scriptशिव के इस सिद्धपीठ पर दस लाख से ज्यादा कांवड़िये करते हैं जलाभिषेक, होती है हर मनोकामना पूरी | Augharnath Temple is the unique confluence of Lord Shiva and freedom movement | Patrika News

शिव के इस सिद्धपीठ पर दस लाख से ज्यादा कांवड़िये करते हैं जलाभिषेक, होती है हर मनोकामना पूरी

locationमेरठPublished: Jul 16, 2017 12:48:00 pm

Submitted by:

lokesh verma

भगवान शिव आैर स्वतंत्रता आंदोलन का अनूठा संगम है ये मंदिर

Augharnath Temple at Meerut

Augharnath Temple at Meerut

मेरठ. देश के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम में आैघड़नाथ मंदिर का नाम इतिहास में दर्ज है। पहले इस मंदिर को काली पल्टन मंदिर के नाम से जाना जाता था। क्योंकि ब्रिटिश काल में भारतीय पल्टनों के पास यह मंदिर था आैर भारतीय सैनिक यहां स्थित मंदिर में पूजा करने आते थे। आजादी के बाद 1972 में पहली बार इस मंदिर को भव्य रूप दिया गया। इसके बाद लोगों की भगवान शिव के प्रति श्रद्धा इतनी बढ़ी कि श्रद्धालुआें के लिए अब यह सिद्धपीठ श्री आैघड़नाथ मंदिर बन चुका है। श्रावण शिवरात्रि पर देश में शायद ही एेसा कोर्इ मंदिर होगा, जहां दस लाख से ज्यादा शिवभक्त भगवान का जलाभिषेक करते होंगे आैर इस बार तो यह संख्या काफी बढ़ने जा रही है। फिर यहां लगने वाले मेले में तो शहर ही नहीं आसपास आैर दूर-दराज के लोग भी पहुंचते हैं।



1857 से पहले से है मंदिर

बताया जाता कि 1857 स्वतंत्रता संग्राम से पहले से ही यहां यह प्राचीन शिव मंदिर स्थित है। 1856 के आसपास यहां धूंधपंत बाबा साहब इस मंदिर के पुजारी थे। यहां भारतीय सैनिक पूजा-अर्चना करने आते थे। ब्रिटिश अफसरों ने जब बंदूकों में चर्बीयुक्त कारतूस चलाना जरूरी कर दिया, तो मंदिर के पुजारी ने इन सैनिकों को पानी पिलाने से मना कर दिया। वैसे भी भारतीय सैनिकों में ब्रिटिश सैनिकों के खिलाफ चर्बीयुक्त कारतूस को लेकर विद्रोह तो बढ़ ही रहा था। पुजारी की बात ने आग में घी का काम किया। सैनिकों का यही विद्रोह देश के पहले स्वतंत्रता संग्राम के रूप में सामने आया। भारतीय पल्टनों के समीप होने के कारण इसका नाम काली पल्टन मंदिर पड़ा। यहां स्वतंत्रता को लेकर भारतीय गुप्त बैठकें भी करते थे।

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1968 में नवीन मंदिर का शिलान्यास

बुजुर्ग बताते हैं कि आजादी के बाद तक भी यहां छोटा मंदिर व कुआं दिखता था। 1968 में नवीन मंदिर का शिलान्यास शंकराचार्य कृष्णबोधाश्रम महाराज ने किया था। इसके बाद 1972 में इस मंदिर को भव्य रूप दिया गया। श्री आैघड़नाथ मंदिर में शिवलिंग जमीन से ही निकला है। इस सिद्धपीठ पर लोग दूर-दूर से अपनी मनोकामना लेकर आते हैं। शिवरात्रि समेत अनेक त्योहारों पर यहां विशेष पूजा होती है आैर मेला भी लगता है।

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श्रावण शिवरात्रि पर जलाभिषेक

श्रावण शिवरात्रि पर हर साल करीब दस लाख कांवड़िये हरिद्वार से जल लाकर यहां भगवान शिव का जलाभिषेक करते हैं। हर साल कांवड़ियों की संख्या लगातार बढ़ ही रही है। कांवड़ यात्रा आैर कांवड़ मेले का आयोजन शासन आैर प्रशासन के लिए पूरी व्यवस्थाआें के साथ सुरक्षा चुनौती बन गया है। कैंट क्षेत्र में होने के कारण सेना भी अति सुरक्षा को लेकर शामिल हो जाती है। इतने बड़े आयोजन से यहां आने वाले श्रद्धालुआें की संख्या से अंदाजा लगाया जा सकता है श्री आैघड़नाथ मंदिर की मान्यता का।
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