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इस बाहुबली की प्रेम कहानी है सबसे रोमांचक, LIFE पर बनेगी फिल्म

Published: Oct 03, 2015 06:20:00 pm

पप्पू यादव के राजनीतिक जीवन पर बहुत
कुछ लिखा जा चुका है, लेकिन उनकी निजी ज़िंदगी भी कम उतार-चढ़ाव वाली नहीं
रही है

pappu yadav and his wife ranjit ranjan

pappu yadav and his wife ranjit ranjan

पटना। बिहार के चुनाव में बाहुबिलयों का जिक्र ना हो ये असंभव है। राष्ट्रीय जनता दल के बहुचर्चित नेता पप्पू यादव के राजनीतिक जीवन पर बहुत कुछ लिखा जा चुका है, लेकिन उनकी निजी ज़िंदगी भी कम उतार-चढ़ाव वाली नहीं रही है। एक धनी जमींदार परिवार से आने वाले पप्पू यादव का परिवार आनंद मार्गी है। आज patrika.com इस चुनावी मेले में आपका परिचय बाहुबली पप्पू यादव से करा रहा है, जिनकी प्रेम कहानी उनके आपराधिक आैर राजनैतिक जीवन से कहीं अधिक रोमांचक है ।

पप्पू यादव के राजनीतिक जीवन से रोचक है उनका प्रेम प्रसंग और शादी। वर्ष 1991 में राष्ट्रीय सुरक्षा क़ानून के तहत पटना की बांकीपुर जेल में बंद पप्पू यादव के लिए वो समय मानो उनके जीवन का सबसे सुखद पहलू लेकर आया। आज भी उन दिनों की बातें याद करके पप्पू यादव का चेहरा खिल उठता है। प्रेमिका से पत्नी बनीं और अब राजनीति में उनकी सहचर रंजीत रंजन के लिए पप्पू के पास सिर्फ़ सराहना के शब्द हैं।

पप्पू यादव कहते हैं, “मैं धन्यवाद देता हूं रंजीत जी को कि उन्होंने मेरे प्यार को समझा। तीन साल तक हमारी दोस्ती चली थी। पूरे संघर्ष के बाद भी उन्होंने मेरा साथ दिया। फ़रवरी 1992 से चल रहे प्रेम प्रसंग के बाद मेरी शादी 1994 में हुई। वो दौर बड़ा संघर्ष वाला था। उस समय एक दूसरे से मिलना, पटना आना जाना बहुत बड़ी बात थी। मैं ख़ुशनसीब हूं कि मुझे बहुत अच्छी पत्नी मिली है।”

प्यार की जंग

लेकिन पप्पू यादव के शब्दों से इसका अहसास नहीं होता कि अपने प्रेम को पाने के लिए पप्पू को कितने पापड़ बेलने पड़े। पहले तो रंजीत ने पप्पू यादव का प्रस्ताव ही नकार दिया था। लेकिन ज़िद्दी पप्पू यादव ने उम्मीद का दामन नहीं छोड़ा। उन्होंने तो इतना तक कह दिया था कि उनके जीवन की पहली और आख़िरी लड़की वही है।

पप्पू यादव के जीवन में रंजीत रंजन के आने की कहानी पूरी फ़िल्मी है। पटना की बांकीपुर जेल में बंद पप्पू अक्सर जेल अधीक्षक के आवास से लगे मैदान में लड़कों को खेलते देखा करते थे। इन्हीं लड़कों में रंजीत के छोटे भाई विक्की भी थे। इन लड़कों से मिलने-मिलाने के क्रम में विक्की से पप्पू यादव की नज़दीकी बढ़ी।

लेकिन कहानी में ट्विस्ट उस समय आया जब पप्पू यादव ने विक्की के फैमिली एलबम में रंजीत की टेनिस खेलती तस्वीर देखी और उसके बाद पप्पू के राजनीतिक जीवन में चल रहे भूचाल के बीच एक और तूफ़ान आया।

