इंग्लैंड। अमरीका में हुए वैज्ञानिकों ने एक ताजा अध्ययन में यह पाया कि पिछले 250 वर्षों में वायुमंडल में मीथेन की मात्रा बढ़कर दोगुनी हो चुकी है। वैज्ञानिकों के अनुसार, ग्लोबल वार्मिंग के लिए मीथेन 20 फीसदी तक जिम्मेदार है। लेकिन, पिछले कुछ सालों के दौरान इसको लेकर भ्रम की स्थिति बनी रही।
वायुमंडल में मीथेन का उत्सर्जन की मात्रा में लगातार बढ़ोतरी दर्ज की जा रही थी लेकिन 1990 में इसका उत्सर्जन नहीं हो रहा है। माना गया कि 2007 तक मीथेन का उत्सर्जन स्थिर रहा, लेकिन उसके बाद इसकी मात्रा में बढ़ोतरी होने लगी। इसमें बढ़ोतरी की वजह अमरीका में नेचुरल गैस में विघटन होने से ऐसा हो रहा है।
भारत में चावल की खेतों से उत्सर्जन
पशुओं के पेट में, चावल का खेत सडऩे से, नेचुरल गैस में विधटन होने से, कोयला खदान, दलदल और जंगल में आग लगने के दौराना मीथेन का निर्माण होता है। यह ग्रीन हाउस गैसों में कार्बन डाइऑक्साइड के बाद दूसरा सबसे बड़ा गैस है।
शोधकर्ताओं का मानना है कि चावल के खेत में जलजमाव होने से खर-पतवार के सडऩे से मीथेन गैस में बढ़ोतरी दर्ज की जा रही है। भारत जैसे देशों में चावल की खेती बड़े पैमाने पर होती है। हालांकि, दुनिया के बड़े-बड़े उद्योगपतियों ने सरकार और संयुक्तराष्ट्र को भेजे गए एक पत्र में कहा कि मीथेन के उत्सर्जन का बड़ा स्रोत नेचुरल गैस और जीवाश्म ईंधन हैं।
यह संभव है कि कंपनियां झूठ नहीं बोल रही हों लेकिन नए अध्ययन के मुताबिक मीथेन उत्सर्जन के बारे में यह धारणा पूरी तरह गलत साबित हुई है। अध्ययन में यह पाया कि उद्योग भी इसके लिए जिम्मेदार हैं।
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