सियाचिन ग्लेशियर से भारतीय सैनिकों को वापस बुलाने से संबंधित मांगों का जिक्र करते हुए पर्रिकर ने कहा कि यह घटना मेरे लिए निजी तौर पर दुखद है, लेकिन जो समाधान सुझाया गया है, वह उचित नहीं है।
विशाखापत्तनम। सियाचिन ग्लेशियर में हाल ही में हुए एक हिमस्ख्खलन में 10 सैनिकों की मौत को दुखद बताते हुए रक्षामंत्री मनोहर पर्रिकर ने कहा कि दुनिया की इस सबसे ऊंचे रण क्षेत्र से जवानों को वापस बुलाना समस्या का समाधान नहीं है।
सियाचिन ग्लेशियर से भारतीय सैनिकों को वापस बुलाने से संबंधित मांगों का जिक्र करते हुए पर्रिकर ने कहा कि यह घटना मेरे लिए निजी तौर पर दुखद है, लेकिन जो समाधान सुझाया गया है, वह उचित नहीं है।
यह पूछे जाने पर कि क्या सियाचिन को एक शांति पर्वत में बदलने का प्रस्ताव अभी भी बरकरार है, पर्रिकर ने कहा कि सियाचिन पर सैनिकों की तैनाती का निर्णय देश की सुरक्षा से जुड़ा है। उन्होंने कहा कि हाल के वर्षों में बेहतर सुविधाओं के कारण सियाचिन पर जवानों की मौतों की संख्या में कमी आई है। पर्रिकर ने कहा कि हमने ग्लेशियर पर नियंत्रण बनाए रखने के लिए हजारों सैनिकों को गंवा दिया है। पिछले कुछ वर्षों में मौतों की संख्या घटी है।
उन्होंने कहा कि हाल की घटना का हमारी तैयारी से कोई संबंध नहीं है। मुझे कोई कमी नहीं दिखती। यह एक हिमस्खलन था प्रकृति में इसका अनुमान नहीं लगाया जा सकता। पर्रिकर ने कहा कि जवानों के लिए तलाशी अभियान जारी है, हालांकि टनों बर्फ में दबे होने के कारण उनके बचे होने की संभावना बेहद कम है।
2005 में तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने सियाचिन को ‘शांति पर्वत बनाने का प्रस्ताव रखा था। भारत और पाकिस्तान दोनों देशों के सैनिक यहां तैनात रहते हैं और बेहद दुर्गम परिस्थितियों वाली दुनिया की इस सबसे ऊंची रणभूमि में अत्यधिक ठंड और हिस्खलन में दोनों देशों के कई जवानों की मौत हो चुकी है। उल्लेखनीय है कि बुधवार को एक हिस्खलन की चपेट में आने के कारण एक जूनियर कमीशंड अधिकारी (जेसीओ) सहित 10 सैनिक बर्फ में दफन हो गए थे।