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ओपिनियन

ना बाबा ना

बचपन से ही एक बीमारी है अपना भविष्य जानने की। लंगोटिया मित्र राधे के संग अक्सर तोता पंडितों से आगत जानने की चेष्टा करते रहते थे। मैट्रिक के परचों से पहले दोनों फुटपाथी ज्योतिषों से अपना हाथ बंचवाते  कि इस बार पास होंगे कि नहीं। 

Oct 28, 2015 / 05:01 am

afjal

बचपन से ही एक बीमारी है अपना भविष्य जानने की। लंगोटिया मित्र राधे के संग अक्सर तोता पंडितों से आगत जानने की चेष्टा करते रहते थे। मैट्रिक के परचों से पहले दोनों फुटपाथी ज्योतिषों से अपना हाथ बंचवाते कि इस बार पास होंगे कि नहीं। 

चवन्नी लेने के बाद एक पंडित ने प्रथम श्रेणी में पास होने की भविष्यवाणी की कि हमने किताबों के हाथ लगाना बंद ही छोड़ दिया। बड़ी मुश्किल से ग्रेस अंकों से पास हुए,राधे को कम्पार्टमेंट मिला । लेकिन बचपन की आदतें बुढ़ापे में फिर से उभरती हैं सो एक दिन राधे बोला- भाई पंडित को हाथ दिखाए बरसों बीत गए। 

चलो लकीरें बंचवा लेते हैं। हमने कहा- इस उम्र में क्या खाक मुसलमां होंगे। जिन्दगी जैसी गुजरनी थी बीत गई। राधे बोला- तेरी यही तो खराब आदत है। अरे साठा सो पाठा। अभी तो इंशाअल्लाह तेरे पूरी बत्तीसी सलामत है। 

हमने कहा-यह नीम की दातुन का कमाल है। राधे ने कहा- चल थोड़ा ‘फनÓ ही सही। सो हाल ही खरीदी उसकी लग्जरी कार में चल दिए ताल किनारे। हमने पूछा- राधे ये नई गाड़ी कब ली। राधे ने कहा- एक आंख का अंधा और गांठ का पूरा आ फंसा। उसका नेताजी से काम था। हमने करा दिया। उसने एक हमें और मंत्री की बीवी को गिफ्ट कर दी। 

हमने कहा- पता है नेता की पत्नी तेरी राखीबंद बहन है। दोनों खूब माल कूट रहे हो। राधे बोला- तुझे आम खाने हैं या पेड़ गिनने। जब जरूरत हो कह दीजो मय ड्राइवर पहुंच जाएगी। हमने कहा- त्वाडी गड्डी तेनू मुबारक। मेरे पास पुराना ‘प्रिया है। 

ताल किनारे पेड़ के नीचे बैठे हस्तरेखा पंडित के पास गए। राधे पीला नोट लहराते हुए बोला- पंडित सारा ज्ञान लड़ा कर हमारा सही-सही भविष्य बता दे। पंडित ने आगे से, पीछे से, अगल-बगल से, कभी नंगी आंखों से, कभी मोटे लैंस से हमारी लकीरें बांची और बोला-कमाल हो गया। 

आपके तो और अच्छे दिन आने वाले हैं।यह सुनते ही हमें गश आ गया। राधे घबरा गया। उसने पंडित की मदद से हमें गाड़ी में पटका और अस्पताल ले आया। तब तक होश आ गया। राधे से कहा, उस पंडित के एक वाक्य से हम घबरा गए।सच मुझे अच्छे दिनों से डर लगने लगा है। 

इन्हीं अच्छे दिनों में दाल दुर्लभ हो गई, कपड़े के दाम चढ़ गए, कभी-कभार सपत्नीक होटल चले जाते थे वहां भी ज्यादा दाम देने पड़ रहे हैं, शिक्षा और स्वास्थ्य महंगे पड़ रहे है। तेल-मसाले महंगे हो गए। इन अच्छे दिनों ने जेब में सुराख कर दिया तो आने वाले दिनों में तो फट ही जाएगी। 

ना बाबा ना। नहीं चाहिए ऐसे अच्छे दिन। नंगा क्या पहने क्या निचोड़े। राधे सोच में पड़ गया बोला- चल कहीं तेरा मुंह कड़वा कराते हैं। थोड़ी देर ही सही ‘सोम रसÓ पीकर तू फील गुड तो करेगा। – राही

इन अच्छे दिनों ने जेब में सुराख कर दिया तो आने वाले दिनों में तो फट ही जाएगी। ना बाबा ना। नहीं चाहिए ऐसे अच्छे दिन।

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