नई दिल्ली । शून्य से कई डिग्री नीचे तापमान के लिए हमारी शारीरिक संरचना नहीं बनी है लेकिन इन कठिन परिस्थितियों के बावजूद सेना के जवान इन दिनों कश्मीर और अन्य इलाकों में जारी बर्फबारी से न केवल जूझ रहे हैं बल्कि पूरी मुस्तैदी से देश की सीमाओं की रक्षा कर रहे हैं।
बर्फबारी से सेना के जवानों को सबसे अधिक परेशानी उस समय होती है, जब उनके हाथों और पैरों की अंगुलियां सुन्न हो जाती हैं। चूंकि तापमान काफी कम हो जाने कारण जवानों की अंगुलियों में ब्लड सर्कुलेशन (रक्त संचार) रुक सा जाता है। ऐसे में सेना के जवानों के लिए अनिवार्य हो जाता है कि वे जल्दी ही अपने कैंप पहुंचकर अपने पैरों व हाथों के अंगुलियो को गर्म पानी में डालकर उन्हें सामान्य करें। यदि ऐसा नहीं किया गया तो पैरों और हाथों की अंगुलियां गलने लगती हंै। इसे मेडिकल भाषा में स्ïनो बाइट कहा जाता है। बर्फबारी में स्ïनो बाइट सबसे बड़ी बीमारी है। यह बात सेना के एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताई।
पानी का बड़ा संकट
अधिकारी ने बताया कि सेना के जवानों को केवल स्ïनो बाइट जैसी बीमारी से ही नहीं जूझना पड़ता, बल्कि उनके सामने ऐसे मौसम में पीने के पानी का संकट भी हो जाता है। चूंकि ऐसी परिस्थितियों में हर प्रकार की सप्लाई बंद हो जाती है। ऐसे में जवानों को बर्फ को ही गर्म कर उसे पीने योग्य बनाना पड़ता है। इसके अलावा सड़कें बंद हो जाती हैं और इसका असर मूवमेंट पर पड़ता है। सेना के जवानों को ऑपरेशन रोल के साथ-साथ बर्फबारी के दौरान वेदर ऑपरेशन रोल की भूमिका भी निभानी पड़ती है। हालांकि सेना के अधिकारी ने कहा कि हमारे जवान विपरीत परिस्थितियों में पूरी तरह से तैयार रहते हैं। क्योंकि उन्हें इन विकट परिस्थितियों का सामना करने के लिए प्रशिक्षित किया जाता है।
शरीर को गर्म रखना बड़ी चुनौती
अधिकारी ने बताया कि बर्फबारी के दौरान सेना के जवानों के सामने सबसे बड़ी चुनौती होती है अपने शरीर को गर्म रखना। इसके लिए तमाम प्रकार का जरूरी सामान उन्हें अपने साथ रखना होता है। अपनी ड्रेस बिना बेस कैंप पहुंचे नहीं बदल सकते हैं। उनके सामने यह भी एक बड़ी चुनौती होती है कि शून्य से नीचे तापमान के समय शरीर का कोई भी अंग खुला न रह जाए, ऐसी स्थिति में अंग भंग होने का खतरा हो जाता है। यही नहीं कई जवानों को बीपी यानी ब्लड प्रेशर की समस्या से भी जूझना पड़ता है।
दुर्गम इलाकों में तैनाती
बर्फबारी में सेना के जवानों को कई विपरीत परिस्थतियों में मोर्चा संभालना होता है लेकिन इन सब परिस्थितियों में हमारे सेना के जवान पूरी तैयारी से ऐसे दुर्गम इलाकों में तैनात रहते हैं और देश की सीमाओं की रक्षा पूरी मुस्तैदी के साथ करते हैं।
-कर्नल रोहन आनंद (जनसंपर्क अधिकारी, थल सेना, नई दिल्ली)
दो-दो मोर्चों से होता है सामना
बर्फबारी के दौरान जवानों को वास्तव में दो-दो मोर्चों पर लडऩा होता है। पहला अपने शरीर को ठंड से बचाना और दूसरा देश की सीमाओं की रक्षा करना। स्ïनो बाइट से लेकर अपनी स्किन कटने जैसे विपरीत हालात में देश की सीमाओं की रक्षा करनी होती है।
– मेजर एस. त्रिपाठी, (पूर्व सेना अधिकारी, थल सेना)