scriptस्वच्छ गंगा के लिए 550 किमी की तैराकी पर निकली 11 साल की ‘जलपरी’ | 11 years old kanpur girl to cover 550 km by swimming in Ganga | Patrika News

स्वच्छ गंगा के लिए 550 किमी की तैराकी पर निकली 11 साल की ‘जलपरी’

Published: Aug 29, 2016 11:43:00 am

कानपुर की श्रद्धा शुक्ला ने कानपुर के गंगा घाट से शुरू की यात्रा। 10 दिनों में वाराणसी पहुंचेगी।

Clean Ganga

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कानपुर. नेक काम में उम्र आड़े नहीं आती। इसे साबित कर रही है कानपुर की 11 वर्षीय श्रद्धा शुक्ला। नन्ही जलपरी नाम से मशहूर यह बच्ची स्वच्छ गंगा का संदेश देने के लिए गंगा में 550 किलोमीटर की तैराकी करने निकल पड़ी है। उसके पिता का दावा है कि ऐसा करने से वो इतनी लंबी दूरी तक तैराकी करने वाली पहली भारतीय बन जाएगी।


कानपुर से यात्रा शुरू की 

रविवार को श्रद्धा ने कानपुर से अपनी यात्रा शुरू की। तैराकी का यह सफर वाराणसी के गंगा घाट पर पूरा होगा। वह 550 किलोमीटर तक तैराकी करेगी। इस दौरान इलाहाबाद के संगम से होकर भी गुजरेगी। इसमें 70 घंटे लगेेंगे। माना जा रहा है कि दस दिन में सफर पूरा होगा। बहरहाल, बच्ची के पिता ललित शुक्ला ने बताया कि गंगा के प्रति उसकी आस्था है। यही वजह है कि उसने खुद से ऐसा कर संदेश देने का ठाना। पिता कहते हैं कि सफर चुनौती भरा है। सभी ने मना भी किया पर वो नहीं मानी। अपनी यात्रा के पहले दिन वो करीब 100 किलोमीटर तक तैराकी करते हुए उन्नाव के चंद्रीका देवी घाट पहुंचेगी।

दो साल पहले 282 किमी तक तैराकी की

 इससे पहले भी श्रद्धा लंबी दूरी तक तैराकी कर चुकी है। साल 2014 में कानपुर से इलाहाबाद के बीच गंगा में तैराकी की थी। कुल 282 किलोमीटर की यात्रा रही थी। कानपुर के गंगा घाट में डुबकी लगाने के बाद इस होनहार लड़की ने कहा कि मैं सिर्फ रिकॉर्ड के लिए नहीं बल्कि अपनी आस्था के कारण इस चुनौती को स्वीकार कर रही हूं। बकौल श्रद्धा, मैं बचपन से ही गंगा को साफ करने से जुड़े भाषण सुनती आई हूूं लेकिन अब तक कुछ नहीं हुआ। हम अंदर से जम गए हैं। इस जमी सोच को पिघालने के लिए ही मैंने यह मुहिम शुरू की है। 

कानुपर में गंगा सबसे ज्यादा दूषित

गंगा नदी हिमालय के गौमुख से निकल यूपी के विभिन्न शहरों से गुजरकर कोलकाता होते हुए ब्रह्मपुत्र नदी में जाकर मिलती है। लेकिन इन पड़ावों में सबसे ज्यादा वह कानपुर शहर में दूषित है। दरअसल, कानपुर में देश का 70 फीसदी चमड़े का कारोबार है। चमड़े को पक्का कर विदेशों में निर्यात किया जाता है। हर गली में छोटे-छोटे कारखाने हैं। चमड़ों की पॉलिश से निकलने वाला गंदा पानी नाले से होते हुए सीधे गंगा नदी में जाकर गिरता है। सरकार की ओर से कई कदम भी उठाए गए लेकिन वो सिर्फ कागजी साबित हुए। 


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