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इन 5 तरीकों से चीन को घेरा भारत ने, पीएम मोदी ने दी सीधी चुनौती

Published: Aug 30, 2016 01:07:00 pm

विश्व की नई महाशक्ति के रूप में उभर रहा भारत पड़ौसी देश चीन को चहुंओर से घेरने का हरसंभव प्रयास कर रहा है

india pakistan china war

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वॉशिंगटन। विश्व की नई महाशक्ति के रूप में उभर रहा भारत पड़ौसी देश चीन को चहुंओर से घेरने का हरसंभव प्रयास कर रहा है। देश के 70वें स्वाधीनता दिवस पर लाल किले से दिए गए भाषण में पीएम मोदी ने बलूचिस्तान तथा PoK का जिक्र कर न केवल पाकिस्तान वरन चीन को भी असहज कर दिया था। इसके बाद चीन की बढ़ती ताकत से मुकाबले के लिए अमरीका के साथ एक के बाद एक कई सैन्य करार कर चुका है। इसके साथ ही भारत दक्षिण एशिया में अपने पड़ौसी देशों के साथ सैन्य तथा असैन्य करार कर रहा है। आइए भारत के इन प्रयासों पर एक नजर डालते हैं जो निकट भविष्य में चीन को प्रभावित करते हुए भारत-चीन रिश्तों पर असर डालेंगे।

MTCR में भारत की एंट्री
आपको याद होगा कि NSG देशों के समूह में चीन ने अपनी वीटो पावर का इस्तेमाल करते हुए भारत की एंट्री रोक दी थी। इसके जवाब में भारत ने अमरीका के साथ मिलकर MTCR की एंट्री ले ली। उल्लेखनीय है कि अभी तक चीन इस ग्रुप का सदस्य नहीं है, यानि भारत भविष्य में अपनी वीटो पॉवर का इस्तेमाल कर MTCR में चीन की एंट्री को आसानी से रोक देगा।



बलूचिस्तान तथा PoK पर बदली भारत ने बदली नीति
इंडिपेंस डे पर बोलते हुए पीएम मोदी ने अपने भाषण में पाक अधिकृत कश्मीर तथा बलूचिस्तान का जिक्र किया था। उनके इस भाषण के बाद से दुनियाभर में बलूचिस्तान तथा PoK में पाक सेना द्वारा किए जा रहे मानवाधिकारों के हनन का मसला उठा। भाषण के बाद लंदन में भी चीनी दूतावास के बाहर बलूच नेताओं ने प्रदर्शन किया और आजाद बलूचिस्तान की मांग की। गौरतलब है कि बलूचिस्तान तथा PoK दोनों ही पाकिस्तान के साथ-साथ चीन के लिए भी बेहद जरूरी है। इसका कारण है यहां पर 45 बिलियन डॉलर की लागत से बनने वाले पाक-चीन आर्थिक कॉरिडोर। इस कॉरिडोर के जरिए चीन सीधे ग्वादर बंदरगाह से जुड़ जाएगा। ऐसे में वो नहीं चाहता कि बलूचिस्तान या पाक अधिकृत कश्मीर में कोई भी किसी भी तरह का असंतोष इस कॉरीडोर में बाधा डालेगा।



पीएम मोदी की इस बदली विदेश नीति का पाकिस्तान से ज्यादा चीन पर असर दिखा। उसने भारत को धमकी देते हुए कहा कि यदि भारत बलूचिस्तान में 46 अरब डॉलर की लागत से बन रहे चीन-पाकिस्तान इकोनॉमिक कॉरिडोर को बनने से रोकेगा तो चीन कार्रवाई से गुरेज नहीं करेगा। चीन के इंटरनेशनल रिलेशन इंस्टीट्यूट के डायरेक्टर हू शीशेंग ने कहा कि मोदी का बलूचिस्तान का जिक्र चीन की ‘ताजा चिंता’ है। ग्लोबल टाइम्स में ‘मोदी के उकसावे वाली कार्रवाई से भारत पर बढ़ता खतरा’ नामक रिपोर्ट में कहा गया, “जब भारत बलूचिस्तान में अपनी किसी भी तरह की भूमिका से इनकार करता रहा है तब मोदी क्यों पब्लिकली इसका जिक्र करते हैं? कश्मीर पर भी वे इतना उकसावे वाला कदम उठाते हैं?”

