अगले साल पटरी पर उतरेगी देश की पहली “बुलेट ट्रेन”
Published: Mar 01, 2015 03:13:00 pm
प्रस्तावित ट्रेन सेट में 21 कोच लगाए जा सकते हैं, जिसकी कीमत 150 करोड़ रूपए प्रति ट्रेन सेट पड़ेगी
नई दिल्ली। नरेंद्र मोदी सरकार की सपनों की बुलेट ट्रेन के सपने को साकार करने के लिए वक्त एवं धन की तंगी को देखते हुए रेलवे ने “बुलेट ट्रेन” की शक्ल वाले तेज रफ्तार ट्रेन सेट अगले साल से मौजूदा ट्रैक पर उतारने की तैयारी कर ली है। इस साल के रेल बजट में बुलेट ट्रेन जैसे ट्रेन सेट की घोषणा के पहले ही रेलवे ने इसके लिए अंतराराष्ट्रीय बाजार में विभिन्न निर्माताओं से अनौपचारिक रूप से सभी पहलुओं पर बात कर ली है जिसमें प्रौद्योगिकी हस्तांतरण की सहमति भी शामिल है।
उच्च पदस्थ सूत्रों के अनुसार, बजट में घोषणा के साथ ही रेलवे ने इस दिशा में कदम उठाने शुरू कर दिए हैं तथा पूरी उम्मीद है कि 2016 में मेट्रो रेल सेट की डिजायन वाले तीन से चार सेट भारतीय रेल की पटरियों पर दौड़ने लगेंगे। सूत्रों के मुताबिक, प्रस्तावित ट्रेन सेट में 21 कोच लगाए जा सकते हैं, जिसकी कीमत 150 करोड़ रूपए प्रति ट्रेन सेट पड़ेगी। हालांकि, रेलवे के जानकारों का कहना है कि इसे बुलेट ट्रेन की अत्यधिक महंगी परियोजना के मुकाबले यह भारत की किफायती हिन्दुस्तानी जुगाड़ वाली बुलेट ट्रेन परियोजना कहा जाए तो गलत नहीं होगा।
जानकारों का कहना है कि यह आइडिया भारतीय परिस्थितियों के सर्वथा अनुकूल है, इसलिए इसके विफल होने का कोई सवाल ही नहीं पैदा होता। सूत्रों के अनुसार, ट्रेन सेट के लिए जर्मनी और दक्षिण कोरिया के निर्माताओं से “मेक इन इंडिया” कार्यक्रम के तहत भारत में भारतीय निर्माताओं के साथ मिल कर इन ट्रेन सेट के निर्माण एवं प्रौद्योगिकी हस्तांतरण को लेकर सहमति मिल गई है।
एक सवाल के जवाब में उन्होंने कहा कि भारतीय निर्माताओं में रेलवे के कोच निर्माण कारखाने भी हो सकते हैं। पर भारतीय निर्माताओं के बारे में अभी कोई बातचीत नहीं हुई है। इन ट्रेन सेट में पावर कार और पैंट्री कार अलग से लगाने की जरूरत नहीं होती तथा हर डिब्बे में पैंट्रीकार की व्यवस्था होती है। इस लिहाज से इन ट्रेनों में यात्रियों की क्षमता पारंपरिक ट्रेनों के मुक ाबले 25 से 30 फीसदी ज्यादा होती है।
इन आधुनिक ट्रेन सेट का सबसे बड़ा फायदा यह है कि जहां पारंपरिक गाडियों में जहां दो मिनट के स्टापेज में ब्रेक लगाने एवं गाड़ी के पूरी गति पकड़ने में करीब 20 से 25 मिनट का वक्त लगता है, वहीं नए ट्रेन सेट में ब्रेकिंग प्रणाली त्वरित होती है यानी गाड़ी रोकने और रफ्तार पकड़ने में चंद सैकण्ड लगते हैं।
सूत्रों को कहना है कि दो तीन साल में लंबे मार्गो पर चलने वाली राजधानी और शताब्दी जैसी ट्रेनों को आधुनिक ट्रेन सेट में तब्दील किया जा सकता है। रेल मंत्रालय ने इसकी एक योजना तैयार की है। अभी राजधानी और शताब्दी जैसी प्रीमियम ट्रेनों की अधिकतम गति 130 किलोमीटर प्रति घंटा है और एक स्टापेज में खर्च होने वाला समय जोड़ लें तो इन गाडियों की औसत गति फिलहाल 90-100 किलोमीटर प्रतिघंटा आती है।
सूत्रों के अनुसार, अगर राजधानी-शताब्दी गाडियों में नए ट्रेन सेट प्रयोग किए जाए तो इससे ना सिर्फ इनकी गति 150 किलोमीटर प्रति घंटा की जा सकती है, बल्कि त्वरित ब्रेक प्रणाली के कारण इनकी औसत गति में भी खासा इजाफा हो सकता है। अगर यह संभव हुआ तो हावड़ा-नई दिल्ली और मुम्बई-नई दिल्ली मार्गो पर सफर में कम से कम तीन से चार घंटे कम लगेंगे।
सूत्रों के अनुसार, असली बुलेट ट्रेन की परियोजना की आर्थिक व्यवहार्यता एवं उसमें लगने वाले समय को देखते हुए ये नए ट्रेन सेट वाली परियोजना अधिक व्यवहारिक एवं किफायती साबित हो सकती है।