अपनी रक्षा प्रणाली को और मजबूत करने के लिए रूस भारत से ब्रम्होस क्रूज मिसाइलें खरीदना चाहता है
नई दिल्ली। अपनी रक्षा प्रणाली को और मजबूत करने के लिए रूस भारत से ब्रम्होस क्रूज मिसाइलें खरीदना चाहता है। रूसी मीडिया के मुताबिक, भारत द्वारा ब्रह्मोस मिसाइल के साथ फाइटर प्लेन एसयू-30 एमकेआई के टेस्ट के बाद रूसी सेना 2017 में इसकी खरीद की बात शुरू कर सकती है। रूस ब्रम्होस क्रूज मिसाइलों को अपने सुखोई एसयू-30 एसएम फाइटर प्लेन पर तैनात करना चाहता है। खास बात यह है कि भारत ने रूस की मदद से ही इन मिसाइलों को बनाया था।
बता दें कि भारत ने हाल ही में ब्रह्मोस मिसाइल को किसी लड़ाकू विमान पर तैनात किया गया था। इससे पहले लड़ाकू विमान में इसके लिए बहुत सारे बदलाव किए गए, जिनमें इसके इलेक्ट्रोनिक सर्किट्स को सख्त किया गया है, ताकि इसका परमाणु विस्फोट के इलेक्ट्रोमैग्रेटिक स्पंदन से बचाव हो सके। मिसाइल में भी बदलाव किया गया। स्थिरता के लिए इसके बूस्टर और पंख जैसे भाग को छोटा किया गया। इस सफल उड़ान के साथ ब्रह्मोस का हवाई संस्करण कार्यक्रम वास्तविक परीक्षण फायरिंग के और करीब पहुंच गया है। असली परीक्षण में 2.5 टन के ब्रह्मोस मिसाइल को सुखोई-30 से आने वाले महीनों में हवा से जमीन पर दागा जाएगा। इसके बाद यह क्रूज मिसाइल रूस को मिलेगी।
सुरक्षा से जुड़ी मंत्रिमंडल की समिति से एसयू-30 पर ब्रह्मोस मिसाइल लगाने की स्वीकृति वर्ष 2012 के अक्टूबर में ही मिल गई थी। करीब 40 विमानों को ब्रह्मोस मिसाइल से लैस किया जाएगा। ब्रह्मोस मिसाइल भारत के रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन (डीआरडीओ) एवं रूस के फेडरल स्टेट यूनिटरी एंटरप्राइज एनपीओ माशिनोस्ट्रोयेनिया (एनपीओएम) की संयुक्त परियोजना है। बता दें कि मिसाइल बनाने को लेकर भारत व रूस के बीच 12 फरवरी 1998 को समझौता हुआ था। इसके बाद भारत में ब्रह्मोस एयरोस्पेस बना था।
अमरीका से भारत को मिलेगा अत्याधुनिक गार्जियन ड्रोनउधर, अमरीका भारत को अब सामुद्रिक निगरानी (विशेषकर हिंद महासागर में) के लिए हथियार रहित गार्जियन ड्रोन देगा। भारतीय नौसेना ने फरवरी माह के दौरान अमरीकी रक्षा विभाग से उच्च तकनीकी क्षमता से लैस 22 मल्टी मिशन प्रेडेटर गार्जियन यूएवी की खरीद के लिए एक अनुरोध पत्र भेजा था। ओबामा द्वारा भारत को प्रमुख सामरिक रक्षा भागीदार के रूप में नामित करने के बाद, हथियार खरीद बिक्री के संबंध में भारत की तरफ से किया गया, यह पहला बड़ा अनुरोध था। सूत्रों के अनुसार, अमरीकी प्रशासन को लगता है कि इस तरह की प्रमुख सैन्य बिक्री को मंजूरी मिलने से भारत और अमरीका के रिश्ते और गहरें होंगे।