दास्तां दोस्ती की- वो चिट्ठी थी उम्रभर की दोस्ती का पैगाम
Published: Jul 31, 2015 10:38:00 pm
दोस्ती की यह कहानी थोड़ी जुदा है। यह दो देशों, अलग-अलग संस्कृतियों और परम्पराओं के बीच की दोस्ती है।
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मिलती-जुलती रूचियों ने मिलाया
1982 चेकस्लोवाकिया के एक मैग्जीन में पेन फ्रेंड कॉलम में रघुनाथ मुखर्जी का प्रोफाइल दिया हुआ था। इस कारण उनके पास फॉरेन से कई लोगों का लेटर आना शुरू हुआ। इनमें एक नाम जर्मनी के मैथियास माटिंग भी थे। दोनों फिजिक्स के स्टूडेंट और नेचर के साथ लाइक व डिस्लाइक भी सेम थे। इनके बीच लेटर के जरिए अच्छी फ्रेंडशिप हो गई। दोनों एक-दूसरे के बेस्ट फ्रेंड बन गए।
टिकट भेजकर मिलने बुलाया
मैथियास अपने दोस्त से मिलना चाहते थे। ऎसे में रघुनाथ ने टीचर की जॉब ज्वॉइन कर सालभर में मात्र 7 हजार रूपए ही बचा पाए। इतने कम रूपए में विदेश जाना संभव नहीं था। जब इनके दोस्त को यह बात पता चली तो वे अपनी पत्नी और बहन के साथ इंडिया आ गए और जबलपुर अपने दोस्त के घर रहने लगे। उन्होंने अपने फॉरेन फ्रेंड को दिल्ली और आगरा की सैर कराई। फिर उन्होंने अपने दोस्त को जर्मनी बुलाने के लिए टिकट भेजी। इस तरह शुरू हुआ दोनों के मिलने का सिलसिला, इसके बाद दोनों दोस्त पेरिस और बर्लिन घूमे और खूब एंजॉय किया। मुलाकात अब लगातार जारी है।
दोनों की फैमिली बने दोस्त
दोनों दोस्त हर साल समर वैकेशन साथ बिताने लगे। दोनों की फैमिली की भी अच्छी दोस्ती हो गई। वर्ष 1994 में जब रघुनाथ मुखर्जी की शादी हुई और उनके जर्मन फ्रेंड मिलने आए। फिर रघुनाथ और उनकी वाइफ के लिए दोस्त ने पेरिस का टिकट भेजा।
2011 में सोशल साइट्स से फिर मिले
अमेरिका जाने के बाद मैथियास से कांटेक्ट नहीं हो पाया, लेकिन इतनी गहरी दोस्ती यहीं खत्म नहीं हुई। 2011 में रघुनाथ के बेटे ने सोशल साइट्स पर मैथियास को ढूंढ निकाला। 2013 में रघुनाथ अपनी वाइफ के साथ दोस्त मिलने जर्मनी गए और इनके बच्चों के बीच भी दोस्ती हो गई।
डीपीएस में पढने आएगी मैथियास की बेटी
इंडिया में खासकर छत्तीसगढ़ की संस्कृति को समझने के लिए एक्सचेंज प्रोग्राम के तहत सितम्बर में मैथियास की बेटी और वाइफ रायपुर के डीपीएस स्कूल आएंगी। उनकी बेटी एक साल तक यहां पढ़ाई करेंगी और वाइफ बच्चों को जर्मन लैंग्वेज पढ़ाएंगी।
(अंजलि राय)