रिसालदार बदलूराम 23 सितंबर 1918 को ब्रिटिश इंडियन आर्मी की एक टुकड़ी की
अगुवाई कर रहे थे कि इस दौरान उनका सामना दुश्मन सेना से हुआ, बदलूराम ने
अदम्य साहस दिखाते हुए टुकड़ी की रक्षा की थी और वीरगति को प्राप्त हुए थे
चंडीगढ़। प्रथम विश्व युद्ध में शहीद हुए इस योद्धा, भारतीय सैनिक रिसलदार बदलूराम को 98 साल बाद अपने वतन की मिट्टी नसीब हो गई। प्रथम विश्वयुद्ध के दौरान यह योद्धा फिलीस्तिन में शहीद हो गया था। बदलूराम की याद में जॉर्डन नगी के किनारे बने युद्ध स्मारक से मिट्टी लाकर उनके पैतृक गांव ढाकला पहुंच गई।
ओमप्रकाश धनकड़ लेकर आए कलश
इस कलश को कृषि मंत्री ओमप्रकाश धनकड़ लेकर आए हैं। वह पिछले दिनों जलवायु परिवर्तन में टिकाऊ खेती व जल प्रबंधन पर मिस्र में आयोजित अंतरराष्ट्रीय सेमिनार में भाग लेने के लिए प्रतिनिधिमंडल के साथ वहां गए थे। इस दौरान उन्हें प्रथम विश्वयुद्ध के दौरान शहीद हुए भारतीय सैनिकों के युद्ध स्मारक पर जाने का अवसर मिला, जिसमें हरियाणा के रिसलदार बदलूराम का नाम भी शामिल था।
पहले भारतीय सैनिक जिन्हें मिला था विक्टोरिया क्रॉस
रिसालदार बदलूराम 23 सितंबर 1918 को ब्रिटिश इंडियन आर्मी की एक टुकड़ी की अगुवाई कर रहे थे कि इस दौरान उनका सामना दुश्मन सेना से हुआ। बदलूराम ने अदम्य साहस दिखाते हुए टुकड़ी की रक्षा की थी और वीरगति को प्राप्त हुए थे। इस योगदान के लिए रिसालदार बदलूराम को ब्रिटिश हुकुमत द्वारा सर्वोच्च विक्टोरिया क्रॉस का सम्मान मिला था। वे पहले भारतीय सैनिक थे, जिन्हें यह सम्मान मिला था। इस युद्ध के शहीदों की याद में जॉर्डन नदी के किनारे एक स्मारक बनाया गया था।
विक्टोरिया क्रॉस से सम्मानित सैनिकों के लिए दिल्ली में बन रहा स्मारक
इस मौके पर मौजूद सेना के अधिकारियों ने बताया कि भारत में छह लोगों को विक्टोरिया क्रास मिला है। इनके दिल्ली में स्मारक बनाए जा रहे हैं। अधिकारियों के मुताबिक, बदलूराम ने कुशल नेतृत्व दिया था। सेना के एक अधिकारी ने बताया कि 1918 में बरेली में यह अवॉर्ड उनके बेटे छोटूराम को दिया गया था। उस समय इनको पाकिस्तान में दो मुरबे (जमीन मापने की लोकल इकाई) जमीन भी अलॉट हुई थी।
परपोते के स्मारक के पास ही बनेगा बदलूराम का स्मारक
हवाई अड्डे पर संवाददाताओं से बातचीत करते हुए धनखड़ ने बताया कि एक बहादुर सैनिक की याद को उनकी जन्मभूमि पर लाने के अपूर्व अवसर को शब्दों में बयां नहीं किया जा सकता। उनकी यादों को जीवंत करने के पवित्र अवसर पर वे खुद को गौरांवित महसूस करते है। उन्होंने कहा कि मातृ भूमि की रक्षा करते हुए वीर सैनिकों द्वारा दिया गया उनके जीवन का सर्वोच्च बलिदान कभी जाया नहीं जाता। उनकी शहादत को कभी न कभी उनकी जननी-जन्म भूमि की मिट्टी जरूर नसीब होती है। अब जहां परपोते पंकज का स्मारक है वहीं, दादा बदलूराम का स्मारक बनेगा।
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