नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने राजस्थान हाईकोर्ट के उस फैसले पर रोक लगा दी है
जिसमें जैन धर्मावलंबियों के धार्मिक रिवाज संथारा (मृत्यु तक उपवास)को अवैध करार
दिया गया था। इस मामले में सुप्रीम कोर्ट ने राजस्थान सरकार और केन्द्र को नोटिस
जारी किया। इस आदेश के तहत हाईकोर्ट के फैसले पर चार साल तक रोक रह सकती है जब तक
कि सुनवाई के लिए मामला नहीं आता है।
अखिल भारत वर्षीय दिगंबर जैन परिषद ने
राजस्थान हाईकोर्ट के फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी थी। हाईकोर्ट ने संथारा
को आत्महत्या जैसा बताते हुए इसे भारतीय दंड संहिता 306 और 309 के तहत दंडनीय बताया
था। साथ ही इसका समर्थन करने वाले व्यक्ति के खिलाफ भी धारा 306 के खिलाफ मामला
दर्ज करने को कहा था।
2006 में सामाजिक कार्यकर्ता निखिल सोनी ने 2006 में राजस्थान हाईकोर्ट में जनहित याचिका दाखिल करते हुए संथारा की प्रैक्टिस पर तुरंत रोक लगाने की मांग की थी। सोनी की याचिका पर सुनवाई करते हुए हाईकोर्ट ने संथारा पर पाबंदी लगा दी थी।
हाईकोर्ट ने कहा था कि संथारा या मृत्यु पर्यत उपवास जैन धर्म का आवश्यक अंग नहीं है। इसे मानवीय नहीं कहा जा सकता क्योंकि यह मूल मानवाधिकारों का उल्लंघन करता है। यह रिवाज उस समय चर्चा में आया जब 2006 में जयपुर की रहने वाली कैला देवी हीरावत ने संथारा अपनाया था और शरीर का त्याग किया था।
क्या है संथारा
यह जैन समाज की एक धार्मिक प्रथा है जिसमें व्यक्ति मृत्यु होने तक खाना और पानी का त्याग कर देता है। जैन समुदाय के श्वेतांबर मतावलंबी सदियों से इस प्रथा का पालन कर रहे हैं। उनका मानना है कि यह मोक्ष प्राप्ति का जरिया है। एक व्यक्ति संथारा तब लेता है जब उसे लगता है कि उसने जीवन का उद्देश्य हासिल कर लिया है। इस प्रथा को ज्यादातर वृद्ध लोग ही अपनाते हैं।
Home / Miscellenous India / संथारा को सुप्रीम कोर्ट की मंजूरी, हाईकोर्ट के फैसले पर रोक