इसरो पीएसएलवी सी-35 स्कैटसेट-1 तथा 7 अन्य उपग्रहों को पृथ्वी की दो अलग-अलग कक्षाओं में स्थापित करेगा
बेंगलूरु। भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) एक विशेष अभियान की तैयारी में है। इस अभियान के तहत पीएसएलवी सी-35 स्कैटसेट-1 तथा 7 अन्य उपग्रहों को पृथ्वी की दो अलग-अलग कक्षाओं में स्थापित करेगा। यह पहला अवसर है जब पीएसएलवी एक ही अभियान में दो बिल्कुल अलग-अलग कक्षाओं में उपग्रहों को स्थापित करेगा।
ये भी पढ़ेः भारत नहीं मिटा पाएगा पाकिस्तान को, जानें क्योंइसरो निदेशक (प्रकाशन एवं जनसंपर्क) देवी प्रसाद कार्णिक ने बताया कि श्रीहरिकोटा स्थित सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र के पहले लांच पैड से आगामी 26 सितंबर सुबह 9:12 बजे पीएसएलवी सी-35 उड़ान भरेगा। अपनी इस उड़ान में पीएसएलवी मौसम उपग्रह स्कैटसेट-1 को 720 किलोमीटर ऊपर सूर्य समकालिक कक्षा (एसएसओ) में स्थापित करेगा जबकि 7 अन्य उपग्रहों को 6 70 किलोमीटर की ऊंचाई पर पृथ्वी की धु्रवीय कक्षा (पोलर आर्बिट) में स्थापित करेगा।
यह पीएसएलवी की 37 वीं उड़ान होगी जिसमें यह नया प्रयोग किया जा रहा है। इस प्रक्षेपण के लिए इसरो एक बार फिर पीएसएलवी के विस्तारित संस्करण (एक्सएल वर्जन) का उपयोग करेगा। पीएसएलवी के एक्सएल वर्जन का उपयोग चंद्रयान, मंगलयान, एस्ट्रोसैट और नाविक श्रृंखला के सातों उपग्रहों सहित कुल 14 अभियानों में हो चुका है।
मौसम उपग्रह है स्कैटसेट-1इसरो की ओर से दी गई जानकारी के मुताबिक स्कैटसेट-1 लगभग 377 किलोग्राम वजनी मौसम उपग्रह है। यह समुद्र पर नजर रखेगा साथ ही मौसम का अध्ययन भी करेगा। इसके साथ भेजे जाने वाले अन्य 7 उपग्रहों में से दो भारतीय विश्वविद्यालयों के हैं जबकि शेष अल्जीरिया, कनाडा और अमरीका के उपग्रह हैं। इस अभियान को अंजाम देने के लिए पीएसएलवी के चौथे चरण को दो बार प्रज्जवलित किया जाएगा।
2.15 घंटे का मिशनसूत्रों के मुताबिक इसरो का यह अब तक का सबसे लंबी अवधि का प्रक्षेपण होगा। अभी तक इसरो ने एक मिशन में एक ही कक्षा में उपग्रहों को भेजा है जिसमें लगभग 20 मिनट का समय लगता है। मगर इस बार पूरे मिशन को अंजाम देने में लगभग 2 घंटे 15 मिनट का वक्त लगेगा। प्रक्षेपण के लगभग 17 मिनट बाद स्कैटसेट-1 प्रक्षेपण यान से अलग होकर अपनी कक्षा में चला जाएगा। उसके बाद चौथे चरण का इंजन बंद कर दिया जाएगा। लगभग 1 घंटे 22 मिनट के बाद इंजन को थोड़े समय के लिए प्रज्जवलित किया जाएगा और फिर स्विच ऑफ कर दिया जाएगा।
उसके लगभग 40 मिनट बाद फिर से इंजन में दहन पैदा किया जाएगा और तब शेष 7 उपग्रह एक-एक कर पोलर आर्बिट में जाएंगे। इसमें कुल 2.15 घंटे लग जाएंगे। इस मिशन के लिए इसरो ने पीएसएलवी सी-34 प्रक्षेपण के दौरान अहम प्रयोग किया था। पीएसएलवी सी-34 मिशन के दौरान रॉकेट के चौथे चरण के इंजन को एक बार उत्तरी धु्रव और एक बार दक्षिणी धु्रव के करीब चालू करने में मिली सफलता से इस तकनीक पर मुहर लगी थी।