यह स्थिति भारत के गुजरात राज्य के पोरबंदर की है, जहां दुल्हन के इंतजार में गुजर जाती है जिंदगी…
अहमदाबाद। कहते हैं जोडिय़ां भगवान बनाता है,लेकिन इन लाखों अविवाहित पुरुषों को देखकर नहीं लगता कि जोडिय़ा आसमान में बनती हैं। यदि ऐसा होता, तो ये अविवाहित नही रहते। जी हां, हम बात कर रहे हैं गुजरात के पोरबंदर की, जहां एक-दो-तीन लाख नहीं, बल्कि करीब 9 लाख ऐसे पुरुष हैं, जो शादी की उम्र के पड़ाव में हैं या जो पार कर चुके हैं, उन्हें इंतजार है कि एक न एक दिन उनकी भी शादी होगी…वो भी दूल्हा बनेंगे। सात फेरे लेंगे, दुल्हनिया घर ले आएंगे। कहते हैं इसी इंतजार में लाखों पुरुषों की जिंदगी गुजर जाती है।
क्या वजह है…
यहां के युवा बताते हैं कि गांवों, खास कर सौराष्ट्र में लड़कियां शादी नहीं करना चाहतीं। 24 साल के रमेश पटेल अपना दुख जाहिर करते हैं, हमें एक रिश्ता मिला था, लेकिन लड़की वालों ने शर्त रख दी कि हम पोरबंदर आ जाएं। अब शादी के लिए मैं अपने मां-बाप को अकेला तो छोड़ नहीं सकता। मैं अपने मां-बाप की इकलौती संतान हूं, इसलिए घर की पूरी जिम्मेदारी मुझ पर है। खेती छोड़कर कैसे जाता है। रिश्ता आगे नहीं बढ़ा। लड़की ने शादी करने से साफ मना कर दिया। पोरबंदर के गांवों में ऐसे ढेरों वाकये हैं, जिनसे यह साबित होता है कि रमेश की तरह लाखों अविवाहित हैं, जो अपनी दुल्हन का इंतजार कर रहे हैं।
चौंकाते हैं अविवाहित आंकड़े…
2011 के जनगणना के आंकड़ों से पता चला कि यहां 25 से 34 की उम्र वाले 11.83 लाख युवक और युवतियां हैं, जिनमें 9.16 लाख पुरुष और 2.67 लाख महिलाएं हैं। इससे यह पता चलता है कि हर दो अविवाहित युवतियों के लिए वहां 25-34 उम्र वाले सात अविवाहित पुरुष हैं। कुल मिलाकर गुजरात में 25 से अधिक उम्र वाले 17.75 लाख अविवाहित महिलाएं और पुरुष हैं। इस आंकड़े से यह भी पता चला कि नवसारी (7.22त्न), जूनागढ़ (6.75त्न), भरुच (6.61त्न) और अहमदाबाद (6.93त्न) की तुलना में पोरबंदर (7.48त्न) में अधिक अविवाहित हैं।
देर से शादी की परंपरा…
जानकारों का मानना है कि अतीत में यहां देर से शादी की परंपरा है। चंूकि अब यह परंपरा पुरुषों के लिए उल्टी साबित हो रही है। इसके अलावा यहां कई समुदाय ऐसे हैं, जिनमें लड़को की तुलना में लड़कियां ज्यादा पढ़-लिख लेती हैं, तो वो अपने से कम पढ़-लिखे लड़कों को अपना जीवन साथी नहीं बनाती हैं। यानी यह कहना सही होगा कि अविवाहित पुरुषों के पीछे कहीं न कहीं शिक्षा भी प्रमुख वजह है।