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मोदी सरकार में भी नहीं थमी रूपए की गिरावट

नरेंद्र मोदी सरकार के सत्ता
संभालने के बाद रूपए ने जो उड़ान भरी थी वह उनके एक साल में ही ओझल हो गइ
है

May 21, 2015 / 03:23 pm

अमनप्रीत कौर

Rupee

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नई दिल्ली। नरेंद्र मोदी सरकार के सत्ता संभालने के बाद रूपए ने जो उड़ान भरी थी वह उनके एक साल का कार्यकाल पूरा होते-होते लगभग ओझल हो गई और पिछले एक वर्ष के कार्यकाल में अमरीकी डॉलर के मुकाबले रूपए ने नौ प्रतिशत से अधिक का गोता लगाया। पिछले साल हुए आम चुनाव में भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार के रूप में मोदी ने अपने चुनावी भाषणों में डॉलर के सामने रूपए की पतली हालत को एक मुख्य मुद्दा बनाया था और इसके लिए पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की सरकार को आड़े हाथो लिया था।

मोदी ने पिछले साल 26 मई को भारी बहुमत के साथ बागडोर संभाली थी तो उनके गुजरात के मुख्यमंत्री के रूप में राज्य में औद्योगिक विकास की दिशा में उठाए गए कदमों को देखते हुए ऎसी उम्मीदें बंधी थी कि देश में भी इसकी बयार बहेगी। उनके शुरूआती कार्यकाल में इन उम्मीदों को बल भी मिला था, जिसका फायदा रूपए को मिला, लेकिन धीरे-धीरे रूपए पर दबाव बढ़ने लगा और यह अमरीकी डॉलर के खिलाफ लगातार कमजोर होता गया।

नई सरकार के कार्यभार संभालने से ठीक पहले 23 मई को एक डॉलर की कीमत अपने रिकॉर्ड निचले स्तर करीब 69 रूपए प्रति डॉलर की तुलना में मजबूत होते हुए 58.52 रूपए प्रति डॉलर पर आ गई थी, लेकिन उनका एक साल का कार्यकाल पूरा होते-होते यह 9.05 प्रतिशत की कमजोरी के साथ करीब 64 रूपए प्रति डॉलर पर पहुंच गई है। संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन सरकार के कार्यकाल के दौरान अगस्त 2013 में एक डॉलर की कीमत लगभग 69 रूपए पर पहुंच गई थी और इसको लेकर भाजपा समेत अन्य विपक्षी दलों के पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह पर लगातार निशाना साध रहे थे।

डॉलर के मुकाबले रूपए की मजबूती और गिरावट दोनों ही भारतीय अर्थव्यवस्था के काफी महत्व रखते हैं। रूपए के कमजोर होने से भारतीय निर्यात को बढ़ावा मिलता है, लेकिन आयात पर यह कमजोरी भारी पड़ती है। देश की ईंधन, खाद्य तेल, दाल-दलहन और अन्य संवेदनशील वस्तुओं का कुल आयात में बड़ा हिस्सा होता है। ऎसी स्थिति में रूपए का कमजोर पड़ना महंगाई को दावत देता है। रिजर्व बैंक का विदेशी मुद्रा बाजार में सीधे कोई हस्तक्षेप नहीं है, लेकिन रूपया जब तेजी से कमजोर होता है तो केंद्रीय बैंक हस्तक्षेप कर इसके संभालने की कोशिश करता है।

मोदी सरकार के सत्ता में आते ही उत्साहित विदेशी निवेशकों का पूंजी प्रवाह बढ़ने से रूपया 5.3 प्रतिशत की मजबूती के साथ 23 मई 2014 तक एशिया-प्रशांत क्षेत्र में सबसे बेहतर प्रदर्शन करने वाली मुद्रा बन गया। वर्ष 2014 की शुरूआत में भारतीय मुद्रा 61.8 प्रति डॉलर पर थी और महज छह माह से कम समय में वह 327 पैसे मजबूत हुआ, लेकिन सरकार के जीएसटी संशोधन विधेयक और भूमि अधिग्रहण विधेयक को संसद में पारित कराने को लेकर मचे घमासान से उसके आर्थिक सुधारों की गति प्रभावित हुई जिससे विदेशी पूंजी प्रवाह में कमी आई और रूपए में गिरावट आनी शुरू हो गई। 20 नवंबर 2014 को डॉलर के मुकाबले रूपया नौ महीने के निचले स्तर 62.07 रूपए प्रति डॉलर और 16 दिसंबर को 13 माह के न्यूनतम स्तर 63.54 रूपए प्रति डॉलर पर आ गया।

रूपए के लुढ़कने का सिलसिला नहीं रूका और जारी वर्ष में कर विभाग की ओर से 602 करोड़ रूपए के न्यूनतम वैकल्पिक कर (मैट) भुगतान नोटिस से हतोत्साहित विदेशी निवेशकों ने पूंजी बाजार में बिकवाली शुरू कर दी जिससे रूपए की मजबूती को तगड़ा झटका लगा। सेंट्रल डिपॉजिटरी सर्विसेज के आंकड़ों के अनुसार, अप्रेल महीने में विदेशी संस्थागत निवेशकों (एफआईआई) और विदेशी पोर्टफोलियो निवेशकों (एफपीआई) ने शेयरों तथा ऋणपत्रों में 224.08 करोड़ डॉलर का निवेश किया जो पिछले साल दिसंबर (199.85 करोड़ डॉलर) के बाद अर्थात पिछले चार माह का न्यूनतम स्तर है।

इस साल जनवरी में विदेशी निवेश 545.29 करोड़ डॉलर रहा था जो घटता हुआ फरवरी में 396.56 करोड़ डॉलर तथा मार्च में और घटकर 333.70 करोड़ डॉलर पर आ गया। विदेशी निवेशकों की पूंजी निकासी से 26 अप्रेल को डॉलर के मुकाबले रूपया 2.02 प्रतिशत यानि 1.20 रूपए लुढ़ककर अगस्त 2013 के बाद अर्थात 20 महीने की सबसे बड़ी साप्ताहिक गिरावट के साथ 63.56 रूपए प्रति डॉलर पर आ गया। यह रूपए की लगातार दूसरी साप्ताहिक गिरावट रही। इसके साथ ही यह इस साल छह जनवरी (63.57) के बाद का न्यूनतम स्तर भी रहा। रूपए की इससे बड़ी साप्ताहिक गिरावट 30 अगस्त 2013 को समाप्त सप्ताह में दर्ज की गयी थी जब यह 3.95 प्रतिशत टूटा था।

यह सिलसिला लगातार जारी रहा और मई में भी रूपए ने बड़ा गोता लगाया और सात मई को डॉलर के मुकाबले टूटकर 20 महीने के न्यूनतम स्तर 63.88 रूपए प्रति डॉलर पर आ गया। इस प्रकार 58.52 रूपए प्रति डॉलर की मजबूती हासिल करने वाली भारतीय मुद्रा सरकार के कार्यकाल के एक साल पूरा होत-होते अपनी चमक गंवाकर 530 पैसे लुढ़ककर 63.82 रूपए प्रति डॉलर पर आ गई। अर्थव्यवस्था की मजबूती का संकेत कहे जाने वाले रूपए में लगातार जारी गिरावट “अच्छे दिन” लाने का सपना लेकर सत्ता संभालने वाली मोदी सरकार के लिए चिंता का सबब है और इसके मद्देनजर आर्थिक सुधारों की अवरूद्ध हो रही गति में तेजी लाने की जरूरत का संकेत भी है।

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