चंडीगढ़। हरियाणा व पंजाब में पिछले कई दशकों से जल विवाद तथा राजधानी चंडीगढ़ को लेकर छिड़े विवाद का अभी हल नहीं हुआ है कि राजधानी में स्थित सचिवालय तथा विधानसभा की सुरक्षा को लेकर दोनों राज्य आमने-सामने हो गए हैं। दोनों राज्यों के सचिवालय तथा विधानसभा में सुरक्षा की जिम्मेदारी केंद्रीय औद्योगिक सुरक्षा बल के पास है। सीआईएसएफ ने इस समय सचिवालय में करीब 800 जवान तैनात कर रखे हैं।
50 फीसदी की ही अदायगी
सीआईएसएफ का सुरक्षा राशि अदायगी को लेकर यह विवाद दोनों राज्यों के साथ पहले भी हो चुका है। चंडीगढ़ में अन्य इमारतों की तरह सचिवालय की इमारत पर भी हरियाणा व पंजाब का लंबे समय से विवाद चल रहा है। इस इमारत के 60 प्रतिशत हिस्से पर पंजाब तो 40 प्रतिशत हिस्से पर हरियाणा का कब्जा है। जिसके चलते इसकी सुरक्षा पर लगे सीआईएसएफ के जवानों को अदा किए जाने वाले वेतन में भी इसी अनुपात से दोनों राज्यों द्वारा धनराशि की अदायगी की जाती है। इसके बावजूद पिछले कुछ वर्षों से पंजाब द्वारा अपने हिस्से की 60 प्रतिशत धनराशि की बजाए 50 फीसदी अदायगी ही की जा रही है।
धनराशि को 50-50 प्रतिशत बांटा जाए
पंजाब का तर्क है कि दोनों राज्यों द्वारा सचिवालय का एक समान इस्तेमाल किया जा रहा है। इसलिए इस धनराशि को 50-50 प्रतिशत बांटा जाए। उधर हरियाणा भी इस मामले पर गंभीर नहीं है। हरियाणा द्वारा कभी भी समय पर सुरक्षा पर खर्च होने वाली धनराशि की अदायगी नहीं की गई है। इस बीच पंजाब द्वारा पूरी धनराशि की अदायगी न किए जाने सीआईएसएफ ने बकाया धनराशि हरियाणा के खाते में स्थानांत्रित कर दी। परिणाम स्वरूप हरियाणा की तरफ इस समय सीआईएसएफ की 22 करोड़ रुपए से अधिक धनराशि अटकी हुई है। इस मामले को लेकर सीआईएसएफ के अधिकारियों पंजाब व हरियाणा के मुख्यमंत्रियों के अलावा केंद्रीय गृहमंत्रालय को पत्र लिखकर कार्रवाई की मांग करते हुए सूचित कर दिया है।
धमाके में हो चुकी है पूर्व सीएम की मौत
सचिवालय की सुरक्षा को लेकर पंजाब व हरियाणा गंभीर नहीं हैं। इसी सचिवालय की इमारत में पंजाब के पूर्व मुख्यमंत्री स्वर्गीय बेअंत सिंह की बम धमाके में हत्या हो गई थी। इसके बाद ही सचिवालय की सुरक्षा राज्य पुलिस से वापस लेकर सीआईएसएफ को सौंप दी गई थी।
अधिकारियों के पास सुविधाओं का टोटा
सीआईएसएफ के अधिकारी भी इस समय भारी असुविधाओं का शिकार हैं। दोनों राज्यों की सरकारों के बीच पिस रहे अधिकारियों के पास सुविधा के नाम पर सरकारों के लारे हैं। कमांडैंट स्तर के वरिष्ठ अधिकारियों को राज्य सरकारों की तरफ से पुरानी गाडिय़ां ही मुहैया करवाई गई हैं। आपात स्थिति सीआईएसएफ के अधिकारी दूसरों की गाडिय़ों पर निर्भर हैं।
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