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ग्रुप कंपनियों से साइरस को हटाना नहीं आसान

Published: Oct 27, 2016 10:45:00 am

Submitted by:

Rakesh Mishra

साइरस ने खुद इन कंपनियों के बोर्ड से इस्तीफा नहीं दिया तो फंस सकता है मामला

Cyrus Mistry

Cyrus Mistry

मुंबई। सायरस मिस्त्री को टाटा संस के चेयरमैन पद से हटा तो दिया गया है, लेकिन बड़ी लिस्टेड कंपनियों टीसीएस, टाटा स्टील, टाटा मोटर्स, टाटा केमिकल्स और टाटा ग्लोबल बेवरेजेज के चेयरमैन पद से अगर उन्होंने खुद इस्तीफा नहीं दिया तो उन्हें हटाना टाटा ग्रुप के लिए मुश्किल हो सकता है।

कॉर्पोरेट वकीलों का कहना है कि मिस्त्री संभवत: खुद इन कंपनियों के बोर्ड से इस्तीफा दे देंगे। हालांकि अगर वह ऐसा न करें तो मामला फंस सकता है। उन्हें जबरदस्ती हटाने की प्रक्रिया लंबी और मुश्किल हो सकती है, क्योंकि ये कंपनियां पब्लिक शेयरहोल्डिंग के साथ कानूनी रूप से अलग इकाइयां हैं। मिस्त्री के ऑफिस ने दो बार इस बात से इनकार किया कि उनके ग्रुप ने कोई कैविएट दाखिल की है। इससे भी यह विश्वास मजबूत हो रहा है कि वह सेटलमेंट पर गौर कर सकते हैं।

कॉर्पोरेट लॉ के जानकारों का कहना है कि जल्द समाधान निकालने के मकसद से अब बातचीत का दौर शुरू होगा। इस मोड़ पर दोनों पक्ष एक सीमा से आगे बात नहीं बढ़ाना चाहेंगे। सभी संबंधित पक्षों के हित में दोनों खेमों को निश्चित तौर पर मामला सुलझाने का कदम बढ़ाना होगा। साइरस मिस्त्री को अपनी प्रतिष्ठा के लिए कदम बढ़ाना होगा। काफी कुछ उनके अगले कदम पर निर्भर करेगा। अगर वह ग्रुप की कंपनियों में प्रभावशाली पद पर बने रहना चाहें और इससे सत्ता संघर्ष शुरू हो तो इन कंपनियों के हितों को नुकसान होगा।

मिस्त्री अदालत न जाने की बात कर नैतिकता के लिहाज से अपना पलड़ा भारी करने की कोशिश कर रहे हैं। एक कॉर्पोरेट वकील ने कहा कि मिस्त्री को टाटा संस के चेयरमैन पद से खराब ढंग से हटाया गया है और अगर मिस्त्री इन कंपनियों से खुद हटने से इनकार कर दें तो कानूनी प्रक्रिया लंबी खिंच सकती है।

मिस्त्री को चेयरमैन पद से हटाने के लिए उन्हें कारण बताओ नोटिस देना होगा और बोर्ड को उन्हें अपनी बात रखने के लिए पर्याप्त समय देना होगा। साथ ही, उनके भविष्य पर निर्णय करने का विशेष प्रस्ताव शेयरहोल्डर्स के सामने रखना होगा जो वोटिंग करेंगे। टीसीएस में टाटा संस की ओनरशिप 70 प्रतिशत से ज्यादा है, वहीं दूसरी कंपनियों में इसका स्टेक करीब 30 फीसदी है। इसका अर्थ यह है कि ग्रुप को दूसरी कंपनियों के मामले में पब्लिक शेयरहोल्डर्स, फाइनेंशियल इंस्टीट्यूशंस और दूसरों का सपोर्ट जुटाना होगा।

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