नियमों के मुताबिक, माता-पिता को एक समिति के समक्ष कारण बताकर एक तय एडाप्शन सेंटर में नवजात बच्चे को देना होता है। अपने फैसले पर पुनर्विचार के लिए माता-पिता को दो माह का वक्त भी दिया जाता है। इसके बाद बच्चे को सेंटर में रखा जाता है।
चंडीगढ़:10 वर्षीय रेप पीड़िता के परिजनों ने तय किया है कि उनकी बेटी के होने वाले बच्चे को एक एडाप्शन सेंटर को सौंप देंगे। पीडि़ता सात माह की गर्भवती है। पीडि़त बच्ची की मां का कहना है कि अगर बच्चे को साथ रखते हैं तो उनकी बेटी जिंदगीभर की सामाजिक यातना को बर्दाश्त नहीं कर पाएगी। दिल पर पत्थर रखकर यह फैसला इसलिए लिया गया है ताकि वह फिर से अपनी जिंदगी शुरू करे, पढ़ाई करे और बाद में शादीशुदा जिंदगी भी हासिल करे।
कोर्ट ने नहीं दी इजाजत
दरअसल परिवार ने गर्भपात का भी विकल्प चुना था, मगर स्थानीय कोर्ट ने गर्भपात की अनुमति देने से इंकार कर दिया था। अदालत ने अपने फैसले में स्पष्ट कहा कि पीडि़ता को गर्भपात की इजाजत नहीं दी जा सकती है। कोर्ट ने कहा कि रेप पीडि़ता केवल गर्भ के 26 हफ्तों तक ही गर्भपात करा सकती है। जबकि रेप पीडि़ता सात माह की गर्भवती है।
ये है एडाप्शन सेंटर के नियम
नियमों के मुताबिक, माता-पिता को एक समिति के समक्ष कारण बताकर एक तय एडाप्शन सेंटर में नवजात बच्चे को देना होता है। अपने फैसले पर पुनर्विचार के लिए माता-पिता को दो माह का वक्त भी दिया जाता है। इसके बाद बच्चे को सेंटर में रखा जाता है।
कानून नहीं देता इजाजत
मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेगनेंसी एक्ट के अनुसार 20 हफ्तों तक ही गर्भपात कराया जा सकता है। बच्ची के साथ रेप करने का आरोपी कोई और नहीं, बल्कि उसका ही सगा मामा है।
डॉक्टर्स ने कोर्ट में जमा की रिपोर्ट
सरकारी मेडिकल कॉलेज और हॉस्पिटल के डॉक्टर्स ने इस मामले में गर्भपात को लेकर कोर्ट में अपनी परामर्श रिपोर्ट जमा की है। 10 वर्षीय बच्ची की प्रेगनेंसी को लेकर खुद डॉक्टर भी हतप्रध हैं। डॉक्टरों के अनुसार इतनी छोटी उम्र में इस तरह प्रेगनेंसी का मामला उनके सामने पहली बार आया है।