केन्द्रीय गृहमंत्री राजनाथ सिंह ने गुरुवार को कहा कि जम्मू-कश्मीर घाटी में उग्र भीड़ को काबू करने के लिए इस्तेमाल की जा रही पैलेट गन को बंध किया जाएगा
नई दिल्ली। केन्द्रीय गृहमंत्री राजनाथ सिंह ने गुरुवार को कहा कि जम्मू-कश्मीर घाटी में उग्र भीड़ को काबू करने के लिए इस्तेमाल की जा रही पैलेट गन को बंध किया जाएगा। उनकी जगह अब मिर्च से भरी पावा शेल्स विकल्प के रूप में अपनाई जा सकती है। बताया जा रहा है कि गृहमंत्री राजनाथ सिंह द्वारा बनाई गई एक्सपर्ट कमेटी ने टेस्ट बाद इसे हरी झंडी दिखा दी है।
क्या है पावा सेल्स और पैलेट गन
आपको बता दें कि पावा शेल, मिर्च के गोले हैं जिससे टारगेट को ज्यादा नुकसान नहीं पहुंचता। बताया जा रहा है कि इन गोलों को किसी टारगेट पर दागे जाने से वह कुछ मिनटों के लिए एकदम स्थिर हो जाता है और कुछ कर नहीं पाता। पावा यानी पेलागॉर्निक एसिड वनीलल अमाइड को नॉनिवमाइड के नाम से भी जाना जाता है। यह प्राकृतिक काली मिर्च में पाया जाने वाला कार्बनिक यौगिक है। इसका प्रयोग किसी व्यक्ति को कुछ समय के लिए इरिटेट कर सकता है और वह थोड़ी देर तक कुछ न कर पाने की हालात में जा सकता है। इससे ज्यादा ये गोले हानि नहीं पहुंचाते।
फिलहाल घाटी में सेना पत्थरबाज यानी प्रदर्शनकारियों की भीड़ को नियंत्रित करने के लिए पैलेट गन का इस्तेमाल कर रही है। पैलेट छोटे-छोटे छर्रे होते हैं, जो टारगेट के शरीर में जाकर चुभ जाते हैं। हालांकि इन छर्रों से घायल लोगों की आंखों को काफी नुकसान पहुंचता है। इससे अंधे होने के कई मामले भी सामने आए हैं।
साल 2010 में पेलेट गन से हुई थी 100 मौतें
गौरतलब है कि घार्टी में 2010 के बाद पहली बार इस तरह के प्रदर्शन हो रहे हैं। 2010 में हुई हिंसा के दौरान पैलेट गन का पहली बार इस्तेमाल किया गया था और इस हिंसा में 100 लोगों की मौत हो गई थी। राजनाथ सिंह ने दो-तीन दिनों के भीतर ही विवादित पैलेट गन का विकल्प देने की बात कही है और एक्सपर्ट मिर्ची के इन गोलों को ही सबसे बढिय़ा विकल्प के तौर पर देख रहे हैं।
सूत्रों ने बताया कि गृह मंत्रालय, जम्मू-कश्मीर पुलिस, बीएसएफ, सीआरपीएफ, आईआईटी-दिल्ली और ऑर्डिनेंस फैक्ट्री बोर्ड के 7 सदस्यों वाली कमिटी भीड़ को कंट्रोल करने के तरीकों पर मंथन कर रही है। बता दे कि इन शेल्स को सायंटिफिक एड इंडस्ट्रियल रिसर्च (सीएसआईआर) के तहत लखनऊ स्थित के प्रयोगशाला में इंडियन इंस्टिट्यूट ऑफ टॉक्सिकॉलची रिसर्च (आईआईटीआर) ने डिवेलप किया था।