कैप्टन मनोज पांडे को कारगिल के खालूबार सेक्टर में घुसपैठियों को खदेड़ने की जिम्मदारी मिली थी। उन्होंने अपने अदम्य साहस का परिचय देते हुए दुश्मन को ढेर कर खालूबार पर कब्जा जमा लिया।
नई दिल्ली। मई 1999 में जम्मू-कश्मीर के कारगिल जिले में जैसे ही ऊंची चोटियों पर बर्फ पिघलना शुरू हुई, वैसे ही पाकिस्तानी सेना की मदद से पाक घुसपैठियों ने घुसपैठ कर भारतीय बंकरों पर कब्जा कर लिया। पाकिस्तानी घुसपैठियों का मकसद नेशनल हाईवे 1 पर गोलाबारी करके कारगिल और लद्दाख में सेना की गतिविधियों को रोकना था। सेना की अलग-अलग रेजीमेंटों को कारगिल के सभी सेक्टरों में घुसपैठियों को भारत की सीमा से खदेड़ने के लिए भेजा गया। इसी बीज 1/11 गोरखा रेजीमेंट को भी कारगिल की अहम चोटियों को फतह करने की जिम्मेदारी दी गई। इसी रेजीमेंट में लेफ्टिनेंट मनोज पांडे भी तैनात थे। उनकी कंपनी कुछ ही दिन पहले सियाचिन से होकर आई थी। छुट्टी पर जाने के बजाय मनोज पांडे की पलटन ने युद्ध भूमि ने जाने का फैसला लिया। फील्ड एरिया में होने के नाते उन्हें कैप्टन पद पर प्रमोट कर दिया गया।
कैप्टन मनोज को मिला खालूबार फतह का जिम्मा
कारगिल के कई सेक्टरों में मनोज पांडे की पलटन ने दुश्मन को खदेड़ दिया। उनके अदम्य साहस और कुशल नेतृत्व को देखते हुए उनके कमांडिंग आफिसर ने उन्हें खालूबार फतह करने का जिम्मा सौंपा। खालूबार में पाकिस्तानी घुसपैठिए लगातार भारतीय सैनिकों को निशाना बनाकर गोलाबारी कर रहे थे। कैप्टन मनोज पांडे अपनी पलटन के साथ 2-3 तीन जुलाई की रात खालूबार फतह करने निकल पड़े। इस बीच भारतीय बंकरों में कब्जा जमाए घुसपैठियों ने मनोज पांडे की कंपनी पर भारी गोलाबारी शुरू कर दी। अपने कुशल नेतृत्व का परिचय देते हुए कैप्टन मनोज पांडे ने पहले तो अपनी पलटन को एक सुरक्षित स्थान पर पहुंचाया। उसके बाद जवाबी कार्रवाई की रणनीति बनाई। कैप्टन मनोज चाहते थे कि सुबह होने से पहले उनकी कंपनी खालूबार की पोस्टों पर कब्जा कर ले, क्योंकि सूरज उगते ही पाकिस्तानी घुसपैठिए उनकी पलटन की हर हरकत को आसानी से देख सकते थे।
गोली लगने के बावजूद लड़ते रहे कैप्टन मनोज
मोर्चे पर आगे जाते हुए उन्होंने दुश्मन के पहले ठिकाने पर कुछ साथियों के साथ हमला किया और दो घुसपैठियों का मार गिराया। इसके तुरंत बाद उन्होंने दूसरे ठिकाने पर भी हमला करते हुए दो और घुसपैठियों को ढेर कर दिया। खालूबार में दो ठिकाने ध्वस्त होने के बाद पाक घुसपैठियों की पकड़ कमजोर हो गई थी। जिसके बाद कैप्टन मनोज पांडे ने तीसरे ठिकाने की ओर धावा बोला। इसी दौरान दुश्मन की गोली उनके कंधे और पांव पर लगी और वे गंभीर रूप से जख्मी हो गए। घायल होने के बावजूद अपने साथियों की रक्षा के लिए कैप्टन मनोज पांडे आगे बढ़ते रहे। जैसे ही उन्होंने घुसपैठियों का तीसरा ठिकाने ध्वस्त करते हुए आगे बढ़ने की कोशिश की वैसे ही दुश्मन की एक गोली आकर मनोज पांडे की सिर में लगी। इसके बावजूद उन्होंने ग्रेनेड से दुश्मन के चौथे ठिकाने को तय समय में ध्वस्त कर खालूबार पर तिरंगा लहरा दिया।
मरणोपरांत मिला परमवीर चक्र
ऑपरेशन विजय में सर्वोच्य बलिदान के लिए राष्ट्रपति ने कैप्टन मनोज पांडे को मरणोपरांत परमवीर चक्र से नवाजा। आज भी उनकी बहादूरी के किस्से देशभर में सुनाए जाते हैं।
मां के खत ने मनोज पांडे को दी ताकत
कैप्टन मनोज पांडे ने युद्ध के दौरान अपनी मांग को एक आखिरी खत लिखा। उन्होंने खत में अपनी मां से कहा कि आप लोग ईश्वर से प्रार्थना करो कि मैं जल्द ही दुश्मन को अपनी मातृभूमि से खदेड़ कर घर वापस आऊं। उस पर उनकी मां ने जवाब देते हुए लिखा कि बेटा कुछ भी हो जाए तुम अपने कदम पीछे न हटना। मां की इस बात ने कैप्टन मनोज पांडे के अंदर ऊर्जा भर दी थी।