पप्पू फ़ोटो देखकर रंजीत पर फिदा हो गए और फिर शुरू हुई अपने प्रेम प्रस्ताव को लेकर रंजीत तक पहुंचने की लंबी जंग। पप्पू यादव जेल से छूटने के बाद रंजीत से मिलने के लिए अक्सर उस टेनिस क्लब में पहुंच जाते थे, जहां वो टेनिस खेला करती थीं। रंजीत को ये सब बातें नागवार गुज़रती थी। उन्होंने पप्पू यादव को कई बार मना किया, मिलने से रोका और कठोर शब्द भी कहे। लेकिन पप्पू यादव डटे रहे। एक बार तो रंजीत ने यहां तक कह दिया कि वे सिख हैं और पप्पू हिंदू और उनके परिवार वाले ऐसा होने नहीं देंगे।

पप्पू यादव ने अपनी पुस्तक ‘द्रोहकाल का पथिक’ में विस्तार से अपने प्रेम प्रसंग का वर्णन किया है। उन्होंने लिखा है कि कैसे हताश-परेशान होकर उन्होंने एक बार नींद की ढेरों गोलियां खा लीं। उन्हें पटना मेडिकल कॉलेज अस्पताल में भर्ती कराया गया। इसके बाद रंजीत का व्यवहार थोड़ा सामान्य हुआ और बात आगे बढ़ी।

रंजीत रंजन के पिता ग्रंथी थे और शुरू में इस विवाह के ख़िलाफ़ थे। लेकिन पप्पू यादव के आनंद मार्गी पिता चंद्र नारायण प्रसाद और माता शांति प्रिया की ओर से कोई समस्या नहीं थे। वे दोनों इस शादी के पक्ष में थे।

कोशिश

जब रंजीत के परिजनों की ओर से शादी को मंज़ूर नहीं किया जा रहा था, तो पप्पू यादव रंजीत के बहन-बहनोई को मनाने चंडीगढ़ पहुंच गए। लेकिन वहां भी उनकी दाल नहीं गली और दोनों ने इस रिश्ते को मंज़ूरी नहीं दी। दिल्ली में रंजीत के एक और बहनोई ने भी पप्पू यादव को घास तक नहीं डाली। पप्पू यादव निराश थे।

इसी बीच किसी ने उन्हें सलाह दी कि उस समय कांग्रेस में रहे एसएस अहलूवालिया उनकी मदद कर सकते हैं। पप्पू यादव उनसे मिलने दिल्ली जा पहुंचे और मदद की गुहार लगाई। पप्पू यादव ने अपनी किताब में इसका ज़िक्र किया है कैसे एसएस अहलूवालिया साहब की पहल से रंजीत के सिख परिजनों को मनाने में मदद मिली। ख़ैर रंजीत के माता-पिता के राजी हो जाने के बाद भी उनके अन्य परिजन तैयार नहीं थे। आख़िरकार शादी की तैयारी हुई और फरवरी 1994 में पप्पू यादव और रंजीत की शादी हो गई।

वरिष्ठ पत्रकार देवाशीष बोस बताते हैं, “पप्पू यादव का परिवार आनंद मार्गी है। आनंद मार्ग में इस बात की काफ़ी कद्र होती है, जब शादी विजातीय होती है। पूर्णिया में जब पप्पू यादव की शादी हुई, वैसा जमावड़ा आज तक नहीं हुआ। बहुत लोग आए थे।”

क्लाइमैक्स

पप्पू यादव की शादी पहले पूर्णिया के गुरुद्वारे में होनी थी, लेकिन फिर तय हुआ कि शादी आनंद मार्ग की पद्धति से होगी। इस बीच रंजीत और उनके परिजनों को लेकर आ रहा चार्टर्ड विमान रास्ता भटक गया और देरी के कारण हंगामा मच गया। बाद में पता चला कि विमान का पायलट रास्ता भटक गया था। ख़ैर विमान पहुंचा और लोगों ने राहत की सांस ली।

