स्टडी से पता चला कि 13.48 प्रतिशत से लेकर 95.17 प्रतिशत दिनों तक ये ट्रेनें अपनी मंजिल पर देरी से पहुंचीं। कुल मिलाकर 21 सुपरफास्ट ट्रेनें अपने संचालन के 16,804 दिनों में से 3,000 दिन लेट रहीं।
नई दिल्ली। शुक्रवार को संसद के पटल पर रखी गई रिपोर्ट के माध्यम से सीएजी ने सुपरफास्ट ट्रेनों की लेटलतीफी पर सवाल उठाया। रिपोर्ट में कहा गया किया रेलवे सुपरफास्ट सरचार्ज के नाम पर यात्रियों से करोड़ों रुपये वसूलती है, लेकिन सुपरफास्ट तमगे वाली कई ट्रेनें न तो सुपरफास्ट गति से चलती हैं और न ही वक्त पर यात्रियों को उनके गंतव्य तक पहुंचती हैं।
3000 दिन लेट रहीं ट्रेन
रेलवे बोर्ड के मुताबिक 55 किलोमीटर प्रति घंटा से ज्यादा की रफ्तार वाली ट्रेनें सुपरफास्ट ट्रेनों की श्रेणी में आती हैं। 2013-14 से 2015-16 तक नॉर्थ सेंट्रल रेलवे और साउथ सेंट्ल रेलवे में इन ट्रेनों की आवाजाही को लेकर की गई स्टडी से पता चला कि 13.48 प्रतिशत से लेकर 95.17 प्रतिशत दिनों तक ये ट्रेनें अपनी मंजिल पर देरी से पहुंचीं। कुल मिलाकर 21 सुपरफास्ट ट्रेनें अपने संचालन के 16,804 दिनों में से 3,000 दिन लेट रहीं। जबकि 2013 से 2016 के बीच कोलकाता-आगरा कैंट सुपरफास्ट ट्रेन 145 में से 138 दिन अपने गंतव्य पर देर से पहुंची।
सरचार्ज के नाम पर वसूले 11.17 करोड़
सीएजी की रिपोर्ट में बताया गया है कि नॉर्थ सेंट्रल रेलवे और साउथ सेंट्ल रेलवे ने ‘सुपरफास्टÓ सरचार्ज के नाम पर यात्रियों से 11.17 करोड़ रुपये वसूले, लेकिन उनकी कुछ सुपरफास्ट ट्रेनें 95 प्रतिशत से ज्यादा बार लेट हुईं।
ये है सरचार्ज की व्यवस्था
रेलवे के अनुसार सुपरफास्ट सरचार्ज अलग-अलग क्लास के लिए अलग निर्धारित किया गया है। यह जनरल कोच के लिए यह 15 रुपये, स्लीपर के लिए यह 30 और एसी के लिए यह 45 रुपये है (चेयर कार, एसी-3 इकॉनमी, एसी-3, एसी-2), जबकि एसी फस्र्ट एग्जिक्युटिव क्लास के लिए यह 75 रुपये है। यह सरचार्ज 1 अप्रैल, 2013 से लागू किया गया है।
सरचार्ज लौटाने का नहीं नियम
रेलवे अधिकारियों से जब इस बारे में पूछा गया कि ट्रेन लेट होने की स्थिति में सुपरफास्ट सरचार्ज यात्रियों को लौटाना नहीं चाहिए। इस पर आगरा डिविजनल कमर्शियल मैनेजर संचित त्यागी ने कहा अभी ऐसा कोई नियम नहीं है कि अगर कोई ट्रेन लेट होती है तो यात्रियों को पैसा रिफंड किया जाए, लेकिन अगर कोई यात्री टीडीआर फाइल करता है तो उसे रिफंड करने की व्यवस्था है।