दो चरणों वाले तीन टन वजनी भारी साउंडिंग रॉकेट आरएच-560 सुपरसोनिक कम्बशन रैमजेट (स्क्रैमजेट) इंजन के साथ सफल उड़ान भरी
बेंगलूरु। उपग्रहों की प्रक्षेपण लागत में भारी कटौती के लिए पुन: उपयोगी प्रक्षेपण यान (आरएलवी) विकसित करने में जुटे भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) ने रविवार को एयर ब्रीथिंग प्रणोदन प्रणाली का परीक्षण किया। श्रीहरिकोटा स्थित सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र से दो चरणों वाला तीन टन वजनी भारी साउंडिंग रॉकेट आरएच-560 सुपरसोनिक कम्बशन रैमजेट (स्क्रैमजेट) इंजन के साथ उड़ान भरी। इसी उड़ान के दौरान पांच सेकेंड के लिए इंजन में दहन पैदा कर इस परीक्षण को पूरा किया गया। इस टेस्ट के साथ ही भारत ने अमरीका के नासा की बराबरी कर ली है और जापान-चीन-रूस को पीछे छोड़ दिया है।
इसरो के निदेशक (जनसंपर्क) देवी प्रसाद कार्णिक ने बताया कि स्क्रैमजेट इंजन विकसित करने की दिशा में यह पहला प्रयोग है। यह अभी छोटा कदम है और इसमें अभी कई परीक्षण किए जाएंगे। उन्होंने बताया कि इस इंजन का विकास स्वदेशी पुन: उपयोगी प्रक्षेपण (आरएलवी) के लिए किया जाएगा। इसरो ने स्वदेशी स्पेस शटल आरएलवी टीडी का पहला परीक्षण इसी साल 23 मई को किया था। अब इसरो अगली कड़ी में एयर ब्रीथिंग प्रणोदन प्रणाली का परीक्षण करने जा रहा है।
ऐसे हुआ परीक्षण
एयर ब्रीथिंग प्रणोदन प्रणाली के परीक्षण के लिए आरएच-560 रॉकेट के साथ परखे जाने वाले इंजनों का विकास विक्रम साराभाई अंतरिक्ष केंद्र (वीएसएससी) ने किया है। देश के पहले स्वदेशी स्पेस शटल (आरएलवी) का विकास 2030 तक करने का लक्ष्य है। स्क्रैमजेट इंजन परीक्षण के लिए दो चरणों वाले आरएच-560 साउंडिंग रॉकेट को पारंपरिक इंजन का उपयोग करते हुए लांच किया गया और उसे 70 किलोमीटर की ऊंचाई तक भेजा जाएगा। लगभग 70 किलोमीटर की ऊंचाई पर पहला चरण अलग होकर बंगाल की खाड़ी में गिर जाएगा। उसके बाद दूसरे चरण में दहन पैदा होगी और रॉकेट कुछ देर तक क्षैतिज उड़ान भरता रहेगा। इस दौरान रॉकेट की गति ध्वनि की गति से छह गुणा (मैक-6 ) अधिक होगी। इसी दौरान स्क्रैमजेट इंजन में महज 5 सेकेंड के लिए दहन पैदा की जाएगी। यही परीक्षण की सफलता होगी।
आरएलवी का छोटा स्वरूप
आरएच-560 रॉकेट का मतलब 560 मिलीमीटर व्यास वाला रोहिणी साउंडिंग रॉकेट। इसके दूसरे चरण में थोड़ा सुधार किया गया है, ताकि उसमें स्क्रैमजेट इंजन को फिट किया जा सके। इसे एडवांस्ड टेक्नोलॉजी व्हीकल (एटीवी) नाम दिया गया है। एक तरह से इसे आरएलवी का छोटा स्वरूप कहा जा रहा है। पिछले 23 मई के आरएलवी टीडी परीक्षण के बाद यह श्रृंखला का दूसरा परीक्षण है।
घटेगा वजन, बढ़ेगी कार्यक्षमता
रॉकेट में इस प्रणाली को लागू किए जाने के बाद रॉकेट भी श्वसन प्रक्रिया की तरह वायुमंडल से स्वत: ऑक्सीजन प्राप्त करने लगेंगे। इससे रॉकटों के इंजन में दहन पैदा करने के लिए अलग से तरल ऑक्सीजन (ऑक्सीडाइजर) भेजने की जरूरत नहीं रह जाएगी और प्रक्षेपण यानों का वजन काफी कम हो जाएगा। विक्रम साराभाई अंतरिक्ष केंद्र (वीएसएससी) के निदेशक के. सिवन के अनुसार रॉकेट के कुल भार में 86 फीसदी द्रव्यमान ईंधन (प्रणोदक) का होता है। उसमें भी कुल ईंधन का 70 फीसदी ऑक्सीडाइजर (तरल ऑक्सीजन) होता है। अगर ऑक्सीडाइजर की जगह वायुमंडल में मौजूद ऑक्सीजन का उपयोग किया जाए तो इतना भार लेकर जाने की आवश्यकता नहीं रह जाएगी। इससे लागत तो घटेगी ही रॉकेटों की कार्यक्षमता भी काफी बढ़ जाएगी। इसरो के उच्च पदस्थ सूत्रों के अनुसार इसरो इस प्रणाली का परीक्षण पिछले 28 जुलाई को ही करना चाहता था मगर वायुसेना के परिवहन विमान एएन-32 के लापता होने के बाद उसके खोजबीन में जुटे होने के कारण इसमें विलंब हुआ।