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SC की अहम टिप्पणी, दोषियों को गुपचुप फांसी नहीं दी जा सकती

कोर्ट ने कहाकि फांसी की सजा के मामले में भी दोषियों के जीवन की गरिमा का ख्याल रखा जाना चाहिए

May 28, 2015 / 08:18 am

शक्ति सिंह

Supreme Court

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नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने फांसी देने के मामले में बड़ा फैसला सुनाते हुए कहा है कि दोषी ठहराए गए कैदियों को गुपचुप तरीके से फांसी नहीं दी जा सकती। कोर्ट ने कहाकि, दोषी लोगों की भी गरिमा और आत्मसम्मान होता है और हर तरह के कानूनी उपचार करने और परिवार वालों से मिलने की अनुमति दी जानी चाहिए।

जस्टिस एके सीकरी और यूयू ललित ने उत्तर प्रदेश में 2008 में परिवार के सात लोगों की हत्या की दोषी एक महिला और उसके प्रेमी की फांसी पर रोक लगाते हुए टिप्पणी की, किसी को फांसी की सजा सुनाए जाने के साथ ही अनुच्छेद 21 के तहत प्रदत्त जीवन का अधिकार समाप्त नहीं हो जाता। फांसी की सजा के मामले में भी दोषियों के जीवन की गरिमा का ख्याल रखा जाना चाहिए। उन्हें मनमाने ढंग से, जल्दबाजी में या गुपचुप फांसी नहीं दी जा सकती।

अपेक्स कोर्ट ने आगे कहाकि, सेशंस जज ने दोनों के खिलाफ जल्दबाजी में फैसला सुनाया और डेथ वारंट पर साइन किए। जजों ने आरोपियों को कानूनी उपचार का समय नहीं दिया। दोषियों को पुनर्विचार याचिका और दया याचिका दाखिल करने का समय मिलना चाहिए। प्राकृतिक न्याय के नियमों का पालन होना चाहिए और आरोपी को बचाव का पूरा मौका दिया जाना चाहिए।

उच्चतम न्यायालय की यह टिप्पणी कई मामलों में अहम है। संसद हमले के दोषी अफजल गुरू को 2013 में गुपचुप फांसी दे दी गई थी। फांसी दिए जाने से पहले उसके परिवार को सूचित भी नहीं किया गया था। उसकी फांसी पर कई लोगों ने सवाल उठाए थे। 

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