राज्यों को इंटरनेट सेवा बंद करने का अधिकार : सुप्रीम कोर्ट
Published: Feb 11, 2016 06:27:00 pm
उच्चतम न्यायालय ने मोबाइल इंटरनेट सेवा पर प्रतिबंध लगाने के राज्यों के अधिकार को चुनौती देने वाली अपील खारिज
नई दिल्ली। उच्चतम न्यायालय ने मोबाइल इंटरनेट सेवा पर प्रतिबंध लगाने के राज्यों के अधिकार को चुनौती देने वाली अपील खारिज करते हुए आज कहा कि कानून-व्यवस्था दुरुस्त करने के लिए इस तरह का प्रतिबंध लगाना गलत नहीं है।
मुख्य न्यायाधीश टी एस ठाकुर और न्यायमूर्ति आर भानुमति की खंडपीठ ने इस संबंध में गुजरात उच्च न्यायालय के फैसले के खिलाफ गौरव सुरेशभाई व्यास की विशेष अनुमति याचिका (एसएलपी) की सुनवाई करने से साफ इनकार कर दिया। याचिकाकर्ता ने दंड विधान संहिता (सीआरपीसी) की धारा 144 के तहत राज्य सरकारों को दिये गए ऐसे अधिकारों को चुनौती दी थी।
इंटरनेट सहित कई सेवाएं रोक सकती हैं राज्य सरकारें
न्यायालय ने कहा कि राज्य सरकारें इन धाराओं में प्रदत्त अधिकारों का इस्तेमाल करते हुए इंटरनेट सहित कई सेवाएं रोक सकती हैं। इससे पहले याचिकाकर्ता की ओर से वकील अपर गुप्ता ने दलील दी कि सीआरपीसी के तहत इस तरह का प्रतिबंध अनुचित है, क्योंकि ऐसी स्थितियों से निपटने के लिए विशेष टेलीग्राफ कानून मौजूद है।
उन्होंने कहा कि इस तरह का प्रतिबंध सीआरपीसी के तहत नहीं लगाया जाना चाहिए। हालांकि न्यायालय उनकी इन दलीलों से असंतुष्ट नजर आया। न्यायमूर्ति ठाकुर ने कहा कि कानून और व्यवस्था बनाये रखने के लिए कभी-कभी ऐसा कदम उठाना जरूरी हो जाता है। उन्होंने कहा, ” कानून व्यवस्था की खराब स्थिति से निपटने के लिए समवर्ती अधिकार होने जरूरी हैं।
गुजरात उच्च न्यायालय के आदेश पर मुहर
शीर्ष अदालत ने मोबाइल इंटरनेट सेवा पर रोक के गुजरात उच्च न्यायालय के आदेश पर अपनी मुहर लगाते हुए याचिकाकर्ता की याचिका खारिज कर दी। याचिकाकर्ता ने गुजरात में पाटीदार आंदोलन के दौरान मोबाइल इंटरनेट सेवा पर प्रतिबंध लगाने के राज्य सरकार के फैसले को सही ठहराने संबंधी उच्च न्यायालय के आदेश को शीर्ष अदालत में चुनौती दी थी। गुजरात सरकार ने पाटीदार आंदोलन के दौरान 10 दिनों तक मोबाइल इंटरनेट सेवा पर रोक लगा दी थी। जम्मू कश्मीर सहित कुछ अन्य राज्यों में भी इसी तरह के प्रतिबंध लगाये गए हैं।