नई दिल्ली। नरेंद्र मोदी सरकार सार्वजनिक संपत्ति की तोड़-फोड़ करने के लिए नेताओं को छूट देने की योजना में है। सरकार प्रिवेंशन ऑफ डिस्ट्रक्शन ऑफ पब्लिक प्रापर्टी (पीडीपीपी) कानून में संसोधन करके राजनेताओं को छूट दे सकती है। सोमवार से शुरु हुए संसद के
मानसून में सरकार की ओर से पीडीपीपी कानून संशोधन संबंधी विधेयक पेश किया जा सकता है। मीडिया रिपोर्ट के मुताबित राज्य सरकारों की अपील के बाद अब केंद्र सरकार पीडीपीपी कानून में बदलाव कर रही है।
अब नेताओं को तोड़-फोड़ करने की छूट
खबर के मुताबिक इस संशोधन के जरिए सरकार राजनीतिक दल के नेताओं को खुला आमंत्रण देगी कि आइए और सार्वजनिक संपत्ति को नुकसान पहुंचाइए, सरकार आपका कुछ नहीं करेगी। पीडीपीपी कानून को सख्ती से लागू करने वाली सुरक्षा एजेंसियों ने इस संशोधन पर आपत्ति जताई है। उनका कहना है कि इस बदलाव से कानून के दुरुपयोग होने की संभावना है, क्योंकि इसके अंर्तगत विपक्ष के नेताओं पर सत्ता पक्ष द्वारा आरोप लगाना आसान हो जाएगा।
पुलिस के लिए वीडियो रिकॉर्डिंग जरूरी
दूसरी ओर मंत्रालय के अधिकारी के हवाले से लिखा गया है कि हम अब सबूतों की गुणवत्ता को बढ़ाने पर जोर देना चाहते हैं। किसी भी घटना के विरोध में धरना प्रदर्शन और बंद का स्थानीय पुलिस द्वारा वीडियो रिकॉर्डिंग जरुरी किया जाएगा। इस फुटेज की एक प्रति स्थानीय पुलिस थाने और एक मजिस्ट्रेट के पास भेजा जाएगा। यह फुटेज केस की जांच करने वाले अधिकारी को मजिस्ट्रेज के जरिए दिया जाएगा। सूत्रों के मुताबिक प्रिवेंशन ऑफ डिस्ट्रक्शन ऑफ पब्लिक प्रापर्टी (पीडीपीपी) कानून में संसोधन करके इस अपराध को गैर-जमानती बनाया जा सकता है। इसलिए ऐसी स्थिति में पुख्ता सबूत जरुरी है।
2015 में लागू हुआ था कानून
गौरतलब है कि प्रिवेंशन ऑफ डिस्ट्रक्शन ऑफ पब्लिक प्रापर्टी एक्ट 2015 में लागू किया गया था। इसके अंतर्गत धरना प्रदर्शन या बंद के दौरान सार्वजनिक संपत्ति को नुकसान पहुंचने पर वहां मौजूद राजनेताओं को ही इसका जिम्मेदार माना जाता है। जिस पार्टी या बैनर के तले धरना प्रदर्शन या बंद को बुलाया गया होगा उसके इस दौरान हुए कुल नुकसान का हर्जाना वसूले जाने का प्रावधान है। 20 मई 2015 को गृह मंत्रालय ने आम जनता से सार्वजनिक संपत्ति को क्षति की रोकथाम (पीडीपीपी) अधिनियम, 1984 में संशोधन के लिए सुझाव मांगे थे। जिससे संगठन के पदाधिकारियों पर लगाम लगाया जा सके।
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