जस्टिस जेएस केहर ने पूछा कि क्या हो रहा है यहां? हर कोई हॉली-डे के मूड में क्यों है?
सुप्रीम कोर्ट संवाददाता, नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट में जज नाराज हो गए। जस्टिस जेएस केहर कई मामलों की सुनवाई करने बैठे तो कुछ वकील उपलब्ध नहीं हो पाए तो कुछ ने कहा कि वे फिलहाल मुकदमे की सुनवाई में तैयार नहीं हैं। यही नहीं, केस से जुड़े कुछ अहम कागजात भी तैयार नहीं हो पाए। इस तरह के हॉली-डे मूड को देखते हुए जज साहब नाराज हो गए।
जस्टिस जेएस केहर ने पूछा कि क्या हो रहा है यहां? हर कोई हॉली-डे के मूड में क्यों है? बहरहाल, जेएस केहर, जस्टिस अरुण मिश्रा के साथ सुनवाई कर रहे थे। उन्होंने खुद से केस से जुड़ी फाइल वकील को थमाई, लेकिन वकील ने कहा कि फिलहाल वो बहस के लिए तैयार नहीं हैं? इससे नाराज होकर जज ने कहा कि क्या हमें घर चला जाना चाहिए। सुनवाई कुछ देर के लिए स्थगित कर दी। जज हॉल छोड़कर बाहर चले गए।
कौन हैं जस्टिस जेएस केहर
पूरा नाम जगदीश सिंह केहर
उत्तराखंड, कर्नाटक हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस रहे
13 सितंबर 2011 को सुप्रीम कोर्ट के जज बने
4 जनवरी 2017 को सुप्रीम कोर्ट के पहले सिख चीफ जस्टिस बनेंगे
महत्वपूर्ण केस
2जी घोटाला, अरुणाचल में पुरानी सरकार बहाल की, सहारा मामला, 24 हफ्ते में गर्भपात की अनुमति।
खास बात
सुप्रीम कोर्ट में एक मात्र सिख जज। जब सरदारों पर चुटकले वाली याचिका आई तो सीजेआई ने कहा, हम जस्टिस केहर को ही ये केस भेजते हैं। वे बेहतर फैसला दे पाएंगे।
वॉट्सएप पर केंद्र से मांगा जवाब
वॉट्सएप द्वारा यूजर्स की जानकारी फेसबुक के साथ साझा करने के मामले पर दिल्ली हाईकोर्ट ने केंद्र सरकार से जवाब मांगा है। याचिका में आरोप है कि वॉट्सएप की नई पॉलिसी में यूजर्स के अधिकारों के साथ खिलवाड़ होगा। इस पर कोर्ट ने संबंधित विभागों से 14 सितंबर तक जवाब देने को कहा है।
छोटी बेंच ने बड़ी को दी कानूनी नसीहत
जस्टिस जे चेलामेश्वर की अगुआई वाली दो सदस्यीय बेंच ने जस्टिस जेएस केहर की अगुआई वाली तीन सदस्यीय बेंच को मंगलवार को कुछ कानूनी नसीहतें दीं। केहर की अगुआई वाली तीन सदस्यीय बेंच को दो सदस्यीय बेंच के एक फैसले में मत में अंतर के मामले का हल निकालने का जिम्मा सौंपा गया था। यह फैसला जस्टिस चेलामश्वर और एएम सप्रे की बेंच ने दिया था। जजों के फैसले में मतभेद व्यापमं घोटाले में दागी पाए गए एमबीबीएस डॉक्टरों को दी जाने वाली सजा के मामले में सामने आया था। जस्टिस चेलामेश्वर और सप्रे ने पाया कि कई अयोग्य लोगों ने एमबीबीएस की सीटें हासिल कीं। जस्टिस चेलामेश्वर की राय थी कि ऐसे डॉक्टरों को अपनी एमबीबीएस डिग्री बचाने के लिए कुछ वक्त पर स्वास्थ्य सेवाओं के क्षेत्र में चैरिटी करना चाहिए। जस्टिस सप्रे का कहना था कि इन डिग्रियों को खारिज करना चाहिए।