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चक्रवाती तूफानों की जानकारी देगा “स्कैट सैट” उपग्रह, जल्द होगा प्रक्षेपण

Published: May 29, 2015 08:53:00 pm

“स्कैट सैट” नामक यह उपग्रह चक्रवाती तूफानों की सटीक भविष्यवाणी करेगा, 4-5 दिन पहले पता बताएगा कहां से उठने वाला है बवंडर

Scat SAT satellite

Scat SAT satellite

बेंगलूरू। सागर में चक्रवातों के उत्पन्न होने की सटीक भविष्यवाणी करने के लिए भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) एक लघु उपग्रह तैयार कर रहा है, जिसका प्रक्षेपण साल के अंत तक किए जाने की उम्मीद है।

इसरो के उच्च पदस्थ सूत्रों के अनुसार “स्कैट सैट” नामक यह उपग्रह “ओशियन सैट-2” द्वारा दी जाने वाली सेवाओं में सहयोग करेगा और उसे बेहतर बनाएगा। सितम्बर 2009 में भेजे गए “ओशियन सैट-2” उपग्रह ने अक्टूबर 2013 में आए “फैलिन” चक्रवात के ओडिशा तट पर पहुंचने की सटीक भविष्यवाणी की थी। उपग्रह के सटीक भविष्यवाणी से समय सहते तटवर्ती इलाकों को खाली करा लिया गया जिससे जान-माल की क्षति को न्यूनतम करने में मदद मिली। इसरो अधिकारी ने बताया कि अब स्कैटेरोमीटर का विकास किया जा रहा है जो महासागरों में उठने वाले चक्रवातों पर नजर रखेगा। बवंडर बनने, उसके मजबूत होने और उसकी गति पर लगातार नजरें रखते हुए यह उपग्रह उसके तटवर्ती इलाकों में पहुंचने की सटीक भविष्यवाणी करेगा।

दरअसल, ओशियनसैट-2 के साथ भेजा गया स्कैटेरोमीटर लगभग साढ़े चार साल बाद फरवरी 2014 से काम करना बंद कर दिया है। इसलिए इसरो को इसका विकास कर तुरंत भेजना होगा। ओशियनसैट के इसी उपकरण ने फैलिन की सटीक भविष्याणी की थी मगर उसके नाकाम होने के बाद भारत नासा के आईएसएस-रैपिडस्कैट पर निर्भर हो गया है। फिलहाल नासा के सहयोग से ही इसरो समुद्री तूफानों एवं चक्रवातों की निगरानी कर रहा है। इसरो द्वारा निर्मित किया जाने वाला स्कैटेरोमीटर समुद्र में उठने वाली हवाओं की गति और उसकी दिशा को मापने में सक्षम होगा। यह चक्रवातों के गठन की भविष्यवाणी चार से पांच दिन पहले ही कर देगा। यह जानकारियां जान-माल की क्षति रोकने में काफी मददगार साबित होती हैं।

300 वैज्ञानिकों की टीम कर रही है काम

इसरो अधिकारी ने बताया कि स्कैट सैट 110 किलोग्राम वजनी पे-लोड होगा। इसके निर्माण के लिए 300 वैज्ञानिकों की एक टीम काम कर रही है। अगले दो महीनों में इसे तैयार कर श्रीहरिकोटा भेज दिया जाएगा जहां से इसका प्रक्षेपण होगा। इस उपग्रह के निर्माण पर लगभग 250 से 300 करोड़ रूपए की लागत अनुमानित है और यह उपग्रह अगले पांच साल तक देश को अपनी सेवाएं देगा। 
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