सोशल नेटवर्किग साइट फेसबुक पर उन्होंने 30 जुलाई को अद्यतन पोस्ट में लिखा है, अलग-अलग कारणों से मैं इस्तीफा देने के बारे में पहले से ही सोच रहा था, लेकिन इस सप्ताह सुप्रीम कोर्ट में जो हुआ, वह मेरे इस्तीफे के लिए ताबूत में अंतिम कील की तरह साबित हुआ। मैं विश्वविद्यालय में मृत्युदंड पर अध्ययन के लिए शीर्ष अदालत के उप रजिस्ट्रार पद से इस्तीफा दे चुका हूं।
उनका एक साल का अनुंबध खत्म होने ही वाला था। प्रो. सुरेंद्रनाथ का कहना है कि कुछ ही घंटों में दो फैसले लिए जाना न्याय के अपने उद्देश्य से हटने का एक उदाहरण है और इसे शीर्ष अदालत के अंधकारमय कालों में से समझा जाना चाहिए। प्रो. सुरेंद्रनाथ की करीब एक वर्ष पहले कांट्रैक्ट पर नियुक्ति हुई थी।
वह दिल्ली स्थित नेशनल लॉ यूनिवर्सिटी के संकाय-सदस्य होने के साथ मृत्युदंड शोध परियोजना के निदेशक भी हैं। उल्लेखनीय है कि मेमन के डेथ वारंट (मृत्यु-अधिपत्र) पर रोक लगाने के लिए दायर दया याचिका में एक पैरोकार वह भी थे।
कोर्ट ने प्रो. सुरेंद्रनाथ का इस्तीफा मिलने की पुष्टि करते हुए कहा है कि इसे स्वीकार करके उन्हें कार्यमुक्त कर दिया गया है। शीर्ष अदालत के सूत्रों ने बताया कि प्रो. सुरेंद्रनाथ ने निजी कारणों से इस्तीफा दिया है। उच्चतम न्यायालय में कम से कम 20 डिप्टी रजिस्ट्रार हैं। इनमें कुछ की नियुक्ति न्यायपालिका के बाहर से होती है।