मुश्किल लोगों से सम्पर्क करना और आकस्मिक परिस्थितियों का सामना करना श्रेष्ठ सबक हैं, जो मैंने इन त्यौहारों के दौरान सीखे और वह भी काफी कम उम्र में। जहां तक मुझे याद है, ऎसा कोई भी त्यौहार नहीं रहा, जब साथ काम करने वालों के बीच विवाद नहीं रहा हो। वे लड़ते थे, लेकिन सिर्फ इवेंट को बेहतर मनाने के अपने एजेंडे को लेकर। इससे मुझे सीखने को मिला कि कम पैसे या अपर्याप्त लोगों की स्थिति में कैसे काम करना चाहिए। यह सीख मुझे इस बात के लिए तैयार करती है कि चाहे कुछ भी हो, मुझे खुद पर और ईश्वर पर भरोसा रखना चाहिए।
मैंने अपने दिमाग को ठंडा रखना और संकट की स्थिति में समाधान के लिए लगातार कोशिश करना सीखा। उस कम उम्र में जो समस्याएं मेरे लिए बड़ी थीं, वे आज खुद ब खुद छोटी लगने लगी हैं, लेकिन इसने उन लोगों का मानस तैयार करने में अहम भूमिका निभाई, जो अंत समय तक अपनी उम्मीद नहीं छोड़ते। जाहिर है कि ये वैदिक परम्पराएं और धार्मिक रीति-रिवाज लोगों को के ंद्रित और समाधान की दिशा में काम करने की सीख देते हैं। आध्यात्मिकता का संचार करने के साथ-साथ ये कॉरपोरेट लाइफ में अग्रणी रहने के लिए अपेक्षित गुणों में भी सुधार करते हैं। मैं खुश हूं कि भारत की इस पवित्र भूमि ने मुझे आध्यात्मिक उन्नति का मौका दिया, बिना उन भौतिक गुणों के साथ समझौते करते हुए, जो आज के युग में सफल बनने के लिए जरूरी हैं।
(ये लेखक के अपने विचार हैं)
– आनंद मुंशी, मोटिवेशनल स्पीकर और मैनेजमेंट गुरू