अरुणाचल में राष्ट्रपति शासन लगाने के मामले में सुप्रीम कोर्ट सख्त, भाजपा के वकील ने कहा था राज्यपाल के निर्णय पर नहीं हो सकती सुनवाई
नई दिल्ली। अरुणाचल प्रदेश में राष्ट्रपति शासन लगाने के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि राज्यपाल के सभी निर्णयों की न्यायिक समीक्षा की जरूरत नहीं है, लेकिन जब लोकतंत्र की हत्या हो रही हो, तो हम मूकदर्शक नहीं रह सकते। जस्टिस जेएस केहर के नेतृत्व में पांच जजों की बेंच ने गुरुवार को यह टिप्पणी उस दलील पर की, जिसमें भाजपा विधायकों के वकील ने कहा कि अदालत राज्यपाल के निर्णय पर सुनवाई नहीं कर सकती।
अगली सुनवाई 8 को
अधिकारियों द्वारा प्रस्तुत दस्तावेजों पर असंतुष्टि जताते हुए कोर्ट ने पिछले साल अक्टूबर से लेकर अब तक अरुणाचल विधानसभा से पत्राचार के सभी डिस्पैच रिकॉर्ड मांगे हैं। अगली सुनवाई 8 फरवरी को है। पीठ विधानसभा स्पीकर नबाम रेबिया और राज्यपाल जेपी राजखोवा के बीच सत्र को चलाने व बागी विधायकों को डिस्क्वालीफाई करने जैसे मुद्दों पर हुई बातचीत को भी जानना चाहती है।
बागी विधायकों ने रखा अपना पक्ष
कांग्रेस के बागी विधायकों के वकील राकेश द्विवेदी ने कोर्ट के समक्ष दलील प्रस्तुत करते हुए राज्यपाल के फैसले का समर्थन किया। उन्होंने कहा, फैसले को अलोकतांत्रिक नहीं ठहराया जा सकता व न ही लोकतांत्रिक प्रक्रिया बाधित हुई है। राज्यपाल के लिए मुख्यमंत्री की सलाह लेना जरूरी नहीं है। उन्होंने सवाल किया, जो सरकार अपना आधार खो चुकी है, जो सदन से भाग रही है, उसके खिलाफ सुनाए गए फैसले को अवैध कैसे ठहराया जा सकता है?