नई दिल्ली। उर्दू के मशहूर शायर और फिल्म गीतकार निदा फाजली का सोमवार को निधन हो गया। 78 साल के निदा फाजली को सांस लेने में दिक्कत आ रही थी। आपको बता दें कि निदा फाजली ने सूरदास की एक कविता से प्रभावित होकर शायर बनने का फैसला किया था। यह बात उस समय की है, जब उनका पूरा परिवार बंटवारे के बाद भारत से पाकिस्तान चला गया था, लेकिन निदा फाजली ने हिन्दुस्तान में ही रहने का फैसला किया। एक दिन वह एक मंदिर के पास से गुजर रहे थे तभी उन्हें सूरदास की एक कविता सुनाई दी, जिसमें राधा और कृष्ण की जुदाई का वर्णन था। निदा फाजली इस कविता को सुनकर इतने भावुक हो गए कि उन्होंने उसी क्षण फैसला कर लिया कि वह कवि के रूप में अपनी पहचान बनाएंगे।
फाजली ने असहिष्णुता पर साधा था निशाना देश में चल रही सहिष्णुता और असहिष्णुता के बहस में निदा फाजली ने भी निशाना साथा था। उन्होंने कहा था कि मुशायरों कवि सम्मेलनों में सांप्रदायिकता हावी है। सच बोलने वालों का हश्र कलबुर्गी, डाभोलकर व असलम ताहिर जैसा ही होगा। उनकी जुबान बंद कर दी जाएगी। राष्ट्रपति व अमरीकी के राष्ट्रपति असहिष्णुता की बात करते हैं तो कोई विरोध नहीं होता है, लेकिन जब कोई आम आदमी असहिष्णुता को मुद्दा बनाता है तो उसकी जाति पूछी जाती है।
विरासत में मिली थी शायरी निदा फाजली का जन्म 12 अक्टूबर 1938 को दिल्ली में हुआ था। शायरी उनको विरासत में मिली थी।उनके घर में उर्दू और फारसी के दीवानए संग्रह भरे पड़े थे। उनके पिता भी शेरो-शायरी में दिलचस्पी लिया करते थे और उनका अपना काव्य संग्रह भी था, जिसे निदा फाजली अक्सर पढ़ा करते थे।
1964 में मुंबई आए थे फाजली फाजली को शायरी और लिखने का शौक था, जल्द वे अपनी अनूठी शैली से लोगों की नजरों में आ गए। उस दौर के उर्दू साहित्यकारों को फाजली में एक उभरता हुआ कवि दिखाई दिया। उन्होंने फाजली को प्रोत्साहित भी किया और उन्हें मुशायरों में आने का न्योता दिया। फाजली मीर और गालिब की रचनाओं से प्रभावित थे, लेकिन उन्होंने बंधनों को तोड़ा और अपनी लेखनी को अलग मुकाम दिया। फाजली मुशायरों मे भी हिस्सा लेते रहे जिससे उन्हें पूरे देश भर मे शोहरत हासिल हुई।
फिल्मी दुनिया में किया 10 साल तक संघर्ष 70 के दशक में उन्होंने फिल्मों के लिए लिखना शुरु किया, मकसद था खुद के बढ़ते खर्चे। हालांकि फाजली को कोई सफलता नहीं मिली। उन्होंने अपना करियर डूबता हुआ था, लेकिन दस साल के संघर्ष के बाद 1980 में प्रदर्शित फिल्म आप तो ऐसे न थे में पाश्र्व गायक मनहर उधास की आवाज में अपने गीत तू इस तरह से मेरी जिंदगी में शामिल है की सफलता के बाद निदा फाजली कुछ हद तक गीतकार के रूप में फिल्म इंडस्ट्री मे अपनी पहचान बनाने में सफल हो गए। इस दौरान अचानक ही उनकी मुलाकात संगीतकार खय्याम से हुई, जिनके संगीत निर्देशन में उन्होंने फिल्म आहिस्ता-आहिस्ता के लिए कभी किसी को मुक्कमल जहां नहीं मिलता गीत लिखा। आशा भोंसले और भूपिंदर सिंह की आवाज में उनका यह गीत श्रोताओं के बीच काफी लोकप्रिय हुआ। गजल सम्राट जगजीत सिंह ने निदा फाजली के लिए कई गीत गाए, जिनमें 1999 मे प्रदर्शित फिल्म सरफरोश का यह गीत होश वालों को खबर क्या बेखुदी क्या चीज है भी शामिल है। फाजली को पदमश्री से भी सम्मानित किया गया।