राष्ट्रगान के साथ…
शुक्रवार रात 12.01 बजे दोनों देशों के अधिकारियों ने अपनी-अपनी कॉलोनियों में अपने देशों के झंडे लगाए। कॉलोनियों में अपने-अपने देश का राष्ट्रगान बजाया गया। भारत में 111 कॉलोनियों में 37000 बांग्लादेशी रहते हैं जो 1947 व 1972 के युद्ध के बाद बसे थे। ये बांग्लादेश के हो जाएंगे।
विशेष कोड से सुविधाएं
असम, मेघालय, त्रिपुरा, प. बंगाल की कॉलोनियों की अदला-बदली हुई है। इनके रहवासी 14,000 नागरिकों को विशेष कोड दिया गया है। इससे स्कूल, बिजली, स्वास्थ्य सेवा संबंधी भारतीय सेवाओं के अधिकार मिल जाएंगे। कॉलोनियां यथावत रखी जाएगी। लोगों को बांग्लादेशी नागरिकता दी जाएगी। भारतीय सीमा में 51 बांग्लादेशी कॉलोनियों के लोगों ने यहीं रहने का फैसला किया।
बांग्लादेश स्थित भारतीय कॉलोनियों के 980 लोग भारतीय सीमा में जाएंगे। इनमें से 163 मुसलमान हैं। ये मजदूर व अति पिछड़े वर्ग के हैं। ऎसे ही बांग्लादेश के तीन जिलों में 17 हजार एकड़ में 51 भारतीय कॉलोनी बसी हैं, जिनमें 14 हजार लोग रहते हैं। ये कॉलोनियां अब भारत के हिस्से में आ जाएंगी। यानी ये 14 हजार लोग अब से भारतीय कहलाएंगे।
ऎसे मुकाम पर पहुंचा करार
जमीन अदला-बदली का ये समझौता 1974 से अटका हुआ था।
तब इंदिरा गांधी और मुर्जीबुर रहमान के बीच पहला समझौता हुआ।
समझौता लागू करने को भारतीय संविधान में संशोधन करना था।
जब संशोधन पर नहीं हो सका, तो समझौता अटक गया।
जून में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पहली बांग्लादेश यात्रा की थी।
तब दोनों के बीच जमीन हस्तांतरण को अस्तित्व में लाने पर सहमति बनी।
संविधान में संशोधन किया गया, जिसे संसद ने भी मंजूरी दी।
फिर सरकारी कर्मियों को इन कॉलोनियों के प्रत्येक नागरिक से मिलने का लक्ष्य दिया गया।
हर नागरिक से पूछा गया कि वह कहां रहना चाहता है?