रक्षा मंत्री मनोहर पार्रिकर ने अपने ट्वीटर अकाउंट पर लिखा, “भारत को गौरवान्वित करने वाले इसरो के सभी वैज्ञानिकों और उनकी पूरी टीम को मेरी बधाई। पीएसएलवी के लगातार 35वें सफल प्रक्षेपण ने 20 उपग्रहों को एक ही प्रक्षेपण यान से अंतरिक्ष में छोड़कर एक इतिहास बना दिया है।”
विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी राज्य मंत्री वाई.एस. चौधरी ने कहा “20 उपग्रहों के सफल प्रक्षेपण के साथ ही इसरो के मुकुट में एक और मणि जुड़ गया है। वैज्ञानिकों को बधाई!” इसरो के निदेशक पी. उन्नीकृष्णन ने कहा कि इस प्रक्षेपण के साथ ही इसरो ने एक और महत्वपूर्ण मुकाम हासिल कर लिया है। उन्होंने कहा “मैं पूरी टीम के प्रति दिल से आभार व्यक्त करता हूँ। हम अधिक से अधिक पेशेवराना कार्यशैली अपनाते जा रहे हैं। हमें खुशी है कि हम अपने ग्राहकों को विश्वस्तरीय सेवा देने में सफल रहे हैं।”
ऐसे पूरा हुआ मिशन
प्रक्षेपण के बाद नियंत्रण कक्ष में सभी वैज्ञानिकों की निगाहें कंप्यूटर स्क्रीनों पर टिकी थीं। 17 मिनट बाद जैसे ही प्रक्षेपण यान ने सबसे पहले मिशन में सबसे महत्वपूर्ण इसरो के उपग्रह कार्टोसैट-2 को उसकी कक्षा में छोड़ा, नियंत्रण कक्ष में तालियों की गडग़ड़ाहट गूँज उठी।
इसके बाद भारतीय शैक्षणिक संस्थानों के उपग्रहों सत्यभामासैट और सत्यम् पीएसएलवी से अलग हो गए। शेष 17 विदेशी उपग्रहों में इंडोनेशिया के लापैन-ए3, जर्मनी के बाइरोस, कनाडा के एम3एमसैट, अमरीका के स्काईसैटजेन2-1, कनाडा के जीएचजीसैट-डी तथा अमरीका के 12 डव उपग्रहों को दो चरणों में छोड़ा गया। एक-एक कर उपग्रह प्रक्षेपण यान से अलग-होते गये और वैज्ञानिकों के चेहरों पर मुस्कान बढ़ती गई। सभी 20 उपग्रहों का कुल वजन लगभग 1288 किलोग्राम है। इसमें कार्टोसैट-2 727.5 किलोग्राम का तथा अन्य लघु तथा सूक्षम उपग्रहों का कुल वजन 560 किलोग्राम है।
पीएसएलवी-सी34 ने प्रक्षेपण के 17 मिनट सात सेकेंड बाद कार्टोसैट-2 को 505 किलोमीटर की ऊँचाई वाली सौर समचालित कक्षा में स्थापित किया। इस उपग्रह का प्रयोग रिमोट सेंसिंग के लिए किया जाएगा। इसमें पैनक्रोमैटिक तथा मल्टीस्पेक्ट्रल कैमरा लगे हैं जिनकी मदद से यह पृथ्वी की नजदीकी तस्वीरें ले सकेगा। इन तस्वीरों का उपयोग मानचित्रण, शहरी तथा ग्रामीण जरूरतों के लिए, तटीय जमीन के इस्तेमाल तथा उनके नियमन एवं सड़क नेटवर्क के प्रबंधन और जल वितरण जैसे यूटिलिटी प्रबंधन के कामों में किया जा सकेगा। वैज्ञानिकों की इसकी परिचालन उम्र पाँच साल तय की है।
प्रक्षेपण के 17 मिनट 42 सेकेंड बाद सत्यभामासैट और स्वयम् को 0.44 सेकेंड के अंतर पर उनकी कक्षाओं में स्थापित किया गया। डेढ़ किलोग्राम वजन वाला सत्यभामासैट चेन्नई के सत्यभामा विश्वविद्यालय का है जिसका इस्तेमाल ग्रीन हाउस गैसों के अध्ययन के लिए किया जायेगा। स्वयम् पुणे के कॉलेज ऑफ इंजीनियरिंग का उपग्रह है। एक किलोग्राम वजन वाले इस उपग्रह का इस्तेमाल प्वाइंट टू प्वाइंट मैसेजिंग के लिए किया जाएगा। वर्ष 1999 से अब तक इसरो 74 विदेशी उपग्रहों को सफलतापूर्वक अंतरिक्ष में स्थापित कर चुका है। पिछले साल तीन मिशनों के तहत इसरो ने 17 विदेशी उपग्रहों का प्रक्षेपण किया था।
इस मिशन की खास बातें
(1) 20 उपग्रहों को पृथ्वी की एक ही कक्षा में अलग-अलग पोजिशन में स्थापित किया जाएगा
(2) उपग्रह स्वत: अपना रुख बदलेगा और अलग वेग से दूसरे उपग्रह को कक्षा में छोड़ेगा ताकि उनके बीच टकराव की संभावना नहीं रहे
(3) चौथे चरण का इंजन 3000 सेकेंड के दो अंतरालों पर दो बार 5-5 सेकेंड के लिए पुन: स्टार्ट किया जाएगा।
मिशन से जुड़ी जानकारी
03 स्वदेशी तथा 17 विदेशी उपग्रह (अमरीका, कनाडा, जर्मनी व इंडोनेशिया) हैं
1,288 किलोग्राम है कुल वजन
727.5 किलोग्राम का कार्टोसैट-2 भी है
02 उपग्रह भारतीय विवि/शिक्षण संस्थानों के हैं
1.5 किलोग्राम वजनी सत्यभामा सैट ग्रीन हाउस की जानकारी देगा
01 किलोग्राम वजनी स्वायन हैम रेडियो कम्यूनिटी के लिए संदेश भेजेगा
505 किमी की ऊंचाई वाले सूर्य के साथ समचालित (सिंक्रोनस) कक्षा में स्थापित किया जाएगा
गत वर्ष इसरो ने कमाए 775 करोड़ कमाए
वर्ष 2016-17 में इसरो का लक्ष्य पीएसएलवी से 25 विदेशी उपग्रह भेजने का है। इसरो की कॉमर्शियल इकाई एंट्रिक्स ने वर्ष 2015-16 में सैटेलाइट लॉन्च कर 775 करोड़ रुपए की कमाई की है। यह 2014-15 से 16 फीसदी ज्यादा है। पीएसएलवी दुनिया का सबसे सस्ता लॉन्च व्हीकल है।
पहले इनके नाम रह चुका है सर्वाधिक उपग्रह भेजने का रिकॉर्ड
(1) 10 उपग्रह भेजे थे इसरो ने 2008 में
(2) 29 भेजे थे नासा ने वर्ष 2013 में
(3) 33 उपग्रह भेजे थे रूस ने 2014 में, अब तक सबसे ज्यादा