script…और लंबा चलता कारगिल युद्ध तो पाकिस्तान की अर्थव्यव्स्था तोड़ देती दम | If the Kargil war continuous Pakistan would be in critical condition | Patrika News

…और लंबा चलता कारगिल युद्ध तो पाकिस्तान की अर्थव्यव्स्था तोड़ देती दम

Published: Jul 23, 2017 06:18:00 pm

भारतीय नौ सेना की पूर्वी और पश्चिमी टुकड़ियों ने उत्तर अरब सागर में आक्रामक निगरानी शुरू की और पाकिस्तान की सारी सप्लाई बंद करने की धमकी दी…

Kargil war Pakistan loss

Kargil war Pakistan loss

भारत—पाकिस्तान के बीच कारगिल को लेकर चला युद्ध 2 महीने से ज्यादा चला। इस दौरान दोनों तरफ से युद्घ का साजो—सामान, सैनिक और संसाधनों का बेजां उपयोग किया गया। जहां पाकिस्तान को उंचाई पर होने का फायदा मिल रहा था तो भारतीय सेना नीचे होने की वजह से ज्यादा ताकत लगा उन्हें खदेड़ रही थी।

Kargil War economy

युद्ध के हालात दिन प्रतिदिन ज्यादा आक्रामक होते जा रहे थे। घुसपैठियों के साथ पाकिस्तान सेना भी लगातार हमले कर र​​ही थी। भारत ने करीब 30000 सैनिक तो कारगिल—द्रास सेक्टर की पहाड़ियों की तलहटी में ही तैनात कर रखे थे। जब भारत को अहसास हुआ कि यह पाकिस्तान की तरफ से एक तरह का परोक्ष युद्ध ही है तो बड़ी जवाबी कार्यवाही का फैसला लिया गया। थल सेना के साथ वायु सेना का भी सहयोग लिया गया।

इसी के साथ पाकिस्तान पर दवाब डालने के लिए भारतीय नौसेना ने भी कमर कस ली। नौसेना ने आॅपरेशन तलवार के तहत पाकिस्तानी बंदरगाहों की सप्लाई के रास्ते ब्लॉक करने की तैयारी कर ली। भारतीय नौ सेना की पूर्वी और पश्चिमी टुकड़ियों ने उत्तर अरब सागर में आक्रामक निगरानी शुरू की और पाकिस्तान की सारी सप्लाई बंद करने की धमकी दी। महज इसी से पाकिस्तान के समु्द्र आधारित तेल और व्यापार को तगड़ा झटका लगा।

Kargil War economy Loss

बाद में पाकिस्तान के तत्कालिक प्रधानमंत्री नवाज शरीफ ने खुलासा किया कि पाकिस्तान के पास महज 6 दिन का तेल बचा था, जिससे वे अपना काम निकाल पाते। अगर सम्पूर्ण युद्घ होता और ज्यादा दिन चलता तो देश ठ हो जाता। शरीफ के कहने का मतलब था कि तेल आपूर्ति पूरी नहीं ​मिलने और व्यापार के ठप होने से देश की आर्थिक हालत ​बिगड़ जाती।

हालांकि का​रगिल युद्घ से पहले भी पाकिस्तान की हालत कुछ ज्यादा अच्छी नहीं थी। वहां की अवाम पहले भी रोजगार और इंडस्ट्री के लिए तरस रही थी और उस समय भी कुछ खास विकास का काम नहीं हो रहा था। ज्यादातर आर्थिक आवश्यकताएं विदेशों के फण्ड और ऋण पर निर्भर था। ऐसा ही कुछ हाल आज भी बदस्तूर जारी है।
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