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क्या पूर्वजन्म के कर्मों से भी प्राप्त होते हैं सुख-दुख?

Published: Nov 05, 2015 10:36:00 am

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ऐसा करने में मनुष्यों का तर्क यह होता है कि दुनिया में जो कुछ भी हो रहा
हैं वह सब ईश्वर की मर्जी से ही हो रहा है, इसलिए मेरी यह अपनी हालत भी
भगवान की इच्छा का ही नतीजा है।

हर इंसान अपने पूर्व जन्मों के कर्मों के आधार पर सुख या दुख का अनुभव करता है, इसलिए यह कहना अनुचित होगा कि परमात्मा दुनिया में होने वाली हर अच्छी व बुरी घटना के लिए जिम्मेदार है। जबकि सच यह है कि हम सभी मनुष्यात्माएं कर्म के कानून के अंतर्गत अपने-अपने कर्म करती हैं और चाहा या अनचाहा फल प्राप्त करती हैं। इस प्रक्रिया में भगवान का कोई भी हस्तक्षेप नहीं होता।

दूसरों को दोष क्यों देना ?
कहते हैं कि मनुष्य स्वयं अपने जीवन का वास्तुकार है, अत: यह कहना सही होगा कि हम सभी ने अपने जीवन को अपनी पसंद के अनुसार बनाया है, लेकिन जब हमारे साथ कुछ गलत या अवांछित हो जाता है तो हम आत्म अवलोकन किए बिना ही तुरंत उसका दोष किसी के सिर मढ़ देते हैं।

इस तथ्य से कोई भी इंकार नहीं करेगा कि हम सभी अपना अमूल्य समय और ऊर्जा अक्सर दूसरों के ऊपर अपनी समस्याओं का दोष मढ़ने में बर्बाद कर देते हैं। मगर हम क्यों किसी को हर बार दोष दें? क्योंकि इन्सान की तो फितरत में खुद को गलती करने के अपराध बोध से बचाने के लिए कोई बाहरी कारक को बली का बकरा बनाकर खुद को निर्दोष साबित करना होता है।

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ऐसी सामान्य चेष्टा तो प्रतिदिन न जाने कितनी बार हम सब करते रहते हैं, परन्तु दोषारोपण के इस खेल में हम यह भूल जाते हैं कि कर्म के नियम अनुसार जो व्यक्ति पहले खुद को बदलता है, उसे खुशी का उपहार प्राप्त होता है।



पूर्व जन्म के कर्मों का फल
कर्म फिलॉसफी के मुताबिक जो कुछ भी हम आज अनुभव कर रहे हैं, वह हमारे ही भूतकाल में किए हुए किसी कर्म या गलत सोच का नतीजा है। इसलिए जब हमारे सामने अपने उस पूर्व कर्म के हिसाब को चुकाने का मौका आता हैं तो हमें सहर्ष उसका लाभ उठाकर खुद को बोझ मुक्त करना चाहिए, किन्तु हम ऐसा नहीं करते हैं।

क्यों? क्योंकि हम महसूस करने की लंबी प्रक्रिया से बचने के लिए और अपने आलस्य के स्वभाव से मजबूर अधिकांश दोष का टोकरा किसी और के सिर रख देते हैं। विस्मय तो तब होता हैं जब व्यक्ति या परिस्थिति के ऊपर दोष देने में नाकामयाबी हासिल होने पर निराश मनुष्यात्मा सर्वशक्तिमान परमात्मा को दोष देने की हद तक चला जाता है।

ऐसा करने में मनुष्यों का तर्क यह होता है कि दुनिया में जो कुछ भी हो रहा हैं वह सब ईश्वर की मर्जी से ही हो रहा है, इसलिए मेरी यह अपनी हालत भी भगवान की इच्छा का ही नतीजा है। सुनने में काफी हास्यास्पद लगता है, पर वास्तव में हम सभी दिनभर इस प्रकार की बचकानी गतिविधियों में लिप्त रहते हैं और जानबूझकर इसे भूलने का ढोंग करते हैं।

हर इंसान अपने पूर्व जन्म के कर्मों के आधार पर सुख या दुख का अनुभव करता है, इसलिए यह कहना अनुचित होगा कि परमात्मा दुनिया में होने वाली हर अच्छी व बुरी घटना के लिए जिम्मेदार है। जबकि सच यह है कि हम सभी मनुष्यात्माएं कर्म के कानून के अंतर्गत अपने अपने कर्म करती हैं और चाहा या अनचाहा फल प्राप्त करती हैं। इस प्रक्रिया में भगवान का कोई भी हस्तक्षेप नहीं होता।

ईश्वर सिर्फ मार्गदर्शक है
भगवान एक शिक्षक एवं मार्गदर्शक के रुप में हमें अच्छे कर्म करने का ज्ञान देतेे हैं, किन्तु हमारी जगह आकर वे परीक्षा नहीं दे सकते। इसलिए हमें बिना किसी को दोष दिए पूर्ण विश्वास के साथ स्वयं ही जीवन के हर इम्तेहान में उत्तीर्ण होकर आगे बढ़ना है।



इन परीक्षाओं में हम सफल हों या असफल यह ज्यादा मायने नहीं रखता, महत्वपूर्ण यह है कि हम किस साहस और ताकत के साथ उन्हें चुनौती के रूप में स्वीकार करते हैं। सर्वांगीण विकास के लिए दोष देने की आदत प्रमुख बाधाओं में से एक है, इसलिए जितना हो सके उतना इससे बचना चाहिए।

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अन्यथा हम कभी भी किसी क्षेत्र में आगे नहीं बढ़ पाएंगे। खुद से वादा करें कि हम अपने कर्मों की जिम्मेदारी लेकर खुद से ईमानदार रहेंगे और ईश्वर द्वारा बताए सत्य मार्ग पर चलने का सचेत प्रयास करेंगे ।

स्वयं को परिवर्तित करें
यदि हम जीवन में खुशी और सुख चाहते हैं तो किसी और का इंतजार करने के बजाय खुद को ही सर्वप्रथम परिवर्तित करना होगा। अमूमन लोग अपने जीवन में आने वाली विपदाएं एवं दुखों के लिए दूसरों को कोसते रहते हैं और अंदर ही अंदर यह बड़बड़ाते रहते हैं कि अमुक ने हमसे ऐसा न किया होता तो आज हमारा यह हाल न होता, लेकिन ऐसे वक्त पर अक्सर लोग यह सार्वभौमिक नियम को भूल जाते हैं कि हर क्रिया की एक विपरीत और समान प्रतिक्रिया होती है।

अत: खुद को देखने के बजाय हर वक्त हम सामने वाले को ठीक करने की कोशिश में ही अपनी सारी शक्ति व्यर्थ करते रहते हैं। इसी प्रकार से जब हमें दोष देने के लिए कोई व्यक्ति दिखाई नहीं पड़ता तब हम बड़ी चतुराई से परिस्थिति को या अपनी किस्मत को दोष देने लगते हैं। लेकिन ऐसा करने में हम यह भूल जाते हैं कि वर्तमान में हमारे जीवन की जो भी परिस्थितियां हैं वह सभी हमारी अपनी ही पैदाइश हैं।

– राजयोगी ब्रह्मकुमार निकुंज –

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