नई दिल्ली। असहिष्णुता के मुद्दे पर साहित्य अकादमी पुरस्कार लौटाने वाले सुप्रसिद्ध कवि एवं संस्कृतिकर्मी अशोक वाजपेयी ने कहा कि अगर अकादमी उनके लौटाए गए पुरस्कार को वापस करती है तो वह उसे किसी भी हालत में स्वीकार नहीं करेंगे। वाजपेयी ने यह बयान उस वक्त दिया जब अंग्रेजी की मशहूर लेखिका नयनतारा सहगल और राजस्थानी एवं हिन्दी के लेखक नंद भारद्वाज ने अपना लौटाया गया साहित्य अकादमी पुरस्कार वापस ले लिया है।
गौरतलब है कि सहगल ने जब यह पुरस्कार लौटाया था तो वाजपेयी ने उसके अगले दिन ही अपना पुरस्कार लौटाने की घोषणा की थी। ललितकला अकादमी के पूर्व अध्यक्ष एवं महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिन्दी विश्वविद्यालय के पूर्व कुलपति वाजपेयी ने से कहा कि अकादमी की ओर से एक पत्र मेरे पास भी आया है, जिसमें पुरस्कार को वापस लेने की बात कही गयी है, लेकिन पुरस्कार वापस लेने का कोई सवाल ही नहीं होता है। अकादमी ने पुरस्कार लौटाने वाले लेखकों को मुश्किल में डालने के लिए ही इस तरह के पत्र भेजे हैं।
वाजपेयी ने कहा है कि किसी भी संस्था में ऐसी कोई नीति नहीं होती है कि लेखक पुरस्कार लौटाए। इसीलिए अकादमी का यह तर्क हास्यास्पद है कि वह लेखकों के लौटाए पुरस्कार को ग्रहण नहीं कर सकती है। उन्होंने कहा कि किसी भी संस्था के संविधान एवं नियामावली में यह थोड़े ही लिखा है कि वह पुरस्कार की लौटाई गई राशि स्वीकार करेगी।
पिछले दिनों अपना 75वां जन्मदिन मनाने वाले वाजपेयी ने कहा कि चाहे साहित्य अकादमी हो या सरकार सब में संवेदनहीनता व्याप्त है और दवाब में आने के बाद ही कुछ करती है, इसीलिए तो कलबुर्गी की हत्या के एक महीने बाद उसने निंदा प्रस्ताव तब पारित किया जब देशभर में इस घटना को लेकर व्यापक विरोध हुआ और प्रधानमंत्री ने भी एक दलित छात्र की आत्महत्या के इतने दिनों बाद चुप्पी तब तोड़ी जब देश के कई शहरों में छात्रों ने धरना प्रदर्शन किए।
उन्होंने यह भी कहा कि असहिष्णुता का मुद्दा अभी भी बरकरार है और आए दिन देश में हो रही घटनाओं में इसे देखा जा सकता है। गौरतलब है कि प्रसिद्ध फिल्म निर्माता करण जौहर ने भी कल जयपुर लिट्रेचर फेस्टिवल में असहिष्णुता का मुद्दा उठाकर एक बार फिर इस बहस को तेज कर दिया है। श्री वाजपेयी हैदराबाद के केन्द्रीय विश्वविद्यालय के शोधार्थी रोहित वेमुला की आत्महत्या के विरोध में भी अपनी मानद डी-लिट की उपाधि लौटाने की घोषणा कर चुके हैं। जो उन्हें 2013 में हैदराबाद केन्द्रीय विश्वविद्यालय ने दी थी।
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