बेशक चीन ने अपने हिसाब से परिवर्तन लाने के लिए सख्ती बरती और समर्पित प्रयास किए, पर जहां इससे चीन ने अपनी बढ़ती जनसंख्या को नियंत्रित करके आर्थिक विकास को गति दी, वहीं इसका लिंग अनुपात पर विपरीत असर हुआ। सही लिंग अनुपात इस बात के लिए आश्वस्त करता है कि समाज में स्त्री-पुरूष की संख्या एक- दूसरे के लिए पर्याप्त है।
जब लिंग अनुपात को अप्राकृतिक रूप से गड़बड़ाया जाता है, तो इससे रिश्ते बिगड़ते हैं, समाज में अव्यवस्था फैलती है। नतीजतन इतनी बुराइयां पनपती हैं कि वे आर्थिक विकास के क्षेत्र से भी परे हो जाती हैं। भारत के कुछ हिस्सों में भी लिंग अनुपात सही नहीं है और इसी वजह से लड़कों की शादी के लिए लड़कियां उपलब्ध नहीं हैं। इससे व्यभिचार बढ़ता है और काफी संख्या में लोग अविवाहित रहने पर मजबूर हो जाते हैं।
यह स्वागत योग्य निर्णय है कि चीन ने दंपती को दो बच्चे पैदा करने की इजाजत दे दी है। इससे बच्चों पर भी अच्छा असर पड़ेगा। बच्चे पहले से अधिक खुश रह सकेंगे, क्योंकि उन्हें शुरू आत से ही बहन या भाई साथ रहने-खेलने, बातें करने को मिल सकेंगे और उन्हें खुश रहने के लिए नकली साधनों की आवश्यकता नहीं पड़ेगी। जो बच्चे बचपन से अपने बहन-भाई की संगत में बड़े होते हैं, खुद को अधिक व्यस्त महसूस करते हैं और सफलता के लिए आवश्यक गुणों को सीखते हैं।
यह पारिवारिक जीवन का एक अहम हिस्सा बनता है, जहां एक-दूसरे के साथ बंधन मजबूत होते हैं और वे हताशा और अन्य विकृतियों के कम शिकार होते हैं, जो अपेक्षाकृत अकेले बच्चे में एकाकीपन और ऊब से पैदा होती हैं। भाई-बहनों का यह साथ उन्हें आज के प्रतिस्पर्धी युग में चुनौतियों का मुकाबला करने के लिए व्यस्त और आत्मविश्वासी बनाएगा। हालांकि परिवार में एक और बच्चे के जन्म से माता-पिता की आर्थिक जिम्मेदारी बढ़ेगी। दोनों पैरेंट्स को दो बच्चों को जन्म देने का फैसला बड़ी समझदारी से लेना है।
(ये लेखक के अपने विचार हैं)
– आनंद मुंशी, मोटिवेशनल स्पीकर और मैनेजमेंट गुरू