बाहरी और आंतरिक चुनौतियों से जूझ रही न्यायपालिका : जस्टिस ठाकुर
Published: Dec 02, 2016 12:01:00 am
उन्होंने कहा कि बाहरी चुनौतियों के साथ-साथ आंतरिक चुनौतियों पर भी पार पाना समय की मांग है
नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश तीरथ सिंह ठाकुर ने स्वतंत्र न्यायपालिका को लोकतंत्र की रीढ़ सरीखा बताते हुए गुरुवार को कार्यपालिका एवं विधायिका को इसके अधिकार क्षेत्र में हस्तक्षेप न करने की सलाह दी और इसके साथ ही न्यायपालिका के प्रति लोगों की विश्वसनीयता बरकरार रखने की आंतरिक चुनौती से निपटने की नसीहत भी दे डाली। न्यायमूर्ति ठाकुर ने 37वें भीमसेन सच्चर स्मृति व्याख्यानमाला में ‘स्वतंत्र न्यायपालिका : लोकतंत्र का बुर्ज’ विषय पर अपने सम्बोधन में कहा कि न्यायपालिका न केवल कार्यपालिका और विधायिका के हस्तक्षेप जैसी बाहरी चुनौतियों का सामना कर रही है, बल्कि न्यायाधीशों में जिम्मेदारी का अभाव तथा विश्वसनीयता के क्षरण जैसी आंतरिक चुनौतियों से भी उसे दो-चार होना पड़ रहा है।
उन्होंने कहा कि बाहरी चुनौतियों के साथ-साथ आंतरिक चुनौतियों पर भी पार पाना समय की मांग है, ताकि लोगों में अपने अधिकारों की रक्षा को लेकर न्यायपालिका के प्रति विश्वास सुदृढ़ हो सके। उन्होंने कहा कि संविधान महज दस्तावेज नहीं बल्कि पवित्र ग्रंथ है, जो नागरिकों को समानता सहित अनेक मौलिक अधिकार उपलब्ध कराता है और इन अधिकारों की रक्षा का दायित्व न्यायपालिका पर होता है।
मुख्य न्यायाधीश ने कहा कि लोकतंत्र के तीन अंगों- कार्यपालिका, न्यायपालिका और विधायिका के लिए संविधान में अलग-अलग अधिकारों का उल्लेख किया गया है, लेकिन सिर्फ न्यायपालिका ही वह अंग है, जो शेष दो अंगों द्वारा अधिकारों के दुरुपयोग पर अंकुश भी रखता है। विधायिका और कार्यपालिका की सीमाएं भी न्यायपालिका ही सुरक्षित रखती हैं। स्वतंत्र न्यायपालिका देश में लोकतंत्र की सफलता का प्रमुख आधार है, लेकिन पिछले सात दशक में देश में कई ऐसे मामले सामने आए हैं जहां कार्यपालिका ने अपनी सीमाएं लांघी है। हालांकि न्यायपालिका ने कानून की अपनी व्याख्या के जरिए संबंधित विवादों का निपटारा भी किया।
व्याख्यानमाला की अध्यक्षता कर रहे वरिष्ठ पत्रकार कुलदीप नैयर ने कहा कि यह देश की विपडंवना ही है कि आजादी के करीब 70 वर्ष बाद भी संविधान का मूल ढांचा कमजोर है। इसके लिए उन्होंने राजनीतिक हस्तक्षेप को ज्यादा जिम्मेदार ठहराया। उन्होंने राज्यसभा के लिए निर्वाचन पद्धति की कुछ खामियां भी गिनाईं। उन्होंने न्यायाधीशों की नियुक्ति से संबंधित कॉलेजियम प्रणाली को बेहतर प्रणाली तो करार दिया, लेकिन यह भी कहा कि पुराने जमाने में कार्यपालिका के हस्तक्षेप से नियुक्त न्यायाधीशों ने भी ईमानदारी और निष्पक्षता का परिचय दिया है और न्याय के क्षेत्र में अपनी साख बनाई है।
इस अवसर पर यूएनआई निदेशक मंडल के सदस्य एवं सर्वेण्ट्स ऑफ द पीपुल सोसाइटी के अध्यक्ष दीपक मालवीय ने भीम सेन सच्चर के जीवन के विभिन्न आयामों का उल्लेख किया। उन्होंने स्वर्गीय सच्चर को महान स्वतंत्रता सेनानी एवं विद्वान राजनीतिज्ञ करार देते हुए कहा कि स्वर्गीय सच्चर ने अपने जीवन के हर क्षेत्र में उत्कृष्टता का परिचय दिया, चाहे वह स्वतंत्रता आंदोलन हो अथवा आजादी के बाद सक्रिय राजनीति का क्षेत्र।