 18, 2016 06:26:00 pm

Submitted by:

Mahendra Pratap

रामलला अयोध्या में टेंट के नीचे विराजमान हैं। बाहर कुछ दूरी पर  नारे लग रहे हैं-राम लला हम आएंगे, मंदिर वहीं बनाएंगे। हर पांच साल में ऐसा होता है। चुनाव नजदीक आते ही राम नाम की जाप तेज हो जाती है। केंद्र और यूपी सरकार के लिए राम नाम फिर मौजूं हो गया है। मुख्यमंत्री […]

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रामलला अयोध्या में टेंट के नीचे विराजमान हैं। बाहर कुछ दूरी पर नारे लग रहे हैं-राम लला हम आएंगे, मंदिर वहीं बनाएंगे। हर पांच साल में ऐसा होता है। चुनाव नजदीक आते ही राम नाम की जाप तेज हो जाती है। केंद्र और यूपी सरकार के लिए राम नाम फिर मौजूं हो गया है। मुख्यमंत्री अखिलेश यादव को भनक लगती है। केंद्र सरकार अयोध्या में राम के नाम पर कुछ करने वाली है। वे अपनी धुर विरोधी बसपा सुप्रीमो मायावती के ठंडे बस्ते में पड़े अंतरराष्ट्रीय रामलीला संकुल, प्रोजेक्ट को झाड़ फूंककर बाहर निकलवाते हैं। सोमवार को एकाएक अयोध्या में इंटरनेशनल थीम पार्क के लिए छह करोड़ का बजट दे देते हैं। २७ एकड़ का यह प्रोजेक्ट २००७ के बाद फिर से जिंदा हो उठता है। बात केंद्र सरकार की। पिछले साल जून में पर्यटन मंत्रालय ने अयोध्या में ५० करोड़ की राशि से रामायण म्यूजियम बनाने की घोषणा की थी। बात आई गई हो गई। मंगलवार को केंद्रीय पर्यटन मंत्री महेश शर्मा अयोध्या पहुंचते हैं। सरयू तट पर जमीन की खोज शुरू होती हैं। २५ एकड़ में राम नाम का संग्रहालय बनाने की बात होती हैं। बजट भी बढक़र २५० करोड़ हो जाता है। राम के बहाने भाजपा यूपी में अपनी खोई सियासी जमीन तलाशेगी। तो सपा मुस्लिम परस्त छवि तोडऩे की कोशिश करेगी। तब तक राम के नाम पर कागजी घोड़े दौड़ते रहेंगे। भाजपा-सपा के इस सियासी ड्रामे में कांग्रेस चुप है। मायावती से नहीं रहा गया। वे बोल पड़ीं। बीजेपी और सपा धर्म का राजनीतिक इस्तेमाल कर रहे हैं। अखिलेश ने पलटवार किया, रामायण मेले की अवधारणा डॉ. लोहिया की है। हमने कुछ नया नहीं किया। जनता तमाशबीन है। 

सूबे की सियासत में अयोध्या अहम भूमिका निभाती रही है। फिर निशाने पर राम हैं। राम के नाम पर सरकार बनती और बिगड़ती रही है। एक बार फिर राम की शरण में पार्टियां हैं। कल तक मोदी और अखिलेश विकास पुरुष के पर्याय थे। आज राम-नाम की होड़ है। विकास का एजेंडा पीछे छूट गया है। उत्तर प्रदेश की यही नियति है।
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