scriptगणेशोत्सव से सीखा प्रबंधन का पाठ | How to learn management from social, religious events as Ganeshotsav | Patrika News

गणेशोत्सव से सीखा प्रबंधन का पाठ

Published: Sep 22, 2015 11:19:00 am

न सिर्फ सेल्स के गुर, लोगों से
मिलना-जुलना और बातचीत करना सीखा, बल्कि गणेशोत्सव ने मुझे प्रबंधन और खूबियों के
लिए भी साल दर साल तैयार किया, जो बाद में मेरे कॉरपोरेट लाइफ में काम
आईं…

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मुझे आज भी याद है, जब मैं आठ-नौ साल की उम्र में बड़ी उम्र के लड़कों के साथ घर-घर जाकर गणेशोत्सव के लिए पैसा इक्ट्ठा किया करता था। बाद में इन पैसों का गणेशोत्सव के सभी कार्यक्रमों के लिए बड़ी ही किफायत से उपयोग होता था। मैं इसमें काफी दिलचस्पी लेता था, क्योंकि मेरी उम्र का हर बच्चा लेता था। मैं वरिष्ठ साथियों को ध्यान से देखता कि वे किस तरह समर्थ लोगों से सम्पर्क करते और उन्हें बड़ी राशि देने के लिए प्रोत्साहित करते।

कभी वे उन्हें उनके पिछले साल के योगदान की याद दिलाकर प्रेरित करते, तो कभी सोसायटी के दूसरे सदस्यों से उनकी तुलना करते, ताकि वे उत्सव के लिए और भी ज्यादा राशि देकर अपना योगदान कर सकें। उस कम उम्र में जो मैंने सेल्स की कला सीखी, वह आगे जाकर मेरे बहुत काम आई। मैंने उन लोगों से निर्भय होकर सम्पर्क करना सीखा, जो उम्र में काफी बड़े और विभिन्न पृष्ठभूमि से थे। उन्हें उत्सव की गतिविधियों को चलाने के लिए पैसा देने को राजी करना सीखा।

न सिर्फ सेल्स के गुर और लोगों से मिलना-जुलना, बातचीत करना सीखा, बल्कि गणेशोत्सव ने मुझे प्रबंधन की और खूबियों के लिए भी साल दर साल तैयार किया, जो बाद में मेरे कॉरपोरेट लाइफ में काम आईं। मसलन, इवेंट मैनेजमेंट। इवेंट मैनेजमेंट के लिए राशि इकट्ठी करने के इतर भी कई काम होते हैं। वेंडर मैनेजमेंट की तरह इसने टेंट्स और स्टेज तैयार करने के लिए किफायती कोट्स लेने में मदद की।

दूसरी ओर मैंने समय प्रबंधन का पाठ भी सीखा, क्योंकि हम अपनी पढ़ाई की व्यस्तता के बीच इस काम के लिए समय निकालते और खुलकर गतिविधियों में हिस्सा लेते थे। हर बार पैरेंट्स इस बात से आश्वस्त होते कि हमारी पढ़ाई पर असर नहीं पड़े। सिर्फ इन वेंडर्स में अपने वरिष्ठ साथियों के साथ जाने से मुझे मोल-भाव करना भी आया, जिसका इस्तेमाल मैं आज भी करता हूं।



मुश्किल लोगों से सम्पर्क करना और आकस्मिक परिस्थितियों का सामना करना श्रेष्ठ सबक हैं, जो मैंने इन त्यौहारों के दौरान सीखे और वह भी काफी कम उम्र में। जहां तक मुझे याद है, ऎसा कोई भी त्यौहार नहीं रहा, जब साथ काम करने वालों के बीच विवाद नहीं रहा हो। वे लड़ते थे, लेकिन सिर्फ इवेंट को बेहतर मनाने के अपने एजेंडे को लेकर। इससे मुझे सीखने को मिला कि कम पैसे या अपर्याप्त लोगों की स्थिति में कैसे काम करना चाहिए। यह सीख मुझे इस बात के लिए तैयार करती है कि चाहे कुछ भी हो, मुझे खुद पर और ईश्वर पर भरोसा रखना चाहिए।

मैंने अपने दिमाग को ठंडा रखना और संकट की स्थिति में समाधान के लिए लगातार कोशिश करना सीखा। उस कम उम्र में जो समस्याएं मेरे लिए बड़ी थीं, वे आज खुद ब खुद छोटी लगने लगी हैं, लेकिन इसने उन लोगों का मानस तैयार करने में अहम भूमिका निभाई, जो अंत समय तक अपनी उम्मीद नहीं छोड़ते। जाहिर है कि ये वैदिक परम्पराएं और धार्मिक रीति-रिवाज लोगों को के ंद्रित और समाधान की दिशा में काम करने की सीख देते हैं। आध्यात्मिकता का संचार करने के साथ-साथ ये कॉरपोरेट लाइफ में अग्रणी रहने के लिए अपेक्षित गुणों में भी सुधार करते हैं। मैं खुश हूं कि भारत की इस पवित्र भूमि ने मुझे आध्यात्मिक उन्नति का मौका दिया, बिना उन भौतिक गुणों के साथ समझौते करते हुए, जो आज के युग में सफल बनने के लिए जरूरी हैं।

(ये लेखक के अपने विचार हैं)

– आनंद मुंशी, मोटिवेशनल स्पीकर और मैनेजमेंट गुरू
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