पटना। नर्मदा बचाओ आंदोलन का नेतृत्व करने वाली जानीमानी सामाजिक कार्यकर्ता मेधा पाटकर ने शनिवार को बिहार के मुख्यमंत्री एवं जनता दल यूनाईटेड (जदयू) के राष्ट्रीय अध्यक्ष नीतीश कुमार से नोटबंदी के समर्थन के फैसले पर फिर से विचार करने का आग्रह किया है। पाटकर ने पत्रकारों से बातचीत में कहा कि यह नोटबंदी नहीं बल्कि नोट वापसी है और नोटबंदी का एजेंडा कुछ और ही है।
उन्होंने कहा कि बिहार के मुख्यमंत्री कुमार को नोटबंदी के समर्थन में लिए गए फैसले पर फिर से विचार करना चाहिए। नोटबंदी का कालाधन से कोई लेना देना नहीं है और कालाधन तो लोगों ने सम्पत्ति में लगा रखा है। सामाजिक कार्यकर्ता ने आरोप लगाया और कहा कि जब से केन्द्र में नरेन्द्र मोदी की सरकार बनी है, जनतंत्र पर हमले बढ़े हैं। कानूनों में बदलाव कर लोगों के संसाधनों को खींचकर बड़े-बड़े औद्योगिक घरानों को दिया जा रहा है।
उन्होंने कहा कि कृषि योग्य जमीनों को उद्योगपतियों को दी जा रही हैं। पाटकर ने कहा कि खेती की जमीन का औद्योगिकरण किए जाने से लोगों की जीविका के साथ ही पर्यावरण को खतरा उत्पन्न हो गया है। विश्वविद्यालयों में भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) और राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ (आरएसएस) अपने छात्र संगठनों को स्थापित करने की कोशिश कर रहे हैं।
सामाजिक कार्यकर्ता ने कहा कि कश्मीर की समस्या के समाधान के लिए संवाद होना जरूरी है। हूर्रियत भी संवाद करना चाहती है। उन्होंने कहा कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने वर्ष 2022 तक सबको घर देने की बात कही है, लेकिन राजीव गांधी आवास योजना को बंद कर दिया गया है। साथ ही इस योजना का नाम भी बदला जा सकता है। पाटकर ने गंगा कार्य योजना के काम पर सवाल उठाया और कहा कि इसमें करोड़ों रुपए की बर्बादी हो रही है। गंगा का प्रदूषण कम नहीं हो रहा है। उन्होंने कहा कि अमरीका भी नदियों पर बने बराज को तोड़ रहा है, इसलिए फरक्का बराज को तोड़ा जाना चाहिए। अडाणी और अम्बानी जैसे उद्योगपतियों को नदियों का पानी देने के लिए इसे बेचने की कोशिश हो रही है।
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