scriptचुनाव और धर्म अलग, धर्म के नाम पर राजनीति गलतः सुप्रीम कोर्ट | Election and religion are separate, don't mixed it: supreme court | Patrika News

चुनाव और धर्म अलग, धर्म के नाम पर राजनीति गलतः सुप्रीम कोर्ट

Published: Oct 21, 2016 12:15:00 am

 सुप्रीम कोर्ट की सात जजों की बेंच ने साफ तौर पर कहा कि धर्म और राजनीति को मिक्स नहीं किया जा सकता है।

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नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट की सात जजों की बेंच ने गुरुवार को साफ तौर पर कहा कि धर्म और राजनीति को मिक्स नहीं किया जा सकता है। शीर्ष अदालत ने 20 साल पुराने हिंदुत्व जजमेंट मामले में सख्त टिप्पणी की। चीफ जस्टिस टीएस ठाकुर ने कहा क्यों न चुनाव में धर्म के आधार पर वोट मांगने को चुनावी अपराध माना जाए? चुनावी प्रक्रिया धर्मनिरपेक्ष होती है और इसके लिए धर्म का इस्तेमाल नहीं होना चाहिए।

जनप्रतिनिधि कानून की धारा 123 (3) में राष्ट्रीय प्रतीक और राष्ट्रीय चिन्ह शब्दों का जिक्र करते हुए प्रधान न्यायाधीश टीएस ठाकुर की अध्यक्षता वाली सात न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने कहा कि किसी को चुनावों में वोट हासिल करने के लिए उनके प्रयोग की अनुमति नहीं हो सकती।

चीफ जस्टिस ने कहा कि 20 साल से संसद के पास यह पेंडिंग है और इसके बारे में कोई कानून नहीं बनाया। इतने वक्त से मामला सुप्रीम कोर्ट में है, तो क्या यह इंतजार हो रहा था कि इस बारे में सुप्रीम कोर्ट ही फैसला करे जैसे यौन शौषण केस में हुआ। शीर्ष अदालत ने कहा कि धर्म को परिभाषित करना कोर्ट के सामने मुद्दा नहीं है, बल्कि हमारे सामने मुद्दा यह है कि क्या धर्म के नाम पर वोट मांगना जन प्रतिनिधित्व कानून के तहत भ्रष्ट प्रैक्टिस माना जाएगा?

सुप्रीम कोर्ट ने यह टिप्पणी याचिकाकर्ता सुंदरलाल पटवा के वकील की दलील पर की, जब कहा गया कि सुप्रीम कोर्ट को 1995 के जजमेंट को बने रहने देना चाहिए। चीफ जस्टिस ने कहा कि पटवा का केस ही देखें तो वे जैन समुदाय से हैं और कोई उनके लिए कहे कि वे जैन होने के बावजूद राम मंदिर बनाने में मदद करेंगे तो यह प्रत्याशी नहीं, बल्कि धर्म के आधार पर वोट मांगना होगा।

दरअसल 1995 के फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि ‘हिंदुत्व’ के नाम पर वोट मांगने से किसी उम्मीदवार को कोई फायदा नहीं होता है।’ उस वक्त सुप्रीम कोर्ट ने हिंदुत्व को ‘वे ऑफ लाइफ’ यानी जीवन जीने का एक तरीका और विचार बताया था। सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि हिंदुत्व भारतीयों की जीवन शैली का हिस्सा है और इसे हिंदू धर्म और आस्था तक सीमित नहीं रखा जा सकता। कोर्ट ने कहा था कि हिंदुत्व के नाम पर वोट मांगना करप्ट प्रैक्टिस नहीं है और रिप्रिजेंटेशन ऑफ पीपुल एक्ट की धारा-123 के तहत यह भ्रष्टाचार नहीं है।

आपको बता दें कि 1992 में महाराष्ट्र में विधानसभा चुनाव हुए थे। उस समय वहां के नेता मनोहर जोशी ने बयान दिया था कि महाराष्ट्र को वे पहला हिंदू राज्य बनाएंगे। इस पर काफी विवाद हुआ था और 1995 में बॉम्बे हाईकोर्ट ने उक्त चुनाव को रद्द कर दिया था। फिर यह मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंचा था। बाद में सुप्रीम कोर्ट में जस्टिस जेएस वर्मा की बेंच ने फैसला दिया था कि हिंदुत्व एक जीवन शैली है, इसे हिंदू धर्म के साथ नहीं जोड़ा जा सकता और बॉम्बे हाईकोर्ट के फैसले को पलट दिया था। वर्ष 2002 में मामले को विचार के लिए सात जजों की संवैधानिक पीठ को भेजा गया था। इसी तरह का एक मामला मध्य प्रदेश में भी हुआ था।

गौरतलब है कि सामाजिक कार्यकर्ता तीस्ता शीतलवाड़ और कई अन्य लोगों ने सुप्रीम कोर्ट में अर्जी दाखिल कर 20 साल पुराने हिंदुत्व जजमेंट को पलटने की मांग की है। याचिका में कहा गया है कि पिछले ढाई साल से देश में इन आदेशों की आड़ में इस तरह का माहौल बनाया जा रहा है, जिससे अल्पसंख्यक, स्वतंत्र विचारक और अन्य लोग खुद को असुरक्षित महसूस कर रहे हैं। ऐसे में सुप्रीम कोर्ट को ऐसे भाषण देने वालों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई करनी चाहिए।
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