जस्टिस टीएस ठाकुर की अगुवाई वाली तीन जजों की पीठ ने कहा, “संसद ने नागरिकों की सुरक्षा और संरक्षा तथा देश की एकता, संप्रभुता और अखंडता के लिए चिंता जताई थी और यह कानून बनाया गया था। इस पृष्ठभूमि को देखते हुए, धारा 364 के विपरीत कृत्य करने वालों के लिए निर्घारित सजा को असंवैधानिक बताने के लिए अपराध की प्रकृति की तुलना में कहीं ज्यादा क्रूर नहीं कहा जा सकता।” सुप्रीम कोर्ट की यह व्यवस्था एक दोषी की याचिका पर आई, जिसे अपहरण सह-हत्या के एक मामले में मौत की सजा सुनाई गई है।
मौत की सजा पर रिपोर्ट अगले हफ्ते
मौत की सजा दी जानी चाहिए या नहीं, इस विषय पर विधि आयोग अपनी रिपोर्ट अगले सप्ताह सुप्रीम कोर्ट को सौंपेगा। इस विषय पर चर्चा के दौरान ज्यादातर लोगों ने मौत की सजा का विरोध किया। रिपोर्ट इस मुद्दे पर केंद्रित होगी कि क्या भारत में मौत की सजा खत्म कर दी जानी चाहिए या नहीं। रिपोर्ट की एक प्रति कानून मंत्री को सौंपी जाएगी, क्योंकि पैनल के प्रावधानों में किसी भी बदलाव की मांग पर संसद ही विचार करेगी।