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कोर्ट ने संन्यासी से कहा,समाज सेवा करो लेकिन पहले पत्नी का ध्यान रखो

Published: Sep 11, 2016 02:52:00 pm

Submitted by:

Rakesh Mishra

गुजरात हाईकोर्ट ने नौकरी छोड़ अध्यात्म की राह पर चल चुके एक शख्स को उसकी पत्नी के प्रति जिम्मेदारी पूरी करने की सलाह दी है

The High Court's harsh comment

court

अहमदाबाद। खुद को संन्यासी घोषित करने के बावजूद आप जिम्मेदारियों से नहीं बच सकते। गुजरात हाईकोर्ट ने नौकरी छोड़ अध्यात्म की राह पर चल चुके एक शख्स को उसकी पत्नी के प्रति जिम्मेदारी पूरी करने की सलाह दी है।

कोर्ट ने कहा कि वह कुछ कमाने की कोशिश करे ताकि वह अलग रह रही पत्नी के भरण पोषण का पैसा दे सके। सुनील उदासी नाम के शख्स का मामला जस्टिस एसजी शाह के समक्ष पहुंचा था। जस्टिस शाह ने कहा, अगर वह लोगों की मदद और सामाजिक कार्य के लिए इतने ही इच्छुक हैं तो उन्हें कमाने के लिए भी कुछ करना चाहिए ताकि अपनी पत्नी का भरण पोषण कर सके। हाईकोर्ट ने सुनील उडासी को उनकी पत्नी अलका उर्फ सोनी के भरण पोषण के लिए पैसा देते रहने का आदेश दिया है।

सुनील की पत्नी ने 2002 में वडोदरा की अदालत में केस दर्ज कर भरण पोषण की मांग की थी। दो साल बाद कोर्ट ने सुनील को बतौर भरण पोषण हर महीने 3500 रुपए देने का आदेश दिया। यह रकम सुनील की कमाई के आधार पर तय की गई। उस समय सुनील बैंक ऑफ हैदाराबाद में काम करते थे और 11 हजार रुपए कमाते थे। बाद में उसने नौकरी छोड़ दी और विश्व जागृति मिशन के आनंदधाम आश्रम में चला गया।

2011 में सुनील ने कमाई न होने और संन्यास ले लेने के आधार पर भरण पोषण के आदेश को चुनौती दी। फैमिली कोर्ट ने एक बार फिर उडासी की याचिका खारिज कर दी। इसके बाद उडासी ने गुजरात हाईकोर्ट से गुहार लगाई। उडासी ने हाईकोर्ट के समक्ष आश्रम के प्रमुख का पत्र रखा। पत्र में बताया गया था कि सुनील ने अब अपना जीवन धार्मिक और सामाजिक कार्यों में लगा दिया है। जस्टिस शाह ने कहा कि सुनील एक स्वस्थ इंसान हैं। उनकी सामाजिक,नैतिक और कानूनी जिम्मेदारी है कि वह अपनी पत्नी के भरण पोषण के लिए कमाएं।
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