मोदी G-20 बैठक से पहले जाएंगे चीन के विरोधी देश वियतनाम
अगले महीने होने वाली 4 से 5 सितंबर को चीन होने वाली जी-20 समिट में भाग लेने से पहले मोदी वियतनाम जाएंगे। अंदरूनी सूत्रों के अनुसार मोदी इस यात्रा के दौरान वियतनाम को सैन्य मदद देने का प्रपोजल भी दे सकते हैं। भारत की ओर से वियतनाम की मिलिट्री को अतिरिक्त सहायता मुहैया कराने का भी ऑफर दिया जा सकता है। इसमें वित्तीय सहायता समेत ट्रेनिंग, स्पेस सेक्टर में मदद और हाइड्रोकार्बन ब्लॉक में निवेश बढ़ाना हो सकता है।



इससे पहले अक्टूबर 2014 में भी वियतनाम को 100 मिलियन डॉलर की मदद करने का आश्वासन दिया था। गौरतलब है कि पिछले 15 वर्षों में किसी भी भारतीय पीएम की पहली वियतनाम विजिट होगी। इसके अलावा वियतनाम तथा चीन के बीच दक्षिण एशिया सागर को लेकर भी विवाद है। दोनों के बीच 1970, 1980 और 1990 के दशक में जंग हो चुकी है।

म्यांमार के साथ रिश्तों को दी अहमियत
वियतनाम के साथ ही भारत ने म्यांमार के साथ रिश्तों को खास तवज्जो देने के संकेत दिए हैं। म्यांमार की नेता आंग सान सू की पार्टी नेशनल लीग फोर डेमोक्रेसी (एनएलडी) के हाथ में कमान आने के बाद दोनों देशों के बीच हुई उच्चस्तरीय बैठक में दोनों देशों ने कई समझौतों पर हस्ताक्षर भी किए। यही नहीं, पीएम मोदी ने म्यांमार के राष्ट्रपति हुतिन ज्यॉ को आश्वासन दिया कि भारत उसकी सुरक्षा और विकास के लक्ष्य में एक विश्वसनीय भागीदार बना रहेगा। साथ ही दोनों देशों ने आपसे में प्रतिबद्धता जताते हुए कहा कि वे अपनी जमीन का इस्तेमाल विद्रोही ग्रुपों को करने की इजाजत नहीं देंगे। उल्लेखनीय है कि कुछ समय पूर्व भारतीय सेनाओं ने म्यांमार में प्रवेश कर वहां मौजूद भारत विरोधी आतंकी कैंपों को नष्ट कर दिया था।



म्यांमार ने कहा कि उसकी धरती से भारत के खिलाफ किसी भी किस्म की शत्रुतापूर्ण गतिविधियों को अंजाम नहीं देने दिया जाएगा। अतीत में जिन विद्रोही समूहों ने म्यांमार के इलाके में पूर्वोत्तर को टारगेट करने के लिए अपना ठिकाना बनाया था, उनके लिए यह समझौता बहुत महत्वपूर्ण है। इस समझौते को इन विद्रोही गुटों के खिलाफ ऑपरेशन के रूप में भी देखा जा रहा है।

अमरीका से भी हुई डील
भारत ने इन सबसे बढ़कर अमरीका के साथ एक समझौता भी किया है। समझौते के तहत दोनों देश एक दूसरे के नेवल बेस तथा एयर बेस का बेरोट-टोक इस्तेमाल कर सकेंगे। समझौते के मुताबिक, दोनों देशों की सेनाएं एक-दूसरे के इक्विपमेंट्स और नेवल-एयरबेस का इस्तेमाल कर सकेंगी। दोनों देशों को फाइटर प्लेन और वॉरशिप के लिए फ्यूल भी आसानी से मिल सकेगा। इससे अमरीका के लिए भविष्य में चीन पर नियंत्रण रखना संभव होगा और भारत को भी चीन के विरूद्ध रणनीतिक साझेदार मिल जाएगा।

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