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अपहरण के लिए फांसी देना क्रूरता नहीं: सुप्रीम कोर्ट

Published: Aug 24, 2015 08:34:00 am

सुप्रीम कोर्ट की यह व्यवस्था एक दोषी की याचिका पर आई, जिसे अपहरण सह-हत्या के एक मामले में मौत की सजा सुनाई गई है

Supreme Court

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नई दिल्ली। अपहरण के बढ़ते मामलों के मद्देनजर सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट कर दिया है कि इसे रोकने के लिए दोषियों को कड़ी से कड़ी सजा देना बहुत जरूरी है। सर्वोच्च अदालत ने भारतीय दंड संहिता की धारा 364ए के तहत एक दोषी को सुनाई गई मौत की सजा को बरकरार रखते हुए कहा, “धन के लिए सिर्फ सामान्य अपराधियों द्वारा ही नहीं बल्कि आतंककारी संगठनों द्वारा भी अपहरण और किसी को गैरकानूनी तरीके से जबरन अपने साथ ले जाने की चुनौती बढ़ती जा रही है। इससे निपटने के लिए दोषियों के लिए धारा 364ए का समावेश और कड़ी सजा जरूरी है।” 



जस्टिस टीएस ठाकुर की अगुवाई वाली तीन जजों की पीठ ने कहा, “संसद ने नागरिकों की सुरक्षा और संरक्षा तथा देश की एकता, संप्रभुता और अखंडता के लिए चिंता जताई थी और यह कानून बनाया गया था। इस पृष्ठभूमि को देखते हुए, धारा 364 के विपरीत कृत्य करने वालों के लिए निर्घारित सजा को असंवैधानिक बताने के लिए अपराध की प्रकृति की तुलना में कहीं ज्यादा क्रूर नहीं कहा जा सकता।” सुप्रीम कोर्ट की यह व्यवस्था एक दोषी की याचिका पर आई, जिसे अपहरण सह-हत्या के एक मामले में मौत की सजा सुनाई गई है।



मौत की सजा पर रिपोर्ट अगले हफ्ते
मौत की सजा दी जानी चाहिए या नहीं, इस विषय पर विधि आयोग अपनी रिपोर्ट अगले सप्ताह सुप्रीम कोर्ट को सौंपेगा। इस विषय पर चर्चा के दौरान ज्यादातर लोगों ने मौत की सजा का विरोध किया। रिपोर्ट इस मुद्दे पर केंद्रित होगी कि क्या भारत में मौत की सजा खत्म कर दी जानी चाहिए या नहीं। रिपोर्ट की एक प्रति कानून मंत्री को सौंपी जाएगी, क्योंकि पैनल के प्रावधानों में किसी भी बदलाव की मांग पर संसद ही विचार करेगी।
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