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हरियाली तीज आज, जानिए पूजन विधि और शुभ मुहूर्त

Published: Jul 26, 2017 11:27:00 am

Submitted by:

ललित fulara

हिंदू धर्म में तीज सबसे बड़ा व्रत माना जाता है। पुराण में उल्लेख है कि तृतीय के व्रत और पूजन से सुहागन स्त्रियों का सौभाग्य बढ़ता है

Hariyali Teej 2017

Hariyali Teej 2017

नई दिल्ली।  पति की लंबी उम्र की कामना के साथ आज पूरे देश में महिलाएं हरियाली तीज पर उपवास कर रही हैं। हिंदू धर्म में तीज सबसे बड़ा व्रत माना जाता है। पुराण में उल्लेख है कि तृतीय के व्रत और पूजन से सुहागन स्त्रियों का सौभाग्य बढ़ता है, पति दिर्घायु होता और कुवांरी लड़कियों के विवाह का योग प्रबल होता है, साथ ही मनचाहा वर मिलता है।
चलिए हम आपको इस पवित्र व्रत के नियम और पूजन विधि के साथ इसके मनाने के कारण बताते हैं।

व्रत का विधान
हरियाली तीज का व्रत पूरे 24 घंटे का होता है। यानि आज के सूर्योदव से कल के सूर्योदय तक व्रत करने वाली महिलाएं और लड़कियां अन्न और जल ग्रहण नहीं करती हैं। व्रता को पूरे 16 श्रृगांर करके भगवान शिव और माता पार्वती की पूजा करनी चाहिए।


शुभ मुहूर्त
26 जुलाई 2017, दिन बुधवार को तृतीय तिथि सुबह 9 बजकर 57 मिनट से रात 8 बजकर 8 मिनट तक शुभ मुहूर्त है।

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पूजन विधि
हरियाली तीज में पूजन के लिए काली मिट्टी या बालू से बने शिव-पार्वती और गणेश की प्रतिमा बनाई जाती है। अगर यह उपलब्ध न हो तो तस्वीर की पूजा भी की जा सकती है। आटा, हल्दी और कुमकुम की रंगोली बनाकर केले के पत्ते पर प्रतिमा स्थापित की जाती है। इसके बाद कलश पर हल्दी और कुमकुम चढ़ाया जाता है। इसके बाद गणपति की पूजा की जाती है। फिर जाकर आराध्य शिव और माता पार्वती की पूजा अर्चना शुरु होती है। पूजन के बाद तीनों की प्रतिमा की परिक्रमा भी होती है। 
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हल्वे का भोग
कुछ स्थान पर व्रत करने वाली लड़कियां और महिलाएं रातभग जगकर पूजा करती हैं और शिव आराधना गाती हैं। इसके बाद अगले सूर्योदय के समय माता गौरा को सिंदूर चढ़ाकर हल्वे का भोग लगाया जाता है। भोग लगाने के बाद इसी प्रसाद से महिलाएं अपना व्रत तोड़ती हैं।

पौराणिक मान्यता
मान्यता है कि इसी दिन भगवान शिव और माता पार्वती का पुनर्मिलन हुआ था। इस दौरान माता पार्वती निर्जाल थी और कठोर तपस्या कर रही थी। इसीलिए यह व्रत पूरे एक दिन और एक रात का होता है।
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क्यों पड़ा हरियाली तीज नाम
 आज के दिन का हरियाली तीज नाम क्यों पड़ा इसका भी जिक्र ग्रन्थों में है। कहा गया है कि तृतीय को वृक्ष, नदी, जल के देव वरुण देव की पूजा भी की जाती है। जो प्रकृति के निर्माता है, जिसकी वजह से धरती पर हरियाली है।
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शाम को उत्सव का माहौल
दिन के अंत में शाम को महिलाएं खुशी-खुशी नाचती और गाती हैं। इसके साथ ही सावन पर बागों में बहार भी होता है, इसीलिए इस खास अवसर पर कुछ महिलाएं झूला भी झूलती हैं।

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