भारत ने 2 अक्टूबर यानि गांधी जयंती पर पेरिस जलवायु परिवर्तन समझौते को मंजूर करने की घोषणा कर दी है।
नई दिल्ली। भारत ने 2 अक्टूबर यानि गांधी जयंती पर पेरिस जलवायु परिवर्तन समझौते को मंजूर करने की घोषणा कर दी है। पेरिस जलवायु समझौते को मंजूरी देने के बाद भारत की भूमिका जलवायु से जुड़े वैश्विक नियमों को आकार देने की हो जाएगी। पहले भारत की तरफ से ऐसे संकेत मिल रहे थे कि वो इस साल के अंत तक पेरिस डील को मंजूरी देगा।
पीएम मोदी ने की पेरिस समझौते को मंजूरी देने की घोषणा
शनिवार को पीएम मोदी ने केरल के कोझिकोड़ में आयोजित हुई भाजपा की मीटिंग में इसका एलान कर दिया। पेरिस डील को मंजूरी देने वाले सभी देशों को ऐसे कदम उठाने पड़ेंगे जिससे ग्लोबल वार्मिंग में 2 डिग्री से ज्यादा औसत बढ़ोतरी ना हो। पेरिस जलवायु समझौते पर भारत समेत 180 देश हस्ताक्षर कर चुके हैं। पेरिस समझौते पर तभी अमल में आ सकेगा जब कम से कम 55 प्रतिशत देश पुष्टि कर दें। कुल उत्सर्जन में इनकी हिस्सेदारी 55 प्रतिशत से कम नहीं होनी चाहिए। यूएन के सेकेट्री जनरल बान की मून ने बताया था कि 48 प्रतिशत उत्सर्जन के लिए जिम्मेदार 60 देशों ने इसकी पुष्टि कर दी है। इनमें चीन और अमरीका का उत्सर्जन 38 प्रतिशत है। चीन और अमरीका की तरफ से पेरिस समझौते पर मंजूरी देने के बाद भारत पर इसको लेकर दबाव बढ़ गया। अमरीकी राष्ट्रपति बराक ओबामा पद छोडऩे से पहले पेरिस समझौते पर अमर देखना चाहते हैं।
पेरिस समझौते में भारत नजर आएगा सक्रिय भूमिका में
भारत के लिए इस समझौते को मंजूरी देना कई मायनों में फायदेमंद साबित हो सकता है। जलवायु परिवर्तन एक ग्लोबल मूवमेंट है। एनर्जी से लेकर टेक्नोलॉजी तक में जलवायु परिवर्तन से जुड़े नियम निर्धारित किए जाएंगे। पेरिस समझौते के बाद दुनियाभर मे भारत की एक दूसरी छवि उभरकर आएगी। ये एक ऐसा मुद्दा है जिसमें भारत की नेतृत्व की भूमिका नजर आएगी। पीएम मोदी और ओबामा अभी फोन के जरिए इस समझौते पर बात कर रहे हैं। ये एक दुर्लभ मौका होगा जब भारत सक्रिय भूमिका निभाता हुआ नजर आएगा। अभी तक भारत को का दृष्टिकोण अवरूद्ध करने वाला देखा जाता है।
बराक ओबामा चाहते हैं पद छोडऩे से पहले पेरिस समझौते पर हो अमल
हाल में लाओस में जब पीएम मोदी अमरीकी राष्ट्रपति बराक ओबामा से मिले थे। पीएम मोदी ने ओबामा से वादा किया था कि भारत इस समझौते पर पुष्टि दे देगा। दुनियाभर के उत्सर्जन में भारत का हिस्सा 4.5 प्रतिशत है। कुछ खबरों में ये भी कहा गया था कि भारत ने पेरिस समझौते पर मंजूरी देने के लिए एनएसजी की सदस्यता देने की शर्त भी रखी है। इस समझौते का असर इकोनोमी के अलग-अलग पहलुओं पर पड़ेगा। मोटर वाहन के नए कानून को इसके अनुसार ढालना पड़ सकता है। उसका उत्सर्जन भी कम करना पड़ेगा। बिजली उत्पादन के नियमों में भी बदलाव करना पड़ सकता है। भारत में अभी बिजली बनाने का काम काफी हद तक कोयले पर निर्भर है। घरों तक 24 घंटे बिजली पहुंचाने वाली योजना पर भी इसका असर नजर आएगा।