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हाजी अली में बिना किसी विरोध के प्रवेश पाकर खुश हुई तृप्ती देसाई

तृप्ति ने कहा, हाजी अली दरगाह में प्रवेश करने पर किसी ने नहीं रोका, कई
मुस्लिम महिलाओं ने हमारा समर्थन किया इससे मैं काफी खुश हूं

Aug 28, 2016 / 04:53 pm

Abhishek Tiwari

Trupti Desai

Trupti Desai

मुंबई। हाजी अली दरगाह में महिलाओं के प्रवेश को लेकर आए हाई कोर्ट के फैसले के बाद महिला अधिकारों के लिए काम करने वाले संगठन भूमाता ब्रिगेड की प्रमुख तृप्ति देसाई ने रविवार को दरगाह में प्रवेश किया और इस दौरान उन्हें किसी तरह का विरोध नहीं झेलना पड़ा इसलिए उन्होंने खुशी जताई।

तृप्ति ने कहा, हाजी अली दरगाह में प्रवेश करने पर किसी ने नहीं रोका, कई मुस्लिम महिलाओं ने हमारा समर्थन किया इससे मैं काफी खुश हूं। शनिदेव की जिस तरह हमने पूजा-अर्चना की उसी तरह हाजी अली दरगाह में भी हमने प्रवेश किया।

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प्रसिद्ध हाजी अली दरगाह में महिलाओं के प्रवेश की इजाजत संबंधित मुंबई हाईकोर्ट के फैसले का तृप्ति देसाई ने स्वागत किया था और कहा था, हम हाई कोर्ट के फैसले का स्वागत करते हैं और आज दरगाह में महिलाओं के साथ प्रवेश करेंगे। ज्ञात हो कि हाजी अली दरगाह में पहले महिलाओं के प्रवेश की मनाही थी। दरगाह के गर्भगृह में महिलाओं के प्रवेश पर साल 2011 से प्रतिबंध लगा हुआ था।



आपको बता दें कि बॉम्बे हाईकोर्ट ने महिलाओं के दरगाह में मजार तक जाने पर लगी पाबंदी को हटा दिया था। हाईकोर्ट ने राज्य सरकार से दरगाह जाने वाली महिलाओं को सुरक्षा मुहैया कराने को कहा था। जस्टिस वीएम कनाडे और जस्टिस रेवती मोहिते डेरे की खंडपीठ ने फैसले में कहा कि संविधान में महिलाओं और पुरुषों को बराबरी का दर्जा दिया गया है। जब पुरुषों को इसके अंदर जाने की इजाजत है तो महिलाओं को भी अंदर जाने देना चाहिए। शनि शिंगणापुर में महिलाओं के प्रवेश को लेकर आंदोलन चलाने वाली तृप्ति देसाई ने हाईकोर्ट के फैसले पर खुशी जताई है। उन्होंने कहा, यह ऐतिहासिक व बड़ी जीत है। तृप्ति देसाई ने दरगाह में बने मकबरे तक महिलाओं को जाने देने के लिए आंदोलन भी चलाया था।



2011 तक महिलाओं के प्रवेश पर यहां कोई पाबंदी नहीं थी लेकिन 2012 में दरगाह के प्रबंधन ने यह कहते हुए महिलाओं की एंट्री पर रोक लगा दी कि शरिया कानून के मुताबिक महिलाओं को कब्रो पर जाना गैर इस्लामी है। नूरजहां सफिया नियाज ने अगस्त 2014 में कोर्ट में याचिका दाखिल की थी। उन्होंने कोर्ट से हाजी अली के मकबरे तक महिलाओं के प्रवेश की इजाजत मांगी थी। नियाज की ओर से वरिष्ठ वकील राजीव मोरे ने हाईकोर्ट में पैरवी की।



अदालत ने दोनों पक्षों को आपसी सहमति से मामला सुलझाने को कहा लेकिन दरगाह के अधिकारी महिलाओं को प्रवेश नहीं देने पर अड़े रहे। ट्रस्ट का कहना है कि यह प्रतिबंध इस्लाम का अभिन्न अंग है। अगर महिलाएं दरगाह के भीतर प्रवेश करती हैं तो यह महापाप होगा। हाजी अली की दरगाह मुख्य सड़क से करीब 400 मीटर की दूरी पर एक छोटे से टापू पर बनी है,जो समुद्र से घिरी हुई है और करीब 4500 वर्ग फीट में फैली हुई है। यहां तक पहुंचने के लिए मुख्य सड़क से एक पुल बना हुआ है।

दरगाह तक केवल निम्न ज्वार के समय ही पहुंचा जा सकता है क्योंकि पुल की ऊंचाई काफी कम है। दरगाह का निर्माण सैयद पीर हाजी अली शाह बुखारी की स्मृति में 1431 में किया गया। यह दरगाह मुस्लिम व हिंदू दोनों समुदायों के लिए विशेष धार्मिक महत्व रखती है। हाजी अली ट्रस्ट के मुताबिक हाजी अली उज्बेकिस्तान के बुखारा प्रांत से सारी दुनिया का भ्रमण करते हुए भारत पहुंचे थे।

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