फ्रेंच सीक्रेट सर्विस (सुरेट) की एक खोज रिपोर्ट के अनुसार सुभाष चंद्र बोस की मौत हवाई जहाज की दुर्घटना में नहीं हुई थी। वे 1947 में जीवित थे। पेरिस के जेबीपी नामक एक इतिहासकार ने बताया कि उन्हें 1947 में उनके जीवित होने को प्रमाणित करने वाले दस्तावेज मिले हैं।
चेन्नई। फ्रेंच सीक्रेट सर्विस (सुरेट) की एक खोज रिपोर्ट के अनुसार सुभाष चंद्र बोस की मौत हवाई जहाज की दुर्घटना में नहीं हुई थी। वे 1947 में जीवित थे। पेरिस के जेबीपी नामक एक इतिहासकार ने बताया कि उन्हें 1947 में उनके जीवित होने को प्रमाणित करने वाले दस्तावेज मिले हैं। इंटेलिजेंस सर्विस ऑफ साइगन ने अपनी इस सूचना के बारे में दक्षिण एशिया से संबद्ध सुप्रीम कमांडर को 26 सितंबर 1945 को लिखा था, इंडियन इंडिपेंडेंस लीग (आईआईएल) के सात भारतीयों समेत तीन बड़े लोगों और हिकारी कीकान के सदस्यों को पूछताछ के लिए हिरासत में लिया गया है। दूसरे विश्व युद्ध में जापान के हारने के बाद इन लोगों को अगस्त में गिरफ्तार किया गया था। चार अन्य स्थानीय संस्थाओं के नेता थे, जिनमें दो को उनके नाम से जानने का दावा किया गया है। गिरफ्तार तीन आईआईएल नेताओं में से एक सुभाष चंद्र बोस थे।
नेताजी युद्ध अपराधी के रूप में फ्रांस या ब्रिटेन की कस्टडी में थे
1945 और 1947 की इन दोनों रिपोर्टों की कड़ियों को जोड़ने का प्रयास किया जा रहा है। 26 सितंबर 1945 के दस्तावेज और 11 दिसंबर 1947 की सीक्रेट सर्विस रिपोर्ट को जोड़कर यह कहा जा रहा है कि नेताजी युद्ध अपराधी के रूप में अगस्त 1945 में फ्रांस या ब्रिटेन की कस्टडी में थे। ये इतिहासकार पेरिस स्थित एक संस्था में पढा़ते हैं।
दिसंबर 1947 में बोस बच निकले
रिपोर्ट के अनुसार, इसके दो साल बाद दिसंबर 1947 में वे बच निकले। इसमें ‘इवेड’ नामक शब्द का प्रयोग किया गया है, जिसका सामान्यतः अर्थ होता है बच निकलना। फ्रेंच में इसका विशेष अर्थ होता है। इवेड केवल गिरफ्तार या कस्टडी में रहे व्यक्ति के बच निकलने के लिए ही फ्रेंच में प्रयुक्त किया जाता है। इससे स्पष्ट होता है कि बोस को अगस्त 1945 में गिरफ्तार करके कस्टडी में रखा गया था। यदि इस सीक्रेट रिपोर्ट पर विश्वास किया जाए तो वे इंडोचाइना के पास से पूरी तरह बचकर निकलने में कामयाब रहे।
बोस के कोष के बारे में जताई अनभिज्ञता
इसके अलावा 26 सितंबर 1945 के दस्तावेज के अनुसार ‘मर्चेंनडाइजेज प्रीसियसेज’ से जुड़े आईआईएल और आईएनए के लोग बच निकलने में कामयाब रहे। संभावना है कि यह आईआईएल का सचिवालय हो सकता है। फ्रेंच में ‘मर्चेंनडाइजेज प्रीसियसेज’ को बोस का युद्ध-कोष माना जा सकता है। इस कोष का क्या हुआ उन्होंने इस बारे में अनभिज्ञता जताई। उन्होंने फाइलों को चेक करने के बाद भी इस संदर्भ में कोई तथ्य या दस्तावेज नहीं मिला। उनका अनुमान है कि जो लोग कैद से बच निकले, उन्होंने कोष को आपस में बांट लिया। यही कारण हो सकता है कि नेताजी का संचित कोष को प्राप्त नहीं किया जा सका।