मेरठ। बदले जमाने में कांवड़ भी बदली है, इससे कांवड़ पर न सिर्फ काफी पैसा खर्च होता है, बल्कि यह हार्इटेक भी हुर्इ है। पिछले पांच-सात बरसों में सर्वश्रेष्ठ कांवड़ का पुरस्कार पाने की होड़ में कांवड़ों का कम्पीटिशन बढ़ गया है। इसलिए हर कोर्इ अपनी कांवड़ को भव्य रूप देना चाहता है, इसमें कितना ही खर्च आ जाए, शिवभक्त इसकी परवाह नहीं करते।
तीन हजार से दो लाख रुपये तक का खर्च
हम अक्सर सोचते हैं कि भगवान शिव का जलाभिषेक करने के लिए कांवड़ में हरिद्वार से गंगाजल ही तो लाना होता है, लेकिन इस गंगाजल को कैसे आैर किस तरह लाना है, इसमें अब कांवड़ियों में कम्पीटीशन आ गया है। इसलिए कांवड़ में गंगाजल तीन हजार रुपये की कांवड़ में भी लाया जा रहा है, तो इसे लाने के लिए कांवड़ियां दो लाख रुपये तक भी खर्च कर रहे हैं।
झांकियों आैर डीजे पर होता है बड़ा खर्च
झांकियों, डीजे आैर वाहनों पर कांवड़ियों का सबसे ज्यादा खर्च होता है। विभिन्न प्रकार की झांकियों को तरह-तरह के कारीगरों से बनवाया जाता है। फिर इन्हें चलाने के लिए वाहनों आैर डीजे के लिए कम से कम सात दिन का समय लगता है। भव्य झांकियों वाली कांवड़ लाने के लिए गांव या मौहल्ले के लोगों से सहायता ली जाती है।
भक्ति में नहीं देखी जाती जेब
मेरठ, गाजियाबाद आैर हापुड़ के कर्इ कांवड़ियों का समूह बड़ी-बड़ी झांकियों, डीजे व अन्य साजो-सामान के साथ शहर में पहुंचें। इन्होंने बताया कि कांवड़ लाने के लिए हम खुद अपने पास से खर्चा करते हैं आैर कम पड़ने में अन्य लोगों से सहयोग लेते हैं। भोले को खुश करने के लिए जेब नहीं देखी जाती।
सर्वश्रेष्ठ कांवड़ों को पुरस्कार
श्री आैघड़नाथ मंदिर में जलाभिषेक के लिए सर्वश्रेष्ठ कांवड़ लाने वाले कांवाड़ियों को पुरस्कार प्रदान किया जाता है। इसमें सर्वश्रेष्ठ तीन कांवड़ों को 51 हजार रुपये तक का पुरस्कार दिया जाता है। भव्य कांवड़ लाने की एक वजह यह भी है कि कांवड़ियों में कांवड़ का कम्पीटीशन बढ़ गया है।