पूर्णिया की सड़कों को पूरी तरह सजा दिया गया था। शहर के सारे होटल और गेस्ट हाउस सब बुक थे। आम और ख़ास सबके लिए व्यवस्था की गई थी। पप्पू यादव की शादी में चौधरी देवीलाल, डीपी यादव और राज बब्बर भी शामिल हुए। तत्कालीन मुख्यमंत्री लालू प्रसाद यादव भी थोड़ी देर के लिए उनकी शादी में आए।

अपनी शादी के बारे में पप्पू यादव कहते हैं, “दूसरे धर्म में शादी की बात थी। कहां पंजाब कहां बिहार। उधर से थोड़ी समस्या थी। हमारी तरफ़ से तो सहयोग था। हमारे पिता खुले विचारों के हैं। वे बहुत बड़े इंसान हैं। हमारे परिवार के स्तर पर कोई परेशानी नहीं थी।”

पप्पू यादव कहते हैं कि वे और रंजीत सर्वश्रेष्ठ दोस्त रहे हैं। वे कहते हैं, “रंजीत जी खुद आध्यात्मिक हैं। बहुत अच्छा बोलती हैं। व्यक्तित्व बहुत अच्छा है। ईमानदारी से जीतीं हैं। लाग-लपेट में नहीं रहती हैं। बच्चों के लिए बेस्ट मां हैं।”

पप्पू यादव की जिंदगी पर बनेगी फ़िल्म

पप्पू यादव की प्रेम कहानी से प्रभावित होकर बिहार के ही अमरनाथ झा ने फ़िल्म बनाने का फ़ैसला किया। उन्होंने पप्पू यादव की आत्मकथा ‘द्रोहकाल का पथिक’ के राइट्स ख़रीद लिए हैं।

अमरनाथ झा ने बताया कि मैंने जब उनकी किताब पढ़ी, तो मुझे इसमें पूरा फ़िल्मी मैटेरियल दिखा। फिल्म आर्ट के साथ-साथ एक बिज़नेस भी है। पप्पू यादव की ज़िंदगी फ़िल्मी हीरो की तरह रही है। इसमें बहुत ख़ूबसूरत लव स्टोरी है। इसमें एक रॉबिनहुड छवि वाले राजनेता को पंजाब की एक सिख लड़की से इश्क हो जाता है। वो बिना सोचे उनसे शादी करने का फ़ैसला कर लेता है कि इसका क्या असर होगा।

अमरनाथ झा कहते हैं कि एक हीरो में जो आदमी देखते हैं, उन्हें वो चीज़ इस कहानी में दिखी और इसलिए उन्होंने इस पर फ़िल्म बनाने का फ़ैसला किया है। उन्हें पप्पू यादव और उनकी पत्नी रंजीत रंजन को मनाने में वक़्त लगा। उन्होंने बताया कि पप्पू यादव की पत्नी रंजीत रंजन ने उनसे एक बात ज़रूर कही थी कि वे दोनों एक्टिव पॉलिटिक्स में हैं और उन्हें उसका ध्यान ज़रूर रखना होगा।

अमरनाथ झा कहते हैं, “सिनेमा में हम ऐसे चरित्र रचते हैं, लेकिन यहां ये रियल लाइफ़ में हैं। जिसकी ज़िंदगी में उतार-चढ़ाव आए हैं, जो लोगों के लिए जी रहा है। उसके दुश्मन बन रहे हैं। वो लड़ रहा है।”

उन्होंने बताया कि कई निर्देशकों से बात चल रही है, लेकिन उन्होंने किसी का नाम लेने से इनकार कर दिया। हालांकि उन्होंने स्पष्ट किया कि उन्हें नई फ़िल्मकारों में तिग्मांशु धूलिया, अनुराग कश्यप और उनके भाई अभिनव कश्यप काफ़ी पसंद हैं।

पारिवारिक जीवन

फ़िल्म से अलग देखें तो पप्पू यादव का अब भरा पूरा परिवार है। पप्पू यादव अपने माता-पिता के काफ़ी क़रीब हैं। पप्पू यादव के पिता कहते हैं, “पप्पू जिस काम को करने की ठान लेते थे, उस काम को पूर्ण करना अपना कर्तव्य समझते थे। आज भी वे इसी तरह हैं। वे यही चाहते थे कि वे सेवा का ऐसा काम करें, जो किसी ने न किया हो।”

पप्पू यादव की मां कहती हैं कि वे बचपन से ही कहते थे कि वे ऐसा काम करें और उनका इतना बड़ा नाम हो जाए कि मां-बाप को ख़ुशी हो। पप्पू यादव की एक छोटी बहन हैं, जो डॉक्टर हैं। उनके बहनोई फ़र्रुख़ाबाद में कई मेडिकल कॉलेज चलाते हैं। पप्पू यादव को एक बेटा और एक बेटी है। बेटा सार्थक रंजन दिल्ली अंडर-19 टीम का उप कप्तान है, जबकि उनकी बेटी दिल्ली में पढ़ती है। पप्पू यादव कहते हैं, “मुझे भरोसा है कि बेटा इंडिया खेलेगा। वो बैट्समैन और स्पिनर है।”

हालांकि उन्हें अफ़सोस है कि वे उनके लिए समय नहीं निकाल पाते हैं। पप्पू कहते हैं, “बच्चे पिता के प्यार से बारह साल तीन महीना महरूम रहे हैं। ऑपरेशन के बाद छह महीने से घर-घर गांव-गांव घूम रहा हूं। बच्चों को लगता है कि पापा नहीं रहते हैं, लेकिन मम्मी का सानिध्य मिलता है।”

पीड़ा

बातचीत के दौरान ये बात भी निकल कर सामने आ गई कि ख़ुद पप्पू यादव और उनके माता-पिता को बाहुबली शब्द पर आपत्ति है और उनकी छवि पर लगते आरोपों को भी वे ग़लत ठहराते हैं।

पप्पू यादव की मां कहती हैं कि कहने वाले को हम क्या कहें, लेकिन जो कहते हैं वो गलत कहते हैं। बाहुबली किसको कहते हैं। समाज का सेवा करता है, इसलिए बाहुबली हो गया। किसी का इलाज कराता है, इसलिए बाहुबली हो गया।

पप्पू यादव कहते हैं, “लोगों के लिए करने वालों को कई तरह की बातें सुननी पड़ती हैं। भगत सिंह आज होते तो डकैत कहलाते। गांधी पर सवाल नहीं उठे क्या। सुभाष चंद्र बोस पर सवाल नहीं उठे क्या, लेकिन मैं अफ़सोस नहीं करता।”

हालांकि उन्हें अजित सरकार हत्याकांड में जेल में बिताए समय को याद करके बहुत पीड़ा होती है। पप्पू यादव कहते हैं, “बहुत पीड़ा होती है। मौत से भी बदतर। ऐसी ज़िंदगी किसी को न दे भगवान। शरीर की स्वतंत्रता ख़त्म, विचारों की स्वतंत्रता ख़त्म, मन की स्वतंत्रता ख़त्म, दिल की स्वतंत्रता ख़त्म, हर तरह के अधिकार से वंचित, एकदम ज़िंदा लाश।”

इस बार पप्पू यादव मधेपुरा से राजद के टिकट पर चुनाव लड़ रहे हैं और उनकी पत्नी रंजीत रंजन सुपौल से कांग्रेस के टिकट पर। अगर राजद और कांग्रेस का गठबंधन नहीं होता, तो उनके लिए अजीब स्थिति होती। पप्पू का कहना है कि वे जब जैसी परिस्थिति आती है, उसके हिसाब से ही चलते हैं। अब देखना ये है कि बिहार की ये चर्चित जोड़ी एक साथ संसद में एंट्री ले पाती है या नहीं।

-साभार बीबीसी
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