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पिता का शव लेने पहुंचा, गार्ड ने पूछा तुम पुलिसवाले और तुम्हारे पिता माओवादी, ये कैसे संभव है?

ओडिशा के मलकानगिरी जिले के पुलिस मुख्यालय में एक ट्रक में पड़ा उनकी राह देख रहा था। सुरक्षा गॉर्ड के सवाल को नजरअंदाज करते हुए चुपचाप अपने पिता का शव लिया।

Oct 27, 2016 / 10:14 am

malkanagiri

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हैदराबाद। कुछ दिन पहले ओडिशा और आंध्र प्रद्रेश की सीमा के पास हुई मुठभेड़ में 28 माओवादी मारे गए थे। इनमें से ही एक था माओवादी कमांडर रैंक का यामलापल्ली सिमाचलन रेड्डी उर्फ मुरली। इस माओवादी कमांडर रेड्डी का बेटा वाई अप्पा राव जब मंगलवार को अपने पिता का शव लेने पहुंचा तो गार्ड ने पूछा तुम एक पुलिसवाले हो और तुम्हारे पिता माओवादी थे? ये कैसे संभव है?

जिंदगीभर इस बेइज्जत करने वाले सवाल से बचता रहा

अप्पा राव हमेशा इस सवाल से बचने के लिए अपने परिवार के बारे में किसी से ज्यादा बात नहीं करते थे। वाई अप्पा राव हर महीने अपना मोबाइल नंबर बदल देता था। वाई अप्पा राव को इस सवाल का सामना करना पड़ा। उसके पिता का शव ओडिशा के मलकानगिरी जिले के पुलिस मुख्यालय में एक ट्रक में पड़ा उनकी राह देख रहा था। सुरक्षा गॉर्ड के सवाल को नजरअंदाज करते हुए चुपचाप अपने पिता का शव लिया, पुलिस में अपना बयान दर्ज कराया और रिश्तेदारों के साथ एंबुलेंस में वापस चले गए। अप्पा राव अपनी जिंदगी के बारे में कोई बात नहीं करना चाहते थे। वो फिलहाल आंध्र प्रदेश के विजयनगरम में पुलिस कांस्टेबल हैं। वो भी पहले माओवादी थे लेकिन उन्होंने वो राह बहुत पहले छोड़ दी थी।

पुलिस बेटा आत्मसमर्पण करने के लिए पिता को लिखता था चि_ियां

38 वर्ष के अप्पा राव के पिता वाई सीमाचलम रेड्डी उर्फ मुरली उर्फ हरि माओवादी संगठन के एरिया कमांडर थे। वो माओवादी संगठन के वरिष्ठ नेता रामकृष्णन के नजदीकी सुरक्षा दस्ते के सदस्य थे। 58 वर्षीय रेड्डी उन 28 माओवादियों में शामिल थे जो 24 अक्टूबर को ओडिशा और आंध्र प्रदेश के सीमा के नजदीक दोनों राज्यों के संयुक्त कमांडो दस्ते के साथ मुठभेड़ में मारे गए थे। आंध्र प्रदेश पुलिस के अनुसार रेड्डी 1991 में विजयनगरम के बोबिली में अंडरग्राउंड हो गया था। 1990 के दशक के अंत में अप्पा राव भी अपने पिता के साथ जुड़ गए। लेकिन बीमारी के चलते उन्होंने 2001 में अपनी पत्नी के साथ आंध्र प्रदेश के तत्कालीन डीजीपी एचजे डोरा के सामने आत्मसमर्पण कर दिया था। समर्पण के बाद उन्हें एक विशेष कोटे के तहत 2002 में विजयनगरम पुलिस में भर्ती किया गया। अपनी पुरानी पहचान से छुटकारा पाने के लिए उन्होंने अपना सरनेम रेड्डी की जगह राव कर लिया लेकिन उनकी अतीत उनका पीछा करता ही रहा। आंध्र प्रदेश पुलिस के एंटी-माओइस्ट इंटेलिजेंस ब्रांच ने उनसे उनके पिता को कई चि_ियां लिखवाईं। वो चाहते थे कि उनके पिता भी आत्मसमर्पण कर दें। लेकिन उनके पिता ने हर बार उसके इस प्रस्ताव को ठुकरा दिया।

हमेशा किसी अधिकारी का सहायक बनकर रहा अप्पा राव

विजयनगरम के एसपी एलके रंगा राव ने बताया कि आत्मसमर्पण के पत्र भेजने के बाद बाप बेटे के बीच संबंध खराब होने लगे। वो पत्र उनके पिता को आंध्र-ओडिशा सीमा के आसपास मौजूद माओवादी नेटवर्क के माध्यम से भेजे जाते थे। आम तौर पर अप्पा राव की नियुक्ति विजयनगरम के एसपी कार्यालय में होती थी या फिर किसी ऑफिसर ऑन स्पेशल ड्यूटी (ओएसडी) के सहायक स्टाफ के तौर पर लेकिन पांच महीने पहले उन्होंने स्वास्थ्य कारणों से अपने पैतृक गांव से 35 किलोमीटर दूर स्थित गारिवीडी पुलिस थाने में स्थानांतरण करा लिया।

किसी को अपनी पहचान नहीं बताता था, हर महीने नंबर बदलता था

गारिवीडी थाने के सब-इंस्पेक्टर श्रीनिवास राव कहते हैं कि उन्होंने यहां ज्वाइन किया था लेकिन वो अक्सर बीमार रहते हैं। करीब 15 दिन पहले वो फिर बीमार हो गए थे। यहां बहुत कम लोग उनकी पृष्ठभूमि के बारे में जानते हैं। हम यहां काम कर रहे पुलिसवालों को उनकी पुरानी पहचान नहीं बताते। पहचान सार्वजनिक होने से उनकी जान को खतरा भी हो सकता है। वो हर महीने अपना फोन नंबर बदलते हैं। मलकानगिरी में मुठभेड़ के बाद उन्होंने सूचना दी थी कि वो कुछ और दिनों तक छुट्टी पर रहेंगे। मंगलवार को जब अप्पा राव मुठभेड़ में मारे गए अपने पिता का शव लेने पहुंचे तो उन्होंने बस इतना कहा कि मैं विजयनगरम पुलिस में कांस्टेबल हूं। मैं अपने पिता का शव लेने आया हूं